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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशित ५७३ निषादः निशित (वि०) [नि+शो+क्त] ०शान पर चढ़ा हुआ, पैना निश्चयतपश्चरणाचारः (पुं०) आत्मस्वरूप का तपन। किया हुआ। निश्चयदर्शनाचारः (पुं०) सम्यग्दर्शन का आचरण। उद्दीप्ति। निश्चयनयः (पुं०) ०शुद्धनय, निश्चयनय। (सम्य० ८२) निशितं (नपुं०) [नि+शो+क्त] लोहा, अयस्क। शुद्धद्रव्य निरूपणात्मक नय। ०महात्मनो निश्चयननिशीथः (पुं०) [निशेरते जना अस्मिन् निशो अधारे थक] यमात्मने हितं शुभकरमुशन्ति। (जयो०वृ० २/३) अर्द्धरात्रि, आधीरात। विलोकनेनास्य-निशीथनेतुः समुल्वणे निश्चल (वि०) [निस्+चल्+अच्] ०अटल, स्थिर, अडिग। सद्रससागरे तुं (जयो० ११/३) ०अन्धारक-अन्धकार। 'शुद्धात्मस्वरूप में स्थित आत्मा निश्चल। (सम्य० ८४) (वीरो० वृ० १/३९) अपरिवर्तनीय, अपरिवर्त्य। निशीथकरः (पुं०) चन्द्र, शशि। ०अचल। (जयो०वृ० १/९४) निशीथचरः (पुं०) राक्षस, पिशाच। निश्चला (स्त्री०) अचला, पृथ्वी। निशीथनेत (पुं०) चन्द्रमा, निशीथनेता-चन्द्रमा। (जयो०वृ०११/३) निश्चायक (वि०) [निसृ+चि+ण्वुल] निर्णयात्मक, अन्तिम, निशीथतीर्थ: (पु०) अर्द्ध रात्रि रूप जलाशय। निर्धारका 'निशीथोऽर्द्धरात्रि समयः स एव तीर्थो जलावगाहप्रदेशः' निश्चारकं (नपुं०) [निस्+च+ण्वुल] ०मलोत्सर्ग करना, (जयो० १६/१) ०अर्द्ध रात्रि का समय। प्रस्रवण करना। निशीथभावः (पुं०) अर्द्ध रात्रि का स्वभाव। (दयो० ४) ०हवा, पतन, वायु। निशीथसूत्रं (नपुं०) एक जैनागाम का ग्रन्था नन्दिसूत्र टिप्पण। हठ, स्वेच्छाचारिता। निशीथहरः (पुं०) चन्द्र। निषण्णकं (नपुं०) [निषण्ण+कन्] आसन, शय्या। निशीथिनी (स्त्री०) [निशीथ इनि+ङीष] रात्रि, रजनी। ०फलक, पाटा। निशुंभः (पुं०) [नि+शुम्भ+घञ्] ०वध, हत्या, प्राणघात। निषद्या (स्त्री०) [नि+सद्+क्यप्+टाप्] ०खटोला, पीला। तोड़ना, भग्न। आसन। (जयो० ५/५) ०एक राक्षस। दुकान, आपणिक स्थल। निशुभनाम् (नपुं०) [नि+शुभ+ल्युट्] वध करना, घात करना, मण्डी, मेला, हाट। हनन करना। पद्मासन आदि आसन से बैठना। निशेन्दु (स्त्री०) चन्द्रमा, शशि। 'निशा नाम स्त्री, इन्दोः' ०वावीस परीषहों में एक निषद्या परीषह, जिसमें पद्मासन स्वस्वामिनः परिरम्भवारात् आलिंगनसमयात् पर बैठकर ध्यान किया जाता है। (जयो०वृ०१५/३७) निषद्वरः (पुं०) [नि+सद्+ष्वरच्] दलदल, गारा। निशौतुकी (स्त्री०) विडाली, बिल्ली। 'निशा रात्रि मौतुकी निषद्वरी (स्त्री०) रात्रि, रजनी। विडाली।' (जयो०वृ० १५/४५) निषधः (पुं०) [नि+सद्+अच्] निषधदेश का शासक। निश्चयः (पुं०) [निस्+चि+अप] ०स्पष्टता, दृढ़ता, संकल्प निषध नामक पर्वत (जयो० २४/९) निर्धारण। (जयो० ५/४९) निषधगिरिः (पुं०) निषध पर्वत। योजना, प्रयोजन, उद्देश्य। निषधपर्वतः (पुं०) निषध नामक गिरि। स्थिर मत, दृढ़ विश्वास। निषधाचलः (पुं०) निषध पर्वत, जिसके ऊपर देव-देवियां व्यवस्थित क्रीडार्थ स्थित होते हैं। 'निषीधन्ति तस्मिन्निति निषधः, निश्चयकालः (पुं०) प्रवर्तन समय, आधारभूत समय। यस्मिन् देवा देव्यश्च क्रीडा) निषीधन्ति स निषधः। (तव्वा० ०समयादिविकल्परहित कालाणु। ३/११) निश्चयचारित्रं (नपुं०) वीतराग चारित्र, रागादिविकल्पों से | निषादः (पुं०) [नि+सद्+घञ्] ०एक जाति, जो पर्वतीय क्षेत्र रहित स्वाभाविक चरित्र। में रहती है। निश्चयज्ञानं (नपुं०) ०संकल्प-विकल्प रहित ज्ञान, परमानन्द चाण्डाल, वर्णसंकर जाति। स्वरूप का वेदन करने वाला ज्ञान। एक स्वर विशेष, सप्त स्वरों में एक स्वर। (जयो०११/४७) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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