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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निपीडनं ५५६ निभृत निपीडनं (नपुं०) [नि+पीड्+णिच् ल्युट्] निचोड़ना, भींचना, ० गांठ, सहारा, टेक। दबाना, चोट पहुंचना। ० पराश्रयता सम्बन्ध। निपीयते (वर्त०) पीया जाना। (जयो० १६/९) ० अन्योन्याश्रित। निपुण (वि०) [नि+पुण+क] ० कारण, मूल, हेतु, आधार, प्रयोजन। ० चतुर, चालाक, होशियार। (जयो० ६/९८) ० आगार, आधार। ० बुद्धिमान्, कुशल, प्रवीण। • एक बद्धता युक्त लेख। ० परिचित, जानकार, अनुभवशील। ० नियोजन, अनुदाना निपुणं (अव्य०) चतुराई से, चालाकी से, कुशलता से। ० भाष्य, किसी ग्रन्थ की विशेष व्याख्या। निपूतः (पुं०) प्रभावित, प्रक्षालन। पवित्र (जयो० ११/११) निबन्धनी (स्त्री०) [निबन्धन ङीप] हथकड़ी, बन्ध, डोरी, रस्सी। निपूतपादः (पुं०) प्रक्षालितचरण। नितरां पवित्रौ पादौ (जयो० निबर्हण (वि०) [नि+बह ल्युट्] विनाशक, घातक, विध्वंसक २४/६५) नष्ट करने वाला। निपूरः (पुं०) शब्द प्रवाह, जलप्रवाह। (जयो० ३/९३) निबर्हणं (नपुं०) ० वध, घात, . ध्वंस, विनाश। निपूर-पूरित (वि०) जल प्रवाह से पूरित, शब्द प्रवाह से | निबिड (वि०) [नि विड्क ] सघन, तीव्र, व्यापक। युक्त। (जयो० ३/९३) निभ (वि०) [न+भा+क] समान, एक सा, अनुरूप। निपूरित (वि०) भरा हुआ, सम्भृत। (जयो०१०/११३) 'चरित्रनायकश्चन्द्र इव बभौ, परे च सर्वे नक्षत्रनिभा जाताः' निफेन प्रकार: (पुं०) फेन कण, छाग कण। (जयो० १३/९१) (जयो० ५/२७) निबद्ध (भू०क०कृ०) [नि+बन्ध+क्त] निभं (नपुं०) दर्शन, प्रकाश, प्रकटीकरण, बहाना, छद्मवेश, ० • बांधा गया, जकड़ा गया। कल्प, प्रयास। (जयो०वृ० ४/१३) 'शङ्क-शोधननिभं ० संलग्न, जुड़े हुए। 'दृग्भ्यां समं निबद्धौ हस्तौ कृत्वा हद् सहसाऽदः' (जयो० ४/१३) गिरमपि प्रशस्तौ' (सुद० ११५) निभल् (सक०) देखना, अवलोकन करना। 'विघटनं नहि ० साथ, सम्बद्ध-निबद्धवैरेण च तेन भोगिनां वरेण दष्टः संघटनं च पुनः प्रतिनिभालयतां सकलो जनः' (जयो० सहसैव कोपिना। (समु० १/११) ९/४८) 'दम्भं परन्त्वत्र निभालयामि पश्यामि' निभालयामो ० निर्मित, जटित, खञ्चित। (वीरो० ९/१) (जयो०वृ० १/२९) निभालयाम, (सुद० निबन्धः (पुं०) [नि+बन्ध+घञ्] प्रबन्ध, लेखन विधि। ५/१) 'अहो धूर्तस्य धौर्यं निभालताम्' (सुद० १०५) ० बांधना, कसना, जकड़ना। निभालनं (नपुं०) [नि+भल्+णिच् ल्युट] ० देखना, अवलोकन ० रचना करना, लेखन, लिखना, कृति। करना। (वीरो० ९/१), ० दृष्टि, प्रत्यक्षीकरण। ० नियन्त्रण, अवरोध, रोक, बन्धन। निभालयन्त (वि०) देखने वाला। निभालयन्तं समरूपतोऽन्यं ० हथकड़ी। किं निर्धनं पुनरत्र धन्यम्। (सुद० ११९) ० सम्पत्ति का दान। निभूत (वि०) [नि+भू+क्त] ० हेतु, कारण। ० डरा हुआ, भयभीत, भयाक्रान्त। ० गड़बड़ी। (वीरो० १९/४३) ० गया हुआ, बीता हुआ। निबन्धनं (नपुं०) प्रबन्धन, हिसाव, लेखाजोखा। | निभृत (वि०) [नि+भृ+क्त] रक्खा हुआ, पहनाए गए। निभृतं 'प्रजोपयोगिवस्तूनामाय-व्यय-निबन्धनम्। विधाय योग-क्षेमार्थं स शिवाश्रियाऽभितः सुकपोल समुपेत्य चुम्बित: (सुद० यतिश्च मषिरित्यसौ।। (हि०सं०९) ३/१९) संगृहीत, संकलित, इकट्ठा किया हुआ। • बांधना, जकड़ना, जोड़ना, मिलाना। ० छिपाया हुआ, गुप्त, अवलोकित प्रच्छन्न। ० संरचना करना, निर्माण करना। ० चुप, शान्त। ० नियन्त्रण कराना, रोकना, कैद करना। ० स्थिर, नियत, अचल, गतिहीन ० बन्धन, हथकड़ी। ० मृदु, सौम्य, सरल। चता For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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