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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवविध ५३७ नहि कोऽत्र नवविध (वि०) नौ तरह का। भाग जाना, उड़ जाना, बच निकलना। ० असफल होना, नवशतं (नपुं०) ० एक सौ नौ। ० नौ सौ। अन्तर्धान होना। ० हटा देना, मिटा देना। नवशशिभृत् (पुं०) शिव। नश (स्त्री०) नाश, हानि, विनाश अन्तर्धान, ध्वंस। नवषष्टिः (स्त्री०) उनहत्तर। नश्वर (वि०) [नश् क्वख्] क्षणभुगर, क्षणस्थायी, अनित्य, नवसूतिः (स्त्री०) नई प्रसूतिका गाय। जच्चा स्त्री। अस्थायी अशाश्वत, अस्थिर। नवसूतिका देखो ऊपर। नष्ट (भू०क०कृ०) [नश्+क्त] •लुप्त, ०अदृश्य, समाप्त नवान्नं (नपुं०) नूतन धान्य, नया चावल। ०ध्वस्त, पलायित, उच्छिन्न, विनष्ट । नवाङ्करं (नपुं०) नूतन अंकुर। ० वंचित, भागा हुआ, मुक्त। ० क्षीण, भ्रष्टा नवाकृतिः (स्त्री०) नूतन आकृति, सुन्दर छवि। नष्टकषाय (वि०) क्षीण कषाय, कषाय रहित। नवाड़ी (स्त्री०) नवयौवना। (वीरो० ४/२९) नष्टकर्म (वि०) कर्म रहित, कर्म मुक्त। नवाम्बु (नपुं०) ताजा पानी, स्वच्छ जल। नष्टकान्तिः (स्त्री०) यश रहित। नवानवा (स्त्री०) नृतन संपदा। (वीरो० १३/६) (जयो० ३/११५) नष्टकाय (वि०) क्षीणकाय वाला, कृशकायो। नवालका (स्त्री०) नूतन केश। (वीरो० ८/४६) नए केश। नष्टखेद (वि०) आवरण विमुक्त। (वीरो० २०/१४) 'नवा नवीना अलकाः केशा यस्य अथ च बालको न नष्टगृह (वि०) गृह विहीन। भवतीति' (जयो० ११/७९) नष्टचन्द्र (वि०) क्षीणचन्द्र। नवालता (वि०) नवीनता। (समु० ३/२२) 'नवालता यत्र (समु० नष्टज्योति (वि०) ज्योति विहीन। ६/२२) बभूव साऽधुना' नवीन वल्लरी। (जयो० ११४८९) नष्टपाप (वि०) पाप रहित। नवाशीतिः (स्त्री०) नवासी। नष्टयश (वि०) क्षीण यश। नवासुरा (स्त्री०) नूतनमदिरा। (जयो० १५/५४) नष्टसंशय (वि०) संशय विमुक्त। नवोद्धत (वि०) नवनिर्गत। नवोद्धतं नाम दधत्तदिन्दुबिम्ब नष्टसौरभ (वि०) सौरभ विहीन। बभूवेह-घृतस्य विन्दुः। (जयो० १६/२२) नष्टोधिष्टार्थ (वि०) प्रनाशार्थ। (जयो० १९/६९) नवीन (वि०) नया, ताजा, नयापन। (वीरो० १०/१२) नस् (स्त्री०) [नस्+क्विप्] नासिका, नाक। नवौढा (स्त्री०) नवयौवना स्त्री। (जयो० १६/५८) (वीरो० नस्तस् (अव्य०) [नस्+तसिल] नरक से। नव्य (वि०) १. नवीन, नया। २. नव्य-व्याकरण। नसा (स्त्री०) नाक, नासिका। नव्य-भव्यः (०) अत्यधिक सुन्दर, नूतन सौन्दर्य। (जयो० नस्तः (पुं०) [नसृ+क्त] नाक। ५/६७) दृष्टिराशु पतिता विमलायां नव्यभव्यरजनी नस्तं (नपुं०) [नस्+ल्युट्] नासिका, सूंघनी, नसवार। शकलायाम्। (जयो० ५/६७) 'नव्यो नवीनोऽत एव भव्यो नस्तित (वि०) [नस्त+इतच्] नाक में रस्सी डालकर। मनोहरो योऽसौ। (जयोवृ० ३/६७) नस्य (वि०) [नासिक+यत्] अनुनासिक। नस्यं (नपुं०) नाक का बाल, १. सूंघनी। नव्यभव्यनिवहः (पु०) नव दीक्षित भव्य समूह। (जयो० नह (सक०) बांधना, पहनना, धारण करना, कसना, सुसज्जित २१/२७) ० नए दीक्षार्थियों का समूह। करना। नव्य-मालती (स्त्री०) नवीन मालती पुष्प। नहि (अव्य०) निश्चय ही नहीं, यथार्थ रूप में नहीं, नवमाला (स्त्री०) नवीनस्रक, नई माला! ०वास्तव में नहीं किसी रूप में नहीं, बिल्कुल नहीं। नव्यरथः (पुं०) नया यान, रथ। (सम्य० ३९) 'नहि करोम्यहमेतदिहाग्रत: विषभिषग् ध्रियतां नव्याकृतिः (स्त्री०) नव्य व्याकरण। नव्याकृति में शृणु भो स महानतः। (समु० ७/१५) 'बलमखिलं निष्फलं च सुचित्वं कुतः पुनः सम्भवतात्कवित्वम्। वक्तव्यतोऽलंकृति तच्चेदात्मबलंनहि यस्या (सुद०७०) नहि परतल्पमेति स ना तु। दूरवृत्तेर्वृत्ताधिकारेष्वपि चाप्रवृत्तेः। (वीरो० १/२६) (सुद०८९) नश (अक०) नष्ट होना, समाप्त होना, क्षय होना, विलीन | नहि कोऽत्र (अव्य०) यहां कोई भी नहीं। 'नहि कोऽत्र युवा होना। (सुद० २/२३) ० लुप्त होना, अदृश्य होना, ० यः' (जयो०५/४) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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