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नादः
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नाभिगोलः
नादः (०) [नद्+घञ्] शब्द, ध्वनि, चीख, चिल्लाहट,
गरजना, दहाड़ना, निनाद, घोषणा। नादिन् (वि०) [नद्+णिनि] शब्द करने वाला, चिल्लाने वाला। नादेय (पुं०) [नदी+ठक्] जलीय, नदी में उत्पन्न, समुद्र में उत्पन्न। नादेयं (नपुं०) सेंधा नमक। नाना (अव्य०) [न+नाञ्] अनेक प्रकार के, विविध प्रकार
के, तरह-तरह के, अलग-अलग, पृथक्-पृथक्, विभिन्न। नानांद्रः (पुं०) [ननांदृ+अण्] ननद का पुत्र। नानाकुकर्मः (पुं०) अनेक प्रकार के दुराचरण। (जयो० २/) नानाकुचेष्टा (स्त्री०) अनेक कुचेष्टाएं, विविध दुष्प्रवृत्तियां।
इत्यादि सङ्गीतिपरायणा च सा नानाकुचेष्टा दधती नरङ्कषा। कामित्वमापादयितुं रसादितऐच्छत्समालिङ्गन चुम्बनादितः।।
(सुद० १२३) नानाकुयोनिः (स्त्री०) विविध निम्न योनियां। (वीरो० ११/१०) नानागृहं (नपुं०) अनेक घर, तरह तरह के घर। नानाचरणं (नपुं०) अनेक प्रकार का आचरण। नानाचरित्रं (नपुं०) तरह तरह के चरित्र चित्रण। नानाजडः (पुं०) अनेक अचेतन पदार्थ। नित्योऽहमेकः खलु
चिद्विलासी, नानाजडो दृश्यविधिर्विनाशी। (भक्ति० २६) नानाजातिः (स्त्री०) विविध जन्म स्थान, अनेक जातियां,
अनेक उत्पत्ति स्थल। नानाज्योतिः (स्त्री०) विविध प्रकाश। नानातपः (पुं०) अनेक प्रकार के तप। नानादरिणी (वि०) अनुकूलाभाव युक्त, प्रतिकूल प्रवृत्ति युक्त। नानादोषः (पुं०) अनेक दोष, विविध दुराचरण। नानाधर्मः (पुं०) अनेक धर्म। नानापदं (नपुं०) अनेक प्रकार पद/स्थान। नानाप्रकृतिः (स्त्री०) अनेक स्वभाव। (वीरो० १८/३४) नानाफलं (नपुं०) विविध परिणाम। अनेक कर्मविध फल। नानाभावः (पुं०) विविधभाव। नानामणि (स्त्री०) विधिमणिरत्न। नानामणि-मण्डलांशु (नपुं०) नाना प्रकार की मणिसमूह की
किरणें। (जयो० २४/२१) 'नानामणयस्तेषां मण्डलस्यांशुभिः
किरणैः' (जयो०वृ० २४/२१) नानामहिः (स्त्री०) विविध पृथिवियां। (सुद० १/३९) नानामहिम-विधानं (नपुं०) अनेक प्रकार के इष्ट दान।
(सुद० १/३९) ० विविध महिमा धारक।
नानारदा (स्त्री०) बहुत दांत। (जयो० १/६१) नानारस (स्त्री०) विविध रस युक्त। नानारूपा (वि०) विविध रूपों वाले। (जयो०० १/३२) नामावर्ण (वि०) भिन्न-भिन्न रंगों वाले। नानाविध (अव्य०) विविध रीति से। नानाविधान (नपुं०) नाना प्रकार। (वीरो० ४/३९) नानाव्यञ्जनं (नपुं०) विविध पकवान्। षड्रसमय-नाना___ व्यञ्जनदलमचि कलमवि च सुधायाः। (सुद०७२) नानुया (वि०) अनुगमन नहीं करने वाला। (जयो० २/७) नांत (वि०) अन्त रहित, अनन्त। नांदिकरः (पुं०) [नान्दी करोति-कृ+ट] नांदी पाठ कर्ता। नांदी (स्त्री०) [नन्दन्ति देवा अत्र-नन्द्+घञ्] हर्ष, सन्तोष,
खुशी। १. समृद्धि। नांदीनिनादः (पुं०) हर्षनाद। नांदीमुख (वि०) पुण्यस्मृति की भावना। नांदीवादिन् (पुं०) नांदी पाठ कर्ता। नाधिकलम्ब (वि०) दीर्धता रहित। (जयो० ११/८९) नापितः (पुं०) [न आप्नोति सरलताम-न। आप्न तन्] नाई,
क्षौर कर्मी। नापिप्यं (नपुं०) [नापित+ष्यञ्] नाई का व्यवसाय। नाभिः (पुं०/स्त्री०) [नह इञ्]
० तुण्डी -जयो० ३/४७, (सुद० २/४७) (वीरो० ३/२२) ० सूंडी। ० केन्द्र, केन्द्र बिन्दु (सुद०७४) ० मुख्यभाग, प्रधान, अग्रणी। ० आधारभूत। ० चक्रधूरी।
० नाभि राजा, प्रथम तीर्थंकर के पिता। नाभिक-नाभिक (वि०) नाभितक व्याप्त, नाभिस्तुण्डी यस्या,
एवं स्वार्थक प्रत्ययश्च (जयो०६/४६) नाभिका (स्त्री०) तुण्डी। 'सद्याप पद्मा हृदि नाभिकापि' (जयो०
१/५८) नाभिकुहरः (पुं०) तुण्डिकाप्रदेश, नाभिगत। (जयो० २४/१३५) नाभिकूपः (पुं०) नाभिगर्त। (जयो० १७/६७) गहीर नाभियुक्त।
(सुद० ११९) नाभिगर्तः (पुं०) नाभिकुहर, नाभिकूप, तुण्डिकाकूप। (जयो०
१७/६७) नाभिगोल: (०) तुण्डी। (जयो० ११/३२) तारुण्यलक्ष्म्या
गलिताथ नाभिगोलान्मषेः सन्ततिरेष भामिः। (जयो० ११/३२)
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