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धवलित
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धात्रीवलयः
भूतवलि-पुष्पदन्त रचित शौरसेनी भाषा का प्रथम आगम पर प्राकृत एवं संस्कृत में लिखा गया विवरण। 'षट्खण्डागम-धवलाटीकातोऽप्युपपत्तिमत्' (हित० संपादक
पृ० २६) आचार्य वीरसेन द्वारा निबद्ध टीका। धवलित (वि०) [धवल+इतच्] सफेद किया हुआ, श्वेत
किया गया। धवलिमन् (नपुं०) [धवल इमनिच्] सफेदी, सफेद रंग। धवलीभाव (पुं०) शुक्लता/शुभ्रता का भाव, सफेदी का
सद्भाव। (जयो०वृ० १५/६९) धवित्रं (नपुं०) [धू+इत्र] मृगचर्या का पंखा। धा (सक०) ० रखना, लिटाना, धरना, ० लगाना, जमाना,
प्रदान करना, अर्पित करना, ० उपहार देना, पकड़ना, ग्रहण करना, ० धारण करना, पहनना, लेना, प्रदर्शन करना, ० संभालना, निवाहना, स्थापित करना, ० सहारा देना, उत्पादन करना, रचना. ० भोगना, सहना, ग्रस्त होना, • सम्पन्न करना। स्म दधाति सुपुस्तकं सदा सविशेषाध्ययनाय शारदा। (सुद० ३/३१) इत्युक्तमाचारवरं दधानः भवन् गिरां सम्विषयः सदा नः' (सुद० ११८) 'त्रिकालयोगं स्वयमादधानः' (सुद० ११८) तपोऽनुभावं दधता तथापि (सुद० ११८) 'वैरस्य भावं दधदग्रस्त्वम्' (सुद० १०१६) दधाना (सुद० ७८)
'सदा दधानो विषमेषु दौस्थ्यम्' (जयो० १/३०) धा (पुं०) ब्रह्मा। (जयो० वृ०५/८६) पृथिव्या धा ब्रह्मा कोऽपि
अपूर्वप्रतिभोऽस्ति खलु। धाकः (पु०) प्रभाव-का कोमलाङ्गी वलये धराया
धाकोऽप्यपूर्वप्रतिमोऽमुकायाः। (जयो० ५/८६) १. वृषभ, २. आधार, आशय। ३. आहार. भात। ४. खंभा, स्तम्भ,
स्थूण। घाटी (स्त्री०) [धा+घञ्ङीप्] धावा, आक्रमण। धाणकः (पुं०) [धा+आणक] सिक्का, दीनार। धातकीयः (पुं०) धातकी खण्ड। (वीरो० ११/२५) धाता (पुं०) विधाता, ब्रह्मा। (जयो०वृ० ३/४८) धातुः (पुं०) [धा+तुन] ० मूल, तत्त्व, पृथिवी तत्त्व, खनिज
पदार्थ। ० क्रिया का मूल रूप-हसादि धातवः। (जयो० । १६/४२) भूप्रभृतेरग्रे (जयो० १/९५) ० शरीर का शुक्राणु,
वीर्य। ० ज्ञानेन्द्रिय। ० पंच महाभूत। धातु कुशल (वि०) धातु कार्य में निपुण। धातुक्रिया (स्त्री०) धातुकर्म, खनन क्रिया, धातुविज्ञान।
धातुगत (वि०) भू आदि धातु को प्राप्त। (जयो० १६/४२) धातुजं (नपुं०) शिलाजीत। धातुद्रावकः (पुं०) सुहागा। धातुपः (पुं०) पौष्टिक रसायन। धातुभूत् (पुं०) पर्वत, गिरि। धातुमत् (वि०) धातुओं/खनिज पदार्थों से परिपूर्ण। धातुमलं (नपुं०) शरीर में स्थित धातुयुक्त मल, अपवित्र
रूपांतर। धातुमाक्षिकं (नपुं०) खनिज पदार्थ, उपधातु, सोना मक्खी। धातुमारिन् (पुं०) गन्धक। धातु राजकः (पुं०) वीर्य। धातुवल्लभं (नपुं०) सुहागा। धातुवादः (पुं०) धातु विज्ञान, खनिज विज्ञान। धातुवादिन् (पुं०) खनिज पदार्थ ज्ञाता, धातुज्ञ। धातुवैरिन् (पुं०) गन्धक। धातुशेखरं (नपुं०) गन्धक का तेजाब, कासीस। धातुशोधनं (नपुं०) सीसा। धातुसंभवं (नपुं०) सीसा। धातुसाम्यं (नपुं०) निरोग, वात, पित्तादि रहित शरीर। धातु (पुं०) [धा+ तृच्] रचयिता, उत्पादक, प्रणेता, संधारक,
सहारा देने वाला, विधाता, (जयो० ३/६२) धात्रं (नपुं०) [धा+ष्ट्रल] पात्र, बर्तन। धात्री (स्त्री०) [धात्र+ङीप्] माई, धाय, उपमाता। (सुद०
९७) १. राजा (सुद० १/३८) २. पृथ्वी, (मुनि० ८) ३.
आंवले का वृक्षा (जयो० १/३८) धात्रीतलं (नपुं०) पृथ्वीतल। (मुनि०८) धात्रीदोषः (पुं०) पंचविध कर्म करने वाली दाई से भोजन
ग्रहण करना। मञ्जन, मण्डल, क्रीडन, क्षीर और अम्ब से पांच धाय होती हैं। साधक इनसे यदि भोजन लेता है तो वह धात्रीदोष कहलाता है। मार्जन-क्रीडन-स्तन्यपान-स्वापन-मण्डनम्। बाले प्रयोक्तुर्यत्प्रीतो दत्ते दोषः स धत्रिकाः।।
(अन०वृ० १५/२०) धात्रीपिण्डः (पुं०) धातृकर्म में संलग्न से भोजन प्राप्त करना। धात्रीफलं (नपुं०) आमलकी फल। (जयो० १/३८) धात्रीवलयः (पुं०) धरातल, पृथ्वीतल। (समु०८/२०) 'पलाप
धात्रीवलये नृपाल! समस्ति तेऽयं खलु योग्यकालः' (सुद० ८/२०)
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