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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नत ५२८ ननदृ नत (भू०क०कृ०) [नम्+क्त] प्रणत, नम्रोभूत, झुका हुआ, नतमस्तक। (सम्य० ९५) ० अवसन्ना ० उन्नत। (जयो०वृ० १/५) ० विनत, विनय। (जयो० ३/२०) ० कुटिल, वक्र, टेढ़ा। नतकर (वि०) नम्रीभूत। नतगतः (वि०) विनयगत। नतदृक् (वि०) नीची दृष्टि, लज्जायुक्त नेत्र। नतदृशा (वि०) झुका हुआ मुख। अहह पाश्वमिते दयिते द्रुतं नतदृशाऽवनिकूर्चनतोऽद्भूतम्। वदति यद्यपि भावि वधूजनो न तु मनः प्रतिबुद्धयति कामिन:। (जयो० २/१५६) नतनासिक (वि०) चपटी नाक वाला। नतभूः (स्त्री०) झुकी हुई भौं वाली स्त्री। (वीरो० ९/३६) नतभ्रुवो भोग भुजाऽभिभूतः। (जयो० ११/१०) नते ध्रुवौ यस्यास्तस्याः सुलोचनाया (जयो० १४/६०) नतवर्गः (पुं०) १. विनयशील, २. अमात्यवर्ग। 'नतानां अमात्यादीनां वर्गः समूहस्तेन मण्डिते सेविते' (जयो०१० ३/२०) तवर्गण युक्तो न भवतीति नतवर्गमण्डितः। (जयो०व० ३/२०) नतिः (स्त्री०) [नम्+क्तिन्] लज्जा, नम्रना, विनय, झुकना। (जयो० १/५) • वक्रता, कुटिलता, टेढ़ापन। ० प्रणति, शालीनता, अभिवादन की शालीनता। नतिज्ञ (वि०) विनयज्ञ, विनय करने वाला। सर्वत्र देवागमगुर्वभिज्ञः सदैव भूत्वा गुणतो नतिज्ञः। (सम्य० ९२) नतिपूर्वकं (नपुं०) नमस्कार पूर्वक, नम्रता युक्त। भवाम्बुद्यौ पोत इवोत्तम! प्रभो, निवेदनं मे नतिपूर्वकं च भोः। (समु० ४/२०) नतिशील (वि०) नम्र, विनयवान्। (जयो०वृ० १/५) न तु (अव्य०) तो भी नहीं। न तु पुनः (अव्य०) फिर भी नहीं। न तु पुनरेकान्ततया वस्तुमेणाक्षीणां मनस्युदारे' (सुद०८८) नतोन्नत (वि०) [नतश्चोन्नश्च] ऊँच-नीच। (जयो० १४/२६) नद् (अक०) ० बोलना, कहना, निनाद होना। (वीरो० ७/२) ० शब्द करना। कलकल करना। ० चिल्लाना। • गूंजना, पुकारना। ० दहाड़ना, गर्जना करना। नदः (पुं०) [नद्+अच्] नदी, सरिता, दरिया, प्रवहणी, नाला। (जयो० १३/९५) समुद्रा नदथुः (स्त्री०) [नद्+अथुच] गर्जना, कोलाहल, शोरगुल। नदी (स्त्री०) [नद्। ङीप्] सरिता, निम्नगा, आपगा, प्रवहणी, कल्लोलिनी (दयो० २३) (जयो० ४/५५) नदीकान्तः (पुं०) समुद्र, सागर, उदधि। नदीकुलप्रियः (पुं०) मनुष्य जाति का एक भेद। नदीज (वि०) जलोत्पन्न। नदीणं (नपुं०) कमल, पद्म। नदीतरस्थानं (नपुं०) घाट, तट, पुलिन। नदीतीरः (पुं०) पुलिन, तट-भाग, नदी का किनारा। (जयो०१० १३/६३) नदीदोहः (पुं०) भाड़ा, माल ढुलाई, किराया। नदीधरः (पुं०) शिव। नदीन: (पुं०) समुद्र, उदधि, सागर। 'जडाशयत्वातिगतो नदीनः' (समु०६/४०) 'नदीनस्य समुद्रस्य सम्पत्तिरतश्च' (जयो० १४/८३) नदीनभावः (पुं०) [न दीनो भावः यस्य] औदार्यगुण, उदारचरित्र। (वीरो० २/३७) 'नदीनस्य भावेन शोभन्ते' (वीरो० २/३७) ० समुद्रभाव, ० गम्भीर भाव। नदीपः (पुं०) समुद्र। नदीपरूपः (पुं०) दीपाभाव। (जयो० १५/२१) ० नदीप रूप, नदीपति, समुद्र। 'नदीपस्य समुद्रस्य रूपेऽवगाहे बुडन्त्येव तावत्' (जयो०वृ० १५/२१) नदीपुलिनः (पुं०) नदीतट। 'नद्याः पुलिनयोः पार्श्वभागयोः' (जयो०वृ० १३/५६) नदी-पुलिनदेशः (पुं०) नदीतट। नदी के किनारे। (जयो० २२/७१) नदीनां पुलिनदेशेषु सारसयो : केलिरपि प्रसारिता (जयो०१० १२/७१) नदीपुरः (पुं०) प्रवाहमान सरिता, पूर/उफनती हुई नदी। नदीभवं (नपुं०) समुद्री नमक। नदीमातृक (वि०) सिंचित क्षेत्र। नदीरयः (पुं०) सरिता प्रवाह। नदीवंकः (पुं०) नदी का टेढ़ापन। नदीष्ण (वि०) नदी के प्रवाह में जाने वाला। नद्ध (भू०क०कृ०) [नह क्त] बद्ध, चारों ओर से घिरा हुआ, बांधा हुआ, जकड़ा हुआ, संयोजित, संसक्त, आवृत्त। नद्धं (नपुं०) ग्रन्थि, गांठ, बन्धन। नधी (स्त्री०) [नह+ष्ट्रन्+ ङीप्] चमड़े का फीता। ननद (ननांदृ स्त्री०) [ननन्दति सेवयापि न तुष्यति, न+नन्दु ऋन्] पति की भगिनी, बहिन। For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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