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निजप्रतीकः
५५१
निजोन्नतिः
निजप्रतीकः (पुं०) स्वकीयमङ्ग, अपने अंग के चिह्न। १/९९) २. वृत्तपर्यन्त-'निजवतंसपद इति वृत्तपर्यन्तम्'
'यदेवमिन्दीवरपुण्डरीकसारैः समारब्धनिजप्रतीकम्' (जयो० (जयो०वृ० १/९१) १६/४१)
निजवतंसपदं (नपुं०) मुकुट स्थन। निजप्रयत्नं (नपुं०) अपना प्रयत्न, अपना उद्यम, स्वकीय निजवर्तनं (नपुं०) अपना परिणमन। (भक्ति० २७)
परिश्रम निजप्रयत्नेन तदेक नाम। (समु० १/३२) निजवित्तं (नपुं०) अपना धन। 'सकल जनानां निजवित्तस्य च निजफलं (नपुं०) आत्म परिणाम।
लुण्टाकेभ्यस्त्रात्री यमायाताऽरमहो कलिरात्रिः' (सुद० ९७) निजबन्धुः (नपुं०) आत्मबन्धन, स्वकीय बन्धन।
निजवैभवः (पुं०) अपनी सम्पत्ति, अपना धन, अपना राज्य। निजबन्धुजनः (पुं०) स्वकीय मित्रजन, कुटुम्बीजन। पृथुतुजेऽत्यसृजन्निजवैभवं प्रतिविधातुमुदीय स वैभवम्।
'निजबन्धुजनस्य सम्पदाम्बुनिधिं स्वप्रतिपत्तितस्दा' (सुद० (समु० ७/२२) ३/२७)
निजवृत्तं (नपुं०) आत्म चरित्र, अपना वृतान्त। 'नगरं प्रविवेश निजबान्धवः (पुं०) कुटुम्बीजन।
वैभवान्निज वृत्तं कियदेषु संवदन्' (जयो० २१/७३) निजभरणं (नपुं०) स्वोदरपूर्ति।
निजशुद्धिः (स्त्री०) मनः सम्यग्भाव। (जयो० २३/८५) निजभर्तु (पुं०) अपना स्वामी। (जयो० ४/२९)
निजहितः (पुं०) आत्मकल्याण, स्वकल्याण, अपना हित। निजभारः (पुं०) अपना बोझ।
'आत्मनो निजहिते/आत्मकल्याणे योजनं प्रवर्तमस्ति' निजभावः (पुं०) अपना, अभिप्राय, आहम-परिणाम।
(जयो०१० २/५०) निजभावना (स्त्री०) आत्मचिन्तन, स्वकीय अनुचिन्तन। निजाडू (नपुं०) क्रोड, गोद। पितरौ तु विषेदातुः सुतां न निजभेदः (पुं०) आत्मभेद।
तथाऽऽजन्मनिजाङ्गवर्द्धितम्। (जयो० १३/२२) निजभ्रातृ (पुं०) सहोदर।
निजात्मानुयुक् (वि०) आत्मा में लीन। इत्याज्ञाविचये समर्थितमना निजमङ्गजः (पुं०) अपने छोटे छोटे बच्चे। (जयो० १३/१५) भूयान्निजात्मानुयुक्। (मुनि०पृ० २२) निजमतः (पुं०) अपना अभिप्राय, अपना विचार।
निजार्द्ध-देहानुमित (वि०) अर्धाङ्गिनी रूप में परिणत। (जयो० निजमतिः (स्त्री०) अपनी बुद्धि। (सुद० ९०)
२४/६) 'गिरीश्वरः सेवत एव सत्तमा निदाद्धदेहानुमितां तु निजमदः (पुं०) अपना अभिमान।
पार्वतीम्। (जयो० २४/६) निजमनस् (नपुं०) स्वकीय मन।
निजान्तरङ्गं (नपुं०) अपना मन। निजनिजन्तरङ्गे मोदं हर्षमुपेत्य निजमनोभावः (नपुं०) अपना मनोगत अभिप्राय, अपना (जयो० ४/५०) आशय।
निजासनं (नपुं०) अपना आसन, ब्रह्मासन, कमलासन। निजयीप्सित (वि०) स्वाभिलषित। (जयो०व० ४८)
निजासने चाकुलतां प्रयाता चक्रे न वै मध्यमितीव घाता। निजयशस् (पुं०) आत्मख्याति, अपनी प्रसिद्धि। (सुद० ८९) (जयो० ११/२५)
'क्षणिकनर्मणि निजयाशोमणिसुलभं च जहातु-(सुद० ८९) निजीय (वि०) आत्मीय, स्वकीय। (समु०८/२०) 'प्रसादयन् निजरत्नं (नपुं०) अपना रत्न, अपने कीमती रत्न। 'स भद्रमित्रं बुद्धिमहो निजीयाम्' (वीरो० १८/३३) निजरत्लवस्तुनः' (समु० ४/१)
निजीयलीला (स्त्री०) अपनी मनमानी। (वीरो० ११/७) निजरत्नसारः (पुं०) रत्नत्रय सार।
निजेच्छा (स्त्री०) अपनी इच्छा, इच्छानुसार। (वीरो०८/१३) निजराशिः (स्त्री०) स्वकीय समूह।
___'आगता दैवसंयोगाद्विहरन्ती निजेच्छया' (सुद० १३३) निजरुदनं (नपुं०) अपना क्रन्दन।
निजोचितः (पुं०) आत्मानुकूल, आत्मानुरूप। (जयो० १०/८४) निजलाभः (पुं०) आत्म लाभ।
अपने योग्य, अभीष्ट। 'पुरी-परीतमुपेत्य निजोचित' परिकरं निजलालसा (स्त्री०) आत्म इच्छा, स्वकीय इच्छा।
परमत्र सुसंहितम्। (समु०७/१३) निजलोभः (पुं०) अपनी अभिलाषा, चाह, इच्छा, लालच। | निजोद्देशसमर्थनं (नपुं०) अपने उद्देश्य की पुष्टिा (वीरो० १८/२५) निजवतंसं (नपुं०) १. स्वकीय आभूषण, मुकुटस्थान। (जयो० | निजोन्नतिः (स्त्री०) आत्मोत्कर्ष, आत्मोन्नति, अपनी प्रगति।
१/९९) निजस्य स्वस्य वतंसपदे/मुकुटस्थाने (जयो०वृ० परोत्कषसहिष्णुत्वं जह्याद्वाञ्छन्निजोन्नतिम्। (सुद० ४/४२)
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