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ध्वनिकेन्द्र
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नक्तमालः
चीख। लय, ताल, तान, वाद्ययन्त्र की शब्दशक्ति। ० तर्क पुष्टि में 'न'। प्राप्तमेतदनुयातु नात्र कः पैत्रिकासुतरल-तरवीचिप्रोज्जजृम्भे किलेति ध्वनिरपि च तदुत्थः ङ्गलियुगेव बालकः। (जयो० २७) स्मेत्युदारो निरेति। (जयो० २०/३१)
प्रमाण पुष्टि में 'न'। आत्रिकेष्टिनिरता पुनर्नवानान्नतो ध्वनिकेन्द्रं (नपुं०) शब्द निस्तारण स्थान।
हि परिपेषणं गवाम्। ध्वनिगत (वि०) शब्द को प्राप्त।
० अन्य की स्थापना। शल्यवद्रुजति यद्विरोधितानाम्बुधौ ध्वनिग्रहं (पुं०) कर्ण, कान, श्रवण केन्द्र, श्रवणेन्द्रिय, कर्णेन्द्रिय। मकरतोऽरिता हिता। (जयो० २/७०) ध्वनित (वि०) [भू०क०कृ०] [ध्वन्+क्त] संकेतित, गुंजित। ० अपेक्षात्मक दृष्टि में 'न'। तर्यादिभमावपि नेदगिष्टिः ध्वविविकारः (पुं०) शब्द विकार।
'यतस्ततश्चादिपदेऽपि विष्टिः' (सम्य० पृ० ११०) 'न ध्वस्तिः (वि०) क्षय, नाश।
जंगमायाति सुवर्णखण्डः पते पतित्त्वापि च लोहदण्डः' ध्वांक्षः (पुं०) काव, कौआ।
(सम्य०६१) ध्वांत (नपुं०) नष्ट, नाश, १. अन्धकार (जयो० १८/७८, • हर्षात्मक पक्ष में 'न'। न तुममायं कुविधामनुष्यादेकेति वीरो० १४/१९)
बुद्ध्या सुतमत्र पुष्यात्' (सम्य०६८) ० अपकर्ष भाव में 'न'। न्यायोचिते भोगपदेऽपकर्षः, सन्तोष
एवास्य वृक्षा न तर्षः।
नकर (वि०) कर नहीं देने वाला। नः (पुं०) तवर्ग का अन्तिम वर्ण, इसका उच्चारण स्थान दंत नकलङ्गहीन (वि०) उच्चकुल वाला नहीं। (जयो० ५/८७)
न किं स्वयं (अव्य०) स्वयं भी नहीं कहता। (सुद० ७७) न (पुं०) १. उपमा, २. रत्न, ३. स्वर्ण, ४. युद्ध, ५. बन्ध, ६. नकुटं (नपुं०) नाक, नासिका। मोती, ७. धन।
नकुलः (पुं०) [नास्ति कुलं यस्य] १. नेवला, आखेट करने नः (सर्व०) हमारा, अपना। 'नोऽस्माकं चिद्विचारो वर्तते' वाला नकुल। (वीरो० १४/६१) २. पाण्डुपुत्र नकुल। (जयो० ५/१०४) (सुद०)
(जयो०वृ० १/१८) 'यस्य च कुलस्य वंशस्य वाच्यता न (वि०) [न+मश्+ड] पतला, क्रश, क्षीण, रिक्त।
निन्दा न बभूव।' (जयोवृ० १/१८) न (अव्य०) निषेधवाचक अव्यय, अभाव, रहित, नहीं। (जयो० नकेलः (पुं०) नाक में डाली जाने वाली रस्सी। नकलावलि
१/४) 'नाति क्लिष्टा एते श्लोकाः, अतो न व्याख्याताः' (जयो०वृ० १३/७३) (जयो० २०/५२)
न कोऽपि (अव्य०) कोई भी नहीं। (वीरो० ११/२) ०भिन्न भिन्न वाक्यों में निषेध के लिए न की पुनरावृत्ति। नक्कारः (पुं०) ढक्का, एक सूचक वाद्य, जो किसी घोषणा इत: कलत्राणि न बालकानि मुखानि येषां तु नवालकानित। के लिए बजाया जाता। (जयो०० २२/६१) 'ढक्का (जयो० १५/८५) नो हृदैव न दृशैव विलोकैः किन्तु नक्कार इति नाम वाद्यं तस्याः शोभना' (जयोवृ० २२/६१) पुर्णवपुषैव हि लोकैः' (जयो० ५/६८)
नक्तं (अव्य०) रात्रि के समय। (जयो० ३/३) ० अभाव-विद्याऽनवद्याऽऽप न वालसत्वं संप्राप्य वर्षेषु नक्तं (नपुं०) [न+क्त] रजनी, रात्रि। चतुर्दशत्वम्' (जयो० १/६)
नक्तकः (पुं०) मलिन मैला। (वीरो० १/२१) ० वस्तु की पुष्टि के लिए-'व्यर्थं च नार्थाय समर्थनं तु' नक्तंकमलं (नपुं०) कैरव। (जयोवृ० १५/५०) (जयो० १/१७)
नक्तञ्चर (वि०) रात्रि में विचर करने वाला। ० अत्यधिक प्रशस्त गुणों की अभिव्यक्ति के लिए। 'न' नक्तञ्चर्या (स्त्री०) रात्रि में घूमना। युधिष्ठिरो भीम इतीह मान्यः शुभैर्गुणैरर्जुन इव नान्यः। नक्तंचारिन् (पुं०) उल्लू, विलाव, चोर, राक्षस, प्रेत, भूत। (जयो० १/१८)
नक्तंदिवं (अव्य०) अहिर्निश, रात-दिन। (जयो० २३/६१) ० कामनार्थक योग में 'न' का प्रयोग। दिगम्बरत्वं न च नक्तंभोजनं (नपुं०) रात्रि का भोजन। नोपवासश्चिन्तापि चित्ते न कदाप्पुवासः' (जयो० १/२२) | नक्तंमालः (पुं०) एक वृक्ष विशेष।
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