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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूलक ५२१ धृतसक्रिय धूलकं (नपुं०) [धू+लक] विष, ज़हर। धूरधूसरित (स्त्री०) धूल से युक्त। (जयो० २१/६७) धूरी (स्त्री०) धुरी-आधार। (सम्य० १२८) धूरी (स्त्री०) धूली, रेणु। (जयो० २८/५४) धूलिः (स्त्री.पुं०) [धू-लि] वालका (जयो० ११/५९) धूल, रेणु, धूरी, रजकण। (जयो० १३/१०६) अनागसे सम्प्रति सामजातैरधारि धूलिः शिरसा तथा तैः। (जयो० १३/१०६) धूलि-कुट्टिमम् (नपुं०) प्राचीर, टीला, रेत का टापू, धूल का ढेर। धूलि-केदारः (पुं०) प्राचीर, टीला, रेत का टापू, धूल का ढेर। धूलिध्वजः (पुं०) पवन, हवा। धूलिपटलः (पुं०) रेत का टापू, धूल का समूह। धूलिपुष्पिका (स्त्री०) केतकी पौधा। धूलिपुष्पी (स्त्री०) केतकी पादप। धूलिप्रायः (पुं०) सैकतमय, वालुकामय। (जयो० ११/५९) धूलिशालः (पुं०) समवसरण का एक स्थान, एक उत्कृष्ट सभा स्थल। २. रत्नरेणुनिर्मित भाग, मणिसंकणि- संविभालतस्त्ववधूतो नवधूलिशालतः' नयनारिरगादभावतां न निशावासरयोर्भिदोऽत्र ता:।। (जयो० २६/४८)। समवसरण का परकोटा। आदौ समादीयत धूलि शालस्ततश्च यः खातिकया विशालः। स्वरत्न-सम्पत्ति धृतोपहारः सेवां प्रभोरब्धिरिवाचचार।। (वीरो० १३/२) सव्वाणं बाहिरए, धूलीसाला विसाल-समवटटा। विप्फुरिय-पंच-वण्णा, मणुसुत्तर-पव्वदायारा।। चरियट्टालय-रम्मा, पयत-पदाया-कलाव-रमणिज्जा। तिहुवण-विम्हय-जणणी, चदुहि दुवारेहि परियरिया।। (ति० प०४/७४१, ७४२) समवसरण के सबसे पहले पांच वर्षों से स्फुरायमान, विशाल, एवं समानगोल, मानुषोत्तर पर्वत के आकार सदृश धूलिसाल नामक कोट होता है, जो मार्ग एवं अट्टालिकाओं से रमणीय, चञ्चल पताकों से सुन्दर, तीनों लोकों को विस्मित करने वाला और चारों द्वारों से युक्त होता है। धूसर (वि०) मटमैला, धूल से सना हुआ। धूसरः (पुं०) १. भूरारंग, २. गधा, ऊँट, कबूतर, ३. तेली। । धूसरित (वि०) धूल से सना हुआ। (जयो० २१/६७) धूसरीकृत् (वि.) पञ्चारित, विविधवर्ण युक्त। (वीरो०७० ३/१) धृ (अक०) होना, रहना, विद्यमान होना, सुरक्षित रहना, चलते रहना। धृ (सक०) धारण करना, लेना, पकड़ना, संभालना, पहनना, रोकना, दमन करना। ० भूलता-'अकारि निर्जल्जतया तु नाहो कुलीनत्वधारि जातु। (सुद० १०१) ० स्थान देना-सुमनो मनसि भवानिति धातु (सुद० ९९) ० धारण करना-दधुर्योऽरयश्चैव कन्दपं स्विदपत्रपाः। (जयो० ८/१०५) ० लगाना, स्थापित करना। स्व-स्वकर्मनिरतास्तु धारयन् तद्गलोपनियमान् सुधारयन्। (जयो० २/११८) दधार -(जयो० २२/४९) ध्रियते (सुद० ३/२४) धृत (भू०क०कृ०) [धृ+क्त] सहारा दिया गया, रक्खा गया, धारण किया गया, पहना गया, उपयोग में लाया गया। अभ्यास किया गया, पालन किया गया। धारक (सुद० ३/९) 'द्रुतमेवन्वायुत-नेत्रिणा धृताम्' (सुद० ३/९) धृतदण्ड (वि०) दण्ड देने वाला। धृतपट (वि०) पटाच्छादित। धृतप्रमाण (वि०) प्रमाणित किया गया। धृतभङ्ग (वि०) वशीभूत। (समु० ३/७) (वीरो० १२/४९) धृतभाव (वि०) भावयुक्त। धृतमंत्र (वि०) मंत्रधारी। धृतमाया (वि०) छद्मवेशधारी। धृतयुक्ति (वि०) धैर्ययुक्त हुआ 'तज्जयाय मतिमान् धृतयुक्तिरिस्तु।' सैव खलु सम्प्रति मुक्तिः । (सुद० ११०) धृतराग (वि०) अनुरागवान्। (जयो० ४/५६) धृतराजन् (वि०) राज्यशासित, राजा के आधीन। धृतराष्ट्र (वि०) समस्त देश को व्याप्त करने वाला। श्री भारतोक्तविभवो धृतराष्ट्र एष, वीरं जनाय खलु कौरवमीक्षते सः' (जयो० १८/५६) धृतराष्ट्रः (पुं०) कुरुवंश का नृपति। धृतवीर (वि०) वीरता युक्त। (सुद० ) श्रीभारते नामेतिहासग्रन्थे, उक्तः प्रख्यापितो विभवो यस्य स धृतराष्ट्रो नाम राजा। (जयो०वृ० १८/५६) धुतशंस (वि०) अतिशय शोभायमान्। (जयो० २२/१६) धृतवती (वि०) धारण करती हुई। (जयो० १०/११३) धृतसत्क्रिय (वि०) न्याययुक्त चेष्टा वाले-'हे! धृतसत्क्रिय, धृताऽङ्गीकृता सती न्याययुक्ता चेष्टा येन' (जयोवृ० ९/१०) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
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