SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धावक ५१८ धीरचेतस् पलायन्ते' (जयो०वृ० १३/४७) ० धोना, निर्मल करना, | धिषणाधरः (पुं०) अध्यापक, गुरुजी। न्यगादि केनामुकबाकेषु, रगड़ना 'झगिति धावति नावति कश्मलं ननु विवेकमुपेत्य विनोदभावाद्धिषणाधरेषु' (समु० १/३३) सुफेनिलम्। (जयो० २५/६६) शीघ्रमेव धावति-प्रक्षालयति धिषणाधिदेवः (पुं०) बुद्धि के भण्डार। (समु० ३/१३) कश्मलं नाम मलम्' (जयो०७० २५/६६) धिष्ण्यः (पुं०) [धृष्+ण्य] यज्ञाग्नि का स्थान। १. 'सदन। धावक (वि०) दौड़ने वाला। धिष्ण्यं सद्मनि नक्षत्रे इति विश्वलोचन:' (जयो०वृ० धावकः (पुं०) १. धोबी। २६/१०४) धावनं (नपुं०) [धाव+ल्युट] निगालना ०धोना, प्रक्षालन, ० नक्षत्र। मार्जन, प्रमार्जन, 'करयोर्निगालनं धावनं तस्मिन्' (जयो० • शक्ति, बल, सामर्थ्य। १२/१३२) पौद्गालिकस्य देहस्य धावन-प्रेञ्छनातिगः। ०१. केतु, २. अग्नि, ३. तारा, ४. उल्का । (समु० ९/१७) ० कलिमल-धावनमतिशय-पावनः'। (सुद० धी: (स्त्री०) [ध्यै+क्विप्] मति। (वीरो० १४/२१) ७०) ० बुद्धि, ज्ञान, विवेक, समझ। (जयो० ४/५) (समु० धावल्यं (नपुं०) [धवल+ष्यञ्] सफेदी, स्वच्छता। १/१) 'धियो बुद्धयो न जयन्ति' (जयो०वृ० ३/८६) धि (सक०) संभालना, रखना, अधिकार करना। ० विचार, कल्पना, उत्प्रेक्षा। धिः (स्त्री०) आधार, आश्रय, भण्डार। ० आशय, प्रयोजन, नैसर्गिक प्रवृत्ति। धिक् (अव्य०) [धा+डिकन्] धिक्कार, निन्दा, गर्दा, ० प्रार्थना, अर्चना, भक्ति। घृणा, विषाद (जयो० २/१२८) दु:ख, शर्म, तरस। ० यज्ञ। करिवरेण मृणाल निभो भवत्रपि बलीति वदेद् धिगिमं धीगुणा (वि०) बुद्धि सम्बंधी गुण। स्तवम्। (समु० ७/६) धिक् पुनरपि धिक्-(जयो०१० धीचयं (नपुं०) गुणी की उत्पत्ति। (सुद० १/४६) २८/८) 'राज्ये ममेद्दगापि धिग्दुरितैकधानी' (सुद० १०५) | धीपतिः (पुं०) बृहस्पति। धिक्कारः (पुं०) तिरस्कार, अवज्ञा, अपमान, निन्दा, गरे, धीमत् (वि.) महाबुद्धिमान, विपश्चित्, विद्वान्। झिड़कना, फटकारना। आत्मन्येवाऽऽत्मनाऽऽत्मानं चिन्तयतोऽस्य धीमतः। (सुद० धिक्कृति (स्त्री०) धिक्कार, तिरस्कार, निन्दा, अवज्ञा, अपमान। १३५) 'धीमतामपि धिया किमसाध्यम्' (जयो०४/३३) (जयो० १६/७०) 'छान्दसं समवलोक्य धीमतां प्रीतये भवति मञ्जुवाक्यता' धिक् पुनरपि धिक् (अव्य०) बारम्बार धिक्कार, पुनः पुनः धीमतां-विदुषां प्रीतये (जयो० २/५३) भला-बुरा कहना, झिड़कना। (जयो० २५/२) धीमन् (वि०) बुद्धिमान, प्रतिभाशाली, बुद्धिभृता (जयो०१० धिगपि धिग् (अव्य०) बारम्बार धिक्कार, भला-बुरा कहना, ९/४७) तिरस्कार करना। (जयो० २५/८) धीर (वि०) [धी+रा+क] ०सहिष्णु, धैर्यवान्, ०धीरतायुक्त, धिगेव (अव्य०) तिरस्कार ही है। 'राज्ञामतः पञ्चदशी धिगेव शक्तिशाली, दृढ़, निश्चल, स्थाई, अटल, धृतिशाल किं नाभव सा गुरुवाग्युगेव। (जयो० ५/९९) (जयो० ३/२५) 'कुतोऽलङ्करुतोऽथ धीर।' (जयो० ३/२५) धिप्सु (वि०) [दम्भ सन्+उ] धोखा देने वाला, धोखा देने • शान्त, सरल, मृद। सौम्य, प्रशान्त गम्भीर। 'धिया का इच्छुक। बुद्ध्या राजन्तीति धिषणः (पुं०) [धृष्+क्युः] वृहस्पति। ० दूरदर्शी, चतुर, प्रज्ञ, अज्ञ। धिषणं (नपुं०) निवास स्थान, गृह, घर, आवास, आश्रय। ० आचरणशील, बुद्धि से शुभोभित। धिषणा (स्त्री०) बुद्धि, अक्ल, ज्ञान, विवेक, समझ। ० सत्त्व सम्पन्न। (जयो० ४/१६, ९/७६) 'सुधीनां धिषणाः श्रयन्तु।' (सुद० ० धीरा-कर्मविदारण सहिष्णवो। १३०) पदार्थ। प्राणात्यये का धिषणाऽस्य तेन, जीवोऽस्तु धीरः (पुं०) समुद्र, उदधि। यावन्मरणं सुखेन। सूक्त, स्तुति। (सुद० ११९) धीरचेतस् (वि०) सुदृढ़ चित्त वाला, साहसी, दृढ़ी, धैर्यवान्। धिषणाधर (वि०) बुद्धिधारक। भवताद्य सभामध्ये, स्थातव्यं धीरचेतसा' (समु० ३/३९) For Private and Personal Use Only
SR No.020130
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy