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निमग्न
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निमिला
० दृढ़, प्रचण्ड, अरल।
० एकाकी, अकेला। निमग्न (भूक०कृ०) [नि+गरज्+क्त] निमग्न, तल्लीन।
० जलमग्न, डूबा हुआ, अप्लावित। • नीचे गया हुआ। ० अभिप्लुत, आच्छादित।
० अवसन्न, अप्रमुख। निमग्ना (स्त्री०) द्रव्य को नीचे ले जाने वाली नदी। (ति०प०
४/२३९) ० सरिता, प्रवाहिनी। निमज्जथुः (पुं०) [नि+मरुज्+अथुच्] डुबकी लगाना, गोता
लगाना, शयन करना, सो जाना। निमज्जनं (नपुं०) [नि+मस्ज्+ ल्युट्] स्नान करना, नहाना,
प्रक्षालन, डूबना 'समुल्वणे यस्य यशः शरीरे निमञ्जनत्रासवशेन
मीरे। (जयो० १/३०) निमञ्जनत्रासः (पुं०) डूब जाने का भय-'निमज्जनत्रासवशेन
ब्रुडनभयभीतेन' (जयो०वृ० १/३०) निमज्ज्य (सं०कृ०) डूबकर, निमग्न होकर-निमज्ज्य-बुडित्वा
(जयो० २३/३०) निमज्जित (वि०) [नि+मस्+क्त]० निमग्न, तल्लीन, तत्पर।
० डुबकी लगाने वाला, स्नान युक्त। निमज्जिताया जले
जवेन नेत्रानुमितं मुखं सुखेन। (जयो० १४/६४) निमंत्र (सक०) [नि+मंत्र] बुलाना, निमंत्रण देना, आह्वान
करना। ० आमन्त्रण करना, प्रस्ताव भेजना। निमंत्रणं (नपुं०) आमन्त्रण, आह्वान, बुलावा, न्यौता, आह्वानन।
(जयो० ४/१२, ४/२३) निमन्त्रणतातिः (स्त्री०) आमन्त्रण पत्रिका, कुंकुम पत्रिका,
कंकूपत्रिका, किसी विशेष समायोजन के लिए दिया जाने
वाला पत्र। (जयो०४/१३) निमंत्रणपत्रं (नपुं०) आमन्त्रण पत्र। 'दत्तमस्त्यापि निमन्त्रणपत्रमत्र
येन च भवान् गिरमत्र। (जयो० ४/२१) निमन्त्रित (वि०) आमन्त्रित, आहूत। (वीरो० १४/१५) निमयः (पुं०) [नि+मि+अच्] वस्तु-विनिमय, लेन-देन,
अदला-बदली, परस्पर आदान-प्रदान, क्रय-विक्रय। निमस्ज् (सक०) स्नान करना। (जयो० ६/४३) निमानं (नपुं०) [नि+मा+ ल्युट्] ० माप, ० मूल्य। निमि (पुं०) निमेष, आंख झपकना। निमित्तं (नपुं०) [नि+मिद्+क्त] नियमेन मीयते अङ्गीक्रियते
तन्निमित्तं सहायक। वस्तु सहायक सहयोग देने वाला, मददगार और जहां मदद की जाती है। (सम्य० १५)
० कारण, प्रयोजन, आधार, हेतु। ० चिह्न, संकेत, निशान। ० भविष्यसूचक ज्ञान, त्रिकालवर्ती भाव का कथन।
० लक्ष्य। निमित्तकारणं (नपुं०) हेतु की वास्तविकता। निमित्तकुशलः (पुं०) निमित्त में निपुण, लोक को आदेश देने
वाला। (जयो० १९/६८) निमित्तज्ञानं (नपुं०) कारण का ज्ञान, निमित्त कुशल। निमित्तज्ञानार्थ (वि०) निमित्तज्ञान की प्राप्ति के लिए। णमो
अदंग-महाणिमित्त-कुसलाणं एतत्पदं निमित्तज्ञानार्थं पठ्यते'
(जयो०वृ० १९/६८) निमित्ततन्निन् (वि०) निमित्तज्ञानी,ज्योतिषी 'समं समालोच्य स
आत्ममन्त्रिभिस्तदेवमापृच्छय निमित्ततन्त्रिभिः। (जयो०३/६६) निमित्तधर्मः (पुं०) प्रायश्चित्त, सामायिक संस्कार। निमित्त-नैमित्तिकः (पुं०) एक-दूसरे का सम्बन्ध, कार्य-कार्य
का योग। 'सत्योदनेऽभ्येति च भुक्तये स, ० न सर्वथा नूनमुदेति जातु, यदस्ति नश्यत्तदथो न भातु। निमित्त-नैमित्तिकभावतस्तु, रूपान्तरं सन्दधकस्ति वस्तु।। (वीरो० १९/३९) ० कार्मण स्कन्ध निमित्त है और आत्मा नैमित्तिक। जैसे कमल के लिए सूर्य का उदय। (सम्य० १५) निमित्तनैमिक्तिकयोग एषः। क्षुधातुरः, किन्तु व्रती न याति, तथैव
दैवाय नुरस्तिजातिः।। (समु०८/१९) निमित्तपिण्डः (पुं०) उत्पादन दोष, भिक्षा का कारण बनाना,
भिक्षा का दोष। निमित्तविद् (वि०) शकुन ज्ञाता/भविष्यज्ञाता। निमित्तविद् (पुं०) ज्योतिषी। निमित्तशास्त्र (नपुं०) ज्योतिषी शास्त्र। (जयो० २/५८) निमित्तशुद्धिः (स्त्री०) शुभ शब्दों का सुनना। निमित्तसम्यग्दर्शनं (नपुं०) निमित्त से उत्पन्न होने वाला
सम्यग्दर्शन। 'निमित्तात् प्रतिमादिकात्, सम्यक्त्वं
निमित्तसम्यग्दर्शनमुच्यते' निमिषः (पुं०) [नि+मिष्।क] ०पालभार, ०क्षणभर, पलक,
झपकाना, ०आंख बन्द करना, ०बन्द होना। निमीलनं (नपुं०) [नि+मील+ल्युट्] पलक झपकाना, बन्द
होना। निमिला (स्त्री०) [नि+मील+अ+टाप्] आंखें बन्द करना,
झपकाना।
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