SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निचोल: ५५० निजप्रजा निचोलः (पुं०) [नि+चुल्+घञ्] . चूंघट, पर्दा, अवगुण्ठन। निजजीवनं (नपुं०) स्वकीय जीवन।। ० कुचवस्त्र। (जयो० १३/८४) ० विछाने की चादर। निजजीवनत्रुटि: (स्त्री०) अपने जीवन की गलती आमीय। ० डोली का आवरण-डोली का पर्दा (सुद० ११६) निचोलकः (पुं०) [निचोल+कै+व] चोली, बनियान, जाकेट। | निजज्योतिः (स्त्री०) आत्म प्रकाश। निच्छविः (स्त्री०) एक प्रदेश। निजटंकारः (पुं०) स्वध्वनि। निच्छविः (वि०) प्रभा विहीन। निजतत्त्वं (नपुं०) आत्म तत्त्व। (जयो० २३/८९) निज् (सक०) धोना, साफ करना। निजतपः (पुं०) स्वकीय तप। ० स्वच्छ करना, निर्मल करना, पवित्र बनाना। निजतोषः (पुं०) आत्म संतोष। ० पोषण करना। निजद्रव्यं (नपुं०) आत्म द्रव्य! १. अपना धन। ० प्रक्षालन करना, छिड़कना। निजदासी (स्त्री०) अपनी दासी स्वकीय चेटी। (जयो० १२/११०) निज (वि०) [नि+जन्+ड] अपना, स्वकीय, आत्मीय। 'परिहासवचोभिरेव धन्यान्निजदासीभिरभोजयत्स जन्यान्' (सुद० ११६) आत्मन्, अपने (सुद० ३/१८) 'भवः स (जयो० १२/११०) गौरी निजमधर्मङ्गम्' त्यक्त्वा निजं विजानातु निजदेशः (पुं०) अपना देश, स्वदेश। (जयो०० २१/७३) (जयो० १/१५) सुधारसमय बुधः (जयो०वृ० २७/६३) निजदोषः (पुं०) अपनी त्रुटि, स्वकीय दोष। देही देहस्वरूपं स्वं देह सम्बन्धिनं गणम्। निजधनं (नपुं०) स्वकीय वित्त, अपना द्रव्य। मत्वा निजं पर सर्वमन्यदित्येष मन्यते।। (सुद० ४/७) निजधान्यं (नपुं०) अपना धान्य। विलोमगामिन चैव निजं जिनोऽभवत्। निजधी (स्त्री०) स्वकीय बुद्धि। सहिष्णुभावतः स्वीयां शक्तिमुद्योत यन्नये।। (जयो० २९/२१) निज-नंदः (पुं०) आत्मानंद। • चिरस्थायी, सदैव रहने वाला। निजनारी (स्त्री०) अपनी स्त्री। ० विशिष्ट। निजनिजकर्मन् (नपुं०) अपने अपने कर्म। 'निज-निजकर्मणि निजकरं (नपुं०) अपने हाथ। कुशलाः परथाऽमीमूर्षि संपतन्मुशलाः। (जयो० २/११५) निजकल्मष (नपुं०) अपने पापा (वीरो० १४/४९) निजपति (पुं०) अपना पति। (सुद० ८७) निजकारणं (नपुं०) स्वकीय कारण, अपना हेतु। निजपत्तन (नपुं०) अपना नगर। (वीरो० ७/७) निजकीर्तिः (स्त्री०) आत्मयश, स्वमशोगान। 'निजकीर्तिकुलानि निजपदं (नपुं०) अपना स्थान। कुल्यराट्' (जयो० १३/६६) निजपथः (पुं०) अपना मार्ग। निजकेन्दं (नपुं०) स्वस्थान। (जयो० ४/१) निजपल्लवः (पुं०) अपने पल्लव, अपने वृक्षों की कोमलता। निजखण्डं (नपुं०) अपना हिस्सा। (सुद० ४/१) 'अथ कदापि वसन्तवदाययावुपवन निजग (वि०) निजी, अपना, स्वकीय। निजगौ महीयान्। निजपल्लवमायया' (सुद०४/१) (सुद०८/३) निजपरिकरेणान्वित (वि०) अपने परिकर सहित, निजचारित्रं (नपुं०) अपना चरित्र, स्वकीय आचरण। परिच्छिदहान्वित। (जयो०१० १३/१३) निजचेटिका (स्त्री०) अपनी दासी। (सुद० ८६) निजपश्चिमः (पुं०) स्वपृष्ठस्थित, पीछे स्थित। 'करित्तदानीं निजचेष्टा (स्त्री०) स्वगति, अपनी चेष्टा, अपनी क्रिया निजपश्चिमेन विलूनमूर्धा निपपात तेन। (जयो० ८/३१) (जयो०वृ० १४/२८) निजपाणिः (पुं०) हस्त, हाथ, स्वहस्त। चिरोच्चितासिव्यसनापदे निजचेष्टित (वि०) चेष्टा युक्त। (वीरो० २२/४) ____ तुक् सोमस्य जायुं निजपाणये तु। (जयो० १/७५) निजजन्मन् (नपुं०) अपना जन्म, अपनी उत्पत्ति, अपनी निजपाणि: (स्त्री०) अपना हस्तदान, पाणिग्रहण का दान। जाति, जन्मस्थान का केंद्र। निजपात्रं (नपुं०) अपना पात्र। निजजाति (स्त्री०) अपनी उत्पत्ति, अपनी जाति, जन्मस्थान निजप्रजा (स्त्री०) अपनी प्रजा। 'निजप्रजायाः यः प्रतिपाली' का केंद्र। (सुद० १/३८) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy