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नैसर्गिकचापल्य
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न्यञ्
नैसर्गिकचापल्य (वि०) स्वाभाविक चपलता। (जयो० १३/८८) । नौकादण्डः (पुं०) चम्पू, पतवार, दाव खेने का दण्ड-चम्पू। नैसर्गिकसरलस्वभावः (पुं०) सहज रूप में सरल प्रवृत्ति नौचरः (पुं०) नाविक, मल्लाह, मांझी। (दयो०पृ०६१)
नौजीविकः (पुं०) नाव चलाकर जीविका करने वाला नाविक। नैस्त्रिंशिक (वि०) कृपाणधारी, असि धारक।
नौतार्य (वि०) नाव पार ले जा सके। नो (अव्य०) निषेधवाचक अव्यय, नहीं, बिना, मत। नो हृदैव नौदण्डः (पुं०) चम्पू, पतवार, डांड।
न दृशैव विशोकैः किन्तु पूर्णवपुषैव हि लोकैः। (जयो० | नौमित (वि.) नमित, प्रणमित, बार बार नमित। ५/६८)
(सम्य० १५२) नो आनुभावदीर्घः (पुं०) अपने अपने उत्कृष्ट अनुभावों से
नौयायिन् (वि०) नाविक, जहाज संचालक, पोतवाहक। हीन बांधने वाले।
नौवाहः (पुं०) कर्णधार, नाविक, पोतवाहक। नो-आगमः (पुं०) आगम से भिन्न। आगमादण्णो णोमागमो।
नौव्यसनं (नपुं०) नाव का भंग होना। (धव० ३/१३)
नौसाधनं (नपुं०) नौसेना समूह, नौका समूह, जहाजी बेड़ा। नो इन्द्रियप्रणिधिः (स्त्री०) चार कषायों को रोकना। शुद्ध
न्यक् (अव्य०) [नि+अच्+क्विन्] घृणा, अपमान या दीनत आत्मा में स्थिर होना।
सूचक अव्यय। नो इन्द्रिय प्रत्यक्षः (पुं०) इन्द्रिय बिना स्वयमेव ज्ञान होना।
न्यकार (वि०) दीनता, अपमानता अनादर, घृणा। नोकर्म (पुं०) पुद्गल परिणाम रूप सुख-दुःख का कारण।
न्यकृ (अक०) तिरस्कार करना, अपमान करना, निन्दा ०शरीरत्व परिणाम।
करना। 'स्वमुत्तमं सम्प्रति मन्यमानोऽन्येन्यक्करोतीति शरीर रूप पुद्गल परिणाम।
विवेकभावो' (वीरो० १७/४) नोकर्मबन्धः (पुं०) माता, पिता, पुत्रादि का सम्बन्ध।
न्यकथः (वि०) फैलाना। (वीरो० १३/१९) नोकषायः (पुं०) कषाय के भाव, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद।
न्य भावः (पुं०) दीनता, घृणा, अपमान।
न्यभावित (वि०) अपमानित, घृणित। नोकृतिः (स्त्री०) निमूल नष्ट होना, गणितीय पद्धति, वर्गमूल, निकालने पर कुछ नहीं रहना।
न्यक्ष (वि.) [नियते क्रियते वा अक्षिणी यस्य] नीच, अधम, नो गौणः (पुं०) निरुक्त्यर्थ से रहित नाम-अमुद्र-समुद्र,
दुष्ट, पापी। अलाल-पलाल आदि।
न्यक्षः (पुं०) भैंस। नो गौण्यपदं (नपुं०) अनुगत अर्थ से रहित पद।
परशुराम नो चेत् (अव्य०) न हो, ऐसा न हो, फिर भी नहीं।
न्यगद् (सक०) कहना, बोलना (सुद० १२९) स्यान्नोचेद्हानि सा पुनीतम्बुजास्या। (सुद० ३/४५)
न्यगवृत्तिः (स्त्री०) नीचवृत्ति, अधम प्रवृत्ति-'न्यगवृत्ति कृता नोचेच्छत्रुः सम्भवेन्नात्र चित्रम्। (सु० ११०)
येन, स मुच्यतेऽत्र युक्ति किम्। (हित० सं० २८) अन्यथा, वरना, तो भी
न्यगाद (भू०) कह दिया, बोल दिया। (जयो० २०/८६) नो चेत् पुनः (अव्य०) फिर भी नहीं हो। अर्थ क्रियाकारितयाऽस्तु
न्यग्रोधः (पुं०) [न्यक्रूणद्धि-न्यक्रुध्+अच्] बरगद का वस्तु नो चेत् पुनः कस्य कुतः स्तवस्तु। (वीरो० १९/१)
पेड़। नोदनं (नपुं०) [नुद्+ल्युट्] हटाना, दूर करना, मिटाना।
एक संस्थान या आकृति विशेष। नाभि के ऊपर का ०ठेला, हांकना, आगे बढ़ाना।
शरीरवयव जो विशाल हो। नोधा (अव्य०) [नो+धा] नौ प्रकार, नौ गुणा।
न्यग्रोधो वटवृक्षः, समन्तान् मण्डलं परिमण्डलम्। नौः (स्त्री०) [नुद्यते अनया-नु।डौ] जहाज, नाव, नौका।
न्यग्रोधसंस्थान शरीरस्योर्ध्वभायेऽवयवपरमाणुबहुत्वम्। नौकर्णः (पुं०) मल्लाह, नाविक, पोत संचालक।
(जैन०ल० पृ० ६५३) नौकर्मन् (नपुं०) मल्लाह की आजीविका।
न्यग्रोधसंस्थानं (नपुं०) शरीरवयव। नौका (स्त्री०) [नौ कन्टाप] नौका, छोटी नाव, किश्ती। न्यंकुः (पुं०) बारहसिंहा। (वीरो० १८/३०)
न्यञ्च (वि०) [नि+अच्+क्विन्] नीचे की ओर जाता हुआ।
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