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धात्रीवाहनः
धात्रीवाहनः (पुं०) राजा, नृप चम्पानगरी का राजा। (सुद० (१/३८) धात्रीवाहननामा राजाऽभूदिह । धात्रीवृक्ष (पुं०) आमलक, आंवला (जयो० १४/१५) धात्रेयिका ( स्त्री० ) [ धात्रेयी + कन्+टाप्] धात्री पुत्री, धाय की लड़की ।
धानं (नपुं० ) [ धा+ ल्युट्] १. पात्र, वर्तन, २. आधार आश्रय स्थान, राजधानी।
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धाना (स्त्री०) [धान टापू] १. खीर, २. सत्तूत, ३. अन्न, अनाज, ४. अंकुर, कली।
धानुष्कः (वि०) (धनुप्-ठक्क] धनुष धारण करने वाला, धनुर्धर, तीरंदाज। 'धनुष्को धनुषी योगात् ' धानुष्य (वि०) [धनुष्+ ष्यञ् ] बांस ।
धान्धर (स्त्री०) इला, इलायची।
धान्यं ( नपुं० ) अनाज, अन्न, चावल 'ब्रीहि आदि अठारह प्रकार के धान्य । धान्य ब्रीह्यादि अष्टादशभेदसुसस्यम् गोधूम - शालि-यव-सर्षप माष मुद्गाः श्यामाक कड्गु-तिल कोद्रव राजमाषाः। कीनाशनालमथ वैणवमाढकी च सिंवा कुलस्थ- चणकादि सुवीजधान्यम् । (कार्तिकेयानुप्रेक्षा टी० ३४०) धान्यमस्ति न विना तृणोत्करम्' (जयो० २/३) धान्यमन्नं नोद्भवति (जयो०वृ० २/ ३) धनिया।
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धान्यकः (पुं०) धनिया, धना । (जयो०वृ० २८/३० ) 'शुण्ठि धान्यक-नागमुस्ता नेत्रनाल- विल्वफलानि ' (जयो०वृ० २८/३० )
धान्य- कल्कं (नपुं०) भूसी, चोकर, छिलका, पुआल । धान्यकूट : (पुं०) धान्य के ढेर, धान्य समूह, धान्य भण्डार 'धान्यस्य कूटा राशियो ये वीरो०वृ०२/११)
धान्यकेश: (पुं०) धान्य के भण्डार, धान्य कोठार, अनाज संचयन केन्द्र।
धान्यकोष्टकः (पुं०) धान्यकोश ।
धान्यक्षेत्रं (नपुं०) धान्य खोत, शस्यादि का भू-भाग । धान्यचमसः (पुं०) चौला, चिड़वा ।
धान्यत्वच् (स्त्री०) छिल्का, भूसी, चोकर धान्यमानप्रमाणं (नपुं०) धान्य मापने का प्रमाण | धान्यमाय: (पुं०) गल्लाव्यापारी, अनाज व्यापारी। धान्यराज (पुं०) जौ ।
धान्यवर्धनं (नपुं०) शस्य वृद्धि ।
धान्यवीजं ( नपुं०) धनिया ।
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धारण
धान्यवीर : (पुं०) उड़द दाल ।
धान्यशीर्षकं (नपुं० ) अनाज की बाल, शस्य को बाल । धान्यशूकं (नपुं०) कूट, धान्य टूंड अनाज काटने के बाद अवशिष्ट डण्ठल ।
धान्यसार : ( पुं०) साफ धान्य, अक्षत चावल, स्वच्छ किया
गया अन्न।
धान्यस्थली (स्त्री०) शस्यभूमि । ( वीरो० २ / १३) धान्यस्वरूप (पुं०) धान्यरूप (जयो०वृ० १८/१७) धान्यहितः (पुं०) ओदन रूप परिणाम । धान्य रूप | 'बहुरनल्पो योऽसो धान्यहितप्रभाव:' (जयो०वृ० १८/१७) धान्या (स्त्री०) [धान्य+टाप्] धनिया धान्यान्यर्जयत् (वि०) अन्नोपार्जन करने वाले। (मुनि० १३) धान्यान्यर्जयत् स्वतन्त्रविधिना त्वतः पिपलस्य किम् । धान्यार्थ (वि०) धान्य के निमित्त । (सुद० १/८ ) अनेकधान्यार्थमुपायकत्रर्महस्तु शीरोचितधामभत्र (सुद०२/२९) धामकः (पुं०) एक माशे का तोल ।
धामन् (नपुं० ) [ घा+मनिव्] स्थान, आवास, गृह, प्रासाद। आधार, आश्रय अलीकबोधो हि कुदृष्टिधामा (सम्य० १३५) विश्वविदेकधामा (सम्ब० १८) (जयो० ३ / ११६, जयो० ३/३३) (सुद० ११२) 'अनल्पपीताम्बरधामरम्याः ' (वीरो० २/१०) नैक नो ग्राम इवास्ति धाम' धामनिधानं (नपुं० ) प्रमुख स्थान (जयो० २२ / १ ) (जयो० ३/३३)
धामभतृ ( वि०) आजीविका करने वाले कृषकों का स्थान । (सुद०२/२९)
धामरम्या (वि०) प्रासाद की रमणीयता । ( वीरो० २/१० ) धार (वि०) [+ णिच्+अच्] धारण करने वाला, सहारा देने
वाला, आधारभूत।० सीमा, परिधि । ० धार-आयुध का तीखापन। 'मम वा यमवाक्सन्धाकारयाऽऽयुधधारया' (जयो० ७/२७) ० धारा (जयो० ७/२३)
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धारकः (पुं०) [धृ+ण्वुल्] १. जलपात्र, वर्तन, २. संग्राहक (सम्य० ३३)
धारक (वि०) धारण करने वाला, प्रतिपत्तार (वीरो० १५/५५) दुर्मदाचलभिदः सदा स्वतो धारक क्षणलसच्चमत्कृतः । (जयो० ३/१९ )
धारण ( वि०) [घृणिच् स्युद्] ग्रहण / अंगीकार करने वाला, सहारा देने वाला, रक्षा करने वाला। ९? ( सुद० ७/६) ( सम्य० १५) अनुभूत / गृहीत बात को नहीं ।