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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागयष्टिः ५३९ नाथसोमाभिधः नागयष्टिः (स्त्री०) एक गहराई नापने का बांस। नाटितकं (नपुं०) [नट+णिच्+क्त+कन्] अनुकृति, संकेत, नागर (वि०) [नगर+अण] नगर में उत्पन्न, नगर में पला। ० चेष्टा, हाव-भाव। नम्र, शिष्ट, चतुर, चालाक। नाट्यं (नपुं०) [नट्+ष्यञ्] नाचना, अनुकरणात्मक चित्रण, नागरः (पुं०) नागरिक। १. देवर, २. व्याख्यान, ३. नारंगी। ४. हाव-भाव, प्रदर्शन। (समु०८/४) लिपि विशेष। नाट्यन्ती (वर्तकृ०) नाचती हुई। (वीरो० २/४४) नागरक (वि०) नगर में उत्पन्न। नाट्यर (वि०) नाटक, नृत्य। (वीरो० ७/३८) नागरी (स्त्री०) नागरी लिपि। नाट्यशाला (स्त्री०) रंगमंच। (वीरो० १३/१०) नागरीट: (पुं०) लम्पट, दुश्चरित्र, जार। नाडि (स्त्री०) [नड-णिच+इनि] कमल नाल। नागरुकः (पुं०) संतरा, नारंगी। नाडिका (स्त्री०) [नाडि कन्+टाप्] ० घड़ी, २४ मिनट का नागरेणुः (स्त्री०) सिन्दूर। समय। ० नली के आकार का अंग। नागर्यम् (नपुं०) बुद्धिमत्ता, चतुराई। नाडिधमः (पुं०) सुनार, स्वर्णकार। नागलता (स्त्री०) नागवल्ली, ताम्बूल, मालुदल। नाणकं (नपुं०) [न+आणकम् इति] वित्त (जयो०७० ३/१) नागलोकः (पुं०) भूलोक, सर्पलोक। सिक्का, मोहर लगी हुई वस्तु। नागवल्ली (स्त्री०) पान, तम्बूल, मालुदल। (जयो० १०/६३, | नात (भू०क०कृ०) नहीं होना (सुद० ११४) १२/१३४) ० सौधसम्पदद्दल (जयो०वृ० १२/१३४) नातिचर (वि०) [न अतिचदः] जो लम्बी दूरी का न हो। नागवारिकः (पुं०) महावत, राजकील हस्ति, मयूर। नातिचार (वि०) [न अतिचरः] अतिचार रहित, दोष रहित, नागशय्या (स्त्री०) शेषनाग का आसन। (जयो०वृ० १२८३) अहिंसादि व्रतों में दोष से विमुक्त। नागसम्भवं (नपुं०) सिन्दूर। (जयो० १०/४२) नातिदूर (वि०) [न+अतिदूरः] समीप, पास में, अधिक दूरी नागसंभूतं (नपुं०) सिन्दूर। से रहित। नागांगना (स्त्री०) हथिनी। नातिवादः (पुं०) [न+अतिवाद:] अतिवाद/दुर्वचन रहित, नागसेवित (वि.) सत्पुरुषों से आराधित। नागैः सत्पुरुषैः । अपशब्द से रहित। सेवित आराधित। (जयो० ३/५) नाथ् (सक०) निवेदन करना, याचना करना, प्रार्थना करना। नागांजना (स्त्री०) हथिनी। ० शक्ति रखना, सामर्थ्य होना। नागांतकः (पुं०) गरुड़। ० तंग करना, कष्ट देना। नागधिपः (पुं०) शेषनाग। नाथ: (पुं०) [नाथ्+अच्] ० प्रभु, स्वामी, नायक, रक्षक नागारातिः (पुं०) गरुड़। (जयो० १/३७) नागरिः (पुं०) गरुड़ा ० पति (जयो० २/१४१) नागाननः (पुं०) गणपति, गणेश। ० एकोऽद्वितीयश्चासौ नाथ: स्वामी (जयो० १/३७) नागाशनः (पुं०) मयूर। ० नाथवंश (जयो० ७२/११०) नागेन्द्रः (पुं०) धरणेन्द्र देव। नाथचरः (पुं०) पति। 'गतेर्षयां नाथचरामङ्गना' (जयो० २/१४१) नाचिकेत: (पुं०) अग्नि, वह्नि। नाथ-नामवंशः (पुं०) नाथ नामक वंश। अथ कश्चन नाग्न्यपरीषहजयः (पुं०) बाईस परीषहों में नग्नता का सहन नाथनामवंशसमयस्य स्म समीष्यते वतंसः। (जयो० करना। १२/११०) नाटः (पुं०) [नट्+घञ्] नाचना, अभिनय करना। नाथवंशः (पुं०) नाथवंश। नाटकं (नपुं०) [नट्+ण्वुल्] स्वांग, रूपक, रूपक का एक भेद। | नाथवंशिन् (पुं०) नाथवंश, वाले राजा। 'नाथवंशिन् इवेन्दुवैशिनः' नाटकीय (वि०) नाटक सम्बन्धी, नाटक विषयक। ये भुतोऽपि परपक्ष शंसिनः' (जयो० ७/९१) नाटारः (पुं०) [नट्या अपत्यम् आरक्] अभिनेत्री का पुत्र। नाथ-सोम-संज्ञकः (पुं०) नाथवंश और सोमवंश। (जयो०७/३७) नाटिका (स्त्री०) [नाट्+कन्+टाप्] एक लघु नाटिका, प्रहसन। | नाथसोमाभिधः (पुं०) नाथ और सोमवंश। (जयो० ७/३७) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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