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धैवत्यं
५२३
ध्यानकता
धैवत्यं (नपुं०) [धीवत्+ष्यब्] चतुराई, निपुणता। धोर (अक०) जल्दी जाना, दौड़ना, चलना। धोरणं (नपुं०) [धोर+ल्युट्] वाहन, सवारी, अश्वगति। धोरणी (स्त्री०) [धोरणि ङीप] अनवच्छिन्नश्रेणी, उद्भट
परम्परा। धोरित (वि०) क्षति पहुंचाना, प्रहार करना। धौत (भू०क०कृ०) [धाव्+क्त] धोया हुआ।
० साफ किया गया, क्षालित। (जयो० ६/३८) ० क्षालन। (जयो० १८/६६) ० चमकाया, स्वच्छ किया।
० उजला, स्वच्छ चमकीला। धौतुं (हेत्वर्थवृदन्त) धोने के लिए, साफ करने के लिए।
'धौतुमारंभतात्माख्यपटमेष महामनः' (समु० ९/२०) धौर्त्य (वि०) धूर्तभाव। (जयो० २३/२८) ध्मा (सक०) फूंक मारना, श्वास छोड़ना, धोंकना, उद्दीप्त करना।
० फेंकना, डालना, गिराना।
० फुलाना, भरना। ध्माकारः (पुं०) [ध्मा+कृ+अण्] लुहार, लोहाकार। ध्मात (भू०क०कृ०) [ध्मा+क्त] फुलाया हुआ, हवा भरा
हुआ। ध्यात (वि०) [ध्यै+क्त] विचार किया गया, सोचा गया। ध्याता (वि०) ध्यान करने वाला। (सम्य० ११४) ध्यातुं (हे०कृ०) ध्यान करने के लिए। रत्नत्रयमनासाद्य यः
साक्षात् ध्यातुमिच्छति' (सम्य० ११६) ध्यानं (नपुं०) [ध्यै ल्युट्] ० चिन्तन, मनन, एकाग्रता, विचार,
० अन्तर्ज्ञान, अन्तर्विवेक, अन्तदृष्टि। (सम्य० ११५) ० उपासना की पद्धति-० आत्मा के उपयोग में एकाग्रता होना निश्चलपना आ जाना-ऐकाग्रयमात्म- प्रकृतोपयोगे, ध्यानं तदेवानुवदन्ति सन्तः' (समु०८/३४) ०चित्तविक्षेप त्याग। ० स्थिर अध्यवसान। ० प्रशस्त प्रणिधान। ० चित्त की एकाग्रता होना। (सम्य० ११६) ० योग विरोधा ० शुद्धात्मस्वरूप की अविचल चैतन्य वृत्ति। ० शुद्धोपयोग रूप पणिमन। (सम्य० ११६) ० शुद्धोपयोग में शुक्ल का पर्यायवाची शुद्ध शब्द है और ।
उपयोग शब्द विचार का/ध्यान का पर्यायवाची यानी
शुद्धोपयोग/शुक्लध्यान। ध्यान-करणं (नपुं०) चिन्तन, मनन का कारण। (जयो०वृ०
१/२२) ध्यानकेन्द्र (नपुं०) ध्यान का लक्ष्य। ध्यानकृत् (वि०) ध्यान करने वाला। ध्यानगत (वि०) ध्यान में तत्पर, एकाग्रता युक्त। ध्यानगृहं (नपुं०) ध्यान स्थान, चिन्तन का निलय। ध्यानचक्रं (नपुं०) चिन्तन परिकर। ध्यानतत्पर (वि०) ध्यान में अग्रसर। (दयो० २४) ध्यानतत्त्वं (नपुं०) चिन्तन करने योग्य पदार्थ। ध्यानद्रव्यं (नपुं०) मनन करने योग्य द्रव्य। ध्याननिधिः (स्त्री०) चिन्तन कोष। (मुनि० २१) ध्याननिष्ठ (वि०) चिन्तनशील। मनन में तत्पर। ध्यानपात्रं (नपुं०) एकाग्रता का पात्र। ध्यानफलं (नपुं०) विषयभूत तत्त्व का बोध।
ध्यानं नामफलं यदीय सुरते: श्रीशान्तिलाभो भवेदात्माधीन-जनस्य मानसरुचिः संभाति यत्संस्तवे। स्वाध्यायं भुवि बीजमस्य चिनुयाच्छेयार्थि एतावता। स्पष्टोक्तिः समुदेति। सर्वसुखदासौ श्रीमतामहताम्।। (मुनि०
२७) ध्यानभावना (स्त्री०) चिन्तन की स्थिति। (सम्य० ११६) ध्यानमुद्रा (स्त्री०) पद्मासन की स्थिति। (जयो० १९/१२८) ध्यानयुक्त (वि०) ध्यान में तत्पर। ध्यानयोगः (पुं०) मन, वचन और काय की एकाग्रता। ध्यानलक्षणं (नपुं०) ध्यान स्वरूप। ध्यानवप्रः (पुं०) ध्यान परिधि, ध्यान की सीमा। ध्यानसंचेतना (स्त्री०) बोध परक दृष्टि। ध्यानसिद्धिः (स्त्री०) ०ध्यान की सिद्धि, ० एकाग्रता की
प्राप्ति। ध्यान की उपलब्धि, चिन्तन की प्राप्तिा (सम्यक
११६) ध्यानाख्या (पुं०) ध्यान स्वरूप। (मुनि० २१) ध्यानारुढ (वि०) चिन्तन में लगा हुआ, एकाग्रता युक्त।
(सुद० १३३) ध्यानारूढममुं दृष्टवा व्यन्तरी महिषीचरी।
(सुद० १८३) ध्यानेच्छा (स्त्री०) ध्यान भावना। ध्यानकता (वि०) ध्यान में निमग्न। नासा दृष्टिरथ प्रलम्बितकरो
ध्यानक तानत्वतः। (सुद० ९८)
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