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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्यास ५२४ ध्वनिः ० ध्यानमुद्रा में स्थिति। शितशोणोज्ज्वललोलतां स्युः। (जयो० १३/२९) 'ध्वजे ० पद्मासनी भूत। (जयो० १९/२८) निःशाणाख्ये' (जयो०वृ० १३/२९) ध्याम (वि०) [ध्यै+मक्] कालिमा, मैला, मलिन। (सुद० • लक्षण, प्रतीक, भूषण। २/४४) ध्वजचिह्न (नपुं०) प्रतीक, ध्वज में वृषभादि लक्षण। ध्याम (नपुं०) घास विशेष। ध्वजदण्डं (नपुं०) केतन दण्ड। (जयो० १३/२१) ध्यामन् (पुं०) [ध्यै मनिन्] १. माप, २. प्रकाश। ध्वजपटः (पुं०) झण्डा, केतनाञ्चल, झण्डा, ध्वजा, पताका। ध्यामलता (स्त्री०) कालिमा की वल्ली। (सुद० २/४४) (जयो० ७/१०९) ध्येय (वि०) ध्यान करने योग्य। ध्वजपटं (नपुं०) ध्वजानां पटैर्वस्त्रैर्वीजयन्ति, ०ध्वजा, पताका, ध्यै (अक०) सोचना, चिन्तन करना, विचार करना, मनन केतनाञ्चल। करना। ध्वजप्रान्तः (पुं०) केतनाञ्चल। ध्रुव (वि०) स्थिर, दृढ़, अचल, शाश्वत, नित्य, स्थायी, ध्वजपल्लवः (पुं०) केतु। (जयो० ३/१२) अटल, सदैव रहने वाला। (जयो०८/८५) ध्वजपंक्तिः (स्त्री०) ध्वजतति। (जयो० ३/११२) ० वस्तु का स्थायी गुण। ध्वजप्रहरणं (नपुं०) पवन, वायु, हवा। ० वस्तु का नित्यत्व। ध्वजयन्त्रं (नपुं०) ध्वजनीति, झण्डा फहराने की युक्ति। ० धारणाशील। ध्वजयष्टिः (स्त्री०) ध्वजदण्ड। निश्चित ध्वजवस्त्रं (नपुं०) केतनाञ्चन, झण्डे का वस्त्र, ध्वजपट। ० ध्रुव तारा, नक्षत्र विशेष। (वीरो०६/२५) ० समय, काल, युग। ध्वजवस्वपल्लः (पुं०) ध्वजप्रान्त भाग, केतनाञ्चल। (जयो० ध्रुवं (नपुं०) आकाश, अन्तरिक्ष। १६/७) ध्वजस्य वस्त्रपल्लः ध्रुवं (अव्य०) अवश्य, निश्चित रूप में। ध्वजा (स्त्री०) पताका, केतन, झण्डा। (वीरो० २/३५) (सम्य ध्रुवकः (पुं०) [ध्रुव+कन्] टेक, गति, गेय पद का गुण। ७९) ध्रुवत्व (वि०) नित्यत्व। (जयो० २३/८४) ध्वजांशुकः (पुं०) केतनचीवर, ध्वज का वस्त्र, ध्वजपट। धौव्यं (नपुं०) [ध्रुव+ष्यञ्] स्थिरता, दृढ़ता, निश्चय, नित्य, (जयो० २४/३९) परिस्फुरद्भिर्विशदैर्ध्वजांशकैरिवातिशाश्वत। मात्रोन्नतिमन्नितम्बिनि! (जयो० २४/३९) ० वस्तु का तत्पना बना रहना। ध्वजाली (स्त्री०) पताकातति। (जयो० ३/८२) केतनपंक्ति, ० द्रव्य की स्थिरता 'ध्रुवे स्थैर्यकर्मणो ध्रुवतीति ध्रुवः' केतन समूह, ध्वज समुदाय। 'ध्रुवस्य भावः कर्म वा ध्रौव्यम्' ध्वजिन् (वि०) [ध्वज+इनि] चिह्नधारी, झण्डा ले जाने ० ध्रुवति स्थिरीसंपद्यते यः स ध्रुवः तस्य भावः कर्म वा वाला। ध्रौव्यम्' (त०१० ५/३०) ध्वजिनी (स्त्री०) सेना। (जयो० १३/३७) 'गगनाङ्गणमाशु ध्वस् (अक०) नीचे गिरना, ०टुकड़े होना, चूर चूर होना, चञ्चलैर्ध्वजिनी' (जयो० १३/३७) नष्ट होना, विनष्ट होना, डूबना, मिटना, ०ग्रस्त | ध्वजीकरणं (नपुं०) १. झण्डारोहण ०पताका फहराना, झण्डा होना। चढ़ाना। २. अपना पक्ष प्रस्तुत करना। ध्वंसः (पुं०) [ध्वंस्+घञ्] गिरना, नष्ट होना, समाप्त ध्वन् (अक०) गुनगुनाना, शब्द करना, गरजना, दहाड़ना, होना, घात, विघात, विनाश, ०क्षति, ०हानि। चिल्लाना, भिनभिनाना, प्रतिध्वनि करना। ध्वंसन (नपुं०) क्षति, हानि, नाश, घात, समाप्त, क्षय। ध्वनः (पुं०) [ध्वन्+अप्] १. शब्द, स्वर। २. भिन-भिनाना, ध्वंसिः (स्त्री०) [ध्वंस्+इन] क्षति, हानि। गुनगुनाना। ध्वजः (पुं०) [ध्वज्+अच्] पताका, झण्डा, वैजयन्ती, केतन, | ध्वननं (नपुं०) ध्वनि, शब्द, शब्दशक्ति, वाक्य विचार। • निशान, ध्वजदण्ड। द्विषतां हि मनांसि तद्ध्वजे | ध्वनिः (स्त्री०) [ध्वन्+इ] शब्द, प्रतिध्वनि, गूंज, गुंजार, For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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