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अभीष्टपुष्टि
८९
अभ्यतीत
अभीष्टपुष्टि (वि०) वाञ्छितसिद्धि। (जयो० २ ।
समान कह नहीं सकता है। तात्पर्य यह है कि पुरुष की अभीष्ट-संवदक (वि.) ज्ञाता, कुशलज्ञ, ज्ञानी। (जयो० पत्नी को पुत्र माता कहता है और पति पत्नी कहता है, वृ० १५/५३) प्रियवादी, यथेष्ट भाषी।
उसे सर्वथा न माता रूप कहा जा सकता है और न पत्नी अभीष्टसिद्धिः (स्त्री०) वाञ्छितनिष्पत्ति, इच्छित अर्थ की रूप, क्योंकि उसमें माता और पत्नी का व्यवहार पुत्र और
सिद्धि। (जयो० २३/३५) (वीरो० २०/१७) 'अभीष्टसिद्धेः पति की अपेक्षा से है, इसी तरह किसी वस्तु को भेद और सुतरामुपाय:।' (सुद० १०१)
अभेद दोनों रूप कहा जाता है। प्रदेश भेद न होने के अभीष्टा (स्त्री०) प्रियतमा, प्रेमिका।
कारण वस्तु अपने गुणों से अभेद रूप है और संज्ञा, अभुग्न (वि०) सीधा, सरल, एक सा, वक्रता रहित।
लक्षण आदि की अपेक्षा भेद रूप हे। दो रूप वस्तु को अभुज (वि०) बाहुविहीन, खञ्ज, लूला, लंगड़ा।
एकान्त रूप से एक रूप कहना तलवार आकाश को अभुजिष्या (स्त्री०) एकाकी स्त्री, अकेली नारी।
खण्डित करने के समान अशक्य है। (जयो० २६/७६) अभूत (वि०) अविद्यमान, मिथ्या, सत्ताविहीन। (वीरो० १४/४७)
अभेद-भेदात्मकमर्थमहंस्तवोदितं संकलयन् समर्हम्। शक्नोमि अभूतपूर्व (वि०) जो पहले न हुआ हो। "समागमः
पत्नीसुतवन्न वक्तुं किलेह खड्गेन नभो विभक्तुम्।। क्षत्रिय-विप्र-बुद्ध्योरभूतपूर्वः।" (वीरो० १४/४७)
अभेद-वृत्तिः (स्त्री०) व्यतिरेक न होना, द्रव्यार्थत्वेनाश्रयेण अभूतार्थ एक नय भी है। जिसका विषय विद्यमान न हो या
तदव्यतिरेकादभेदवृत्तिः। (रा०वा०४/४२) असत्यार्थ हो। जैसे गधे के सींग विद्यमान न होने के
अभेद-स्वभावः (पुं०) एक रूप परिणाम, एक रूप भाव। कारण अभूतार्थ है, और घट-पट आदि संयोगी पदार्थ
गुण-गुणी आदि में एक रूप भाव अभेद स्वभाव है। असत्यार्थ होने के कारण अभूतार्थ है।
अभेदोपचारः (पुं०) एकत्व का अध्यारोप। अभूतार्थता (वि०) अद्भुतरूपता। (जयो० १३/९९)
अभेद्य (वि०) अविभाज्य, अविभक्त, अभिभाजित। अभूतिः (स्त्री०) १. सत्ताहीनता, अविद्यमानता।, २. विभूति रहित, धन रहित।
अभोगः (पुं०) विस्तार, उन्नत। "बृहत्स्तनाभोगवशाद्विलग्नः।" अभूमिः (स्त्री०) अनुपयुक्त स्थान, पृथ्वी का अभाव, स्थान
(जयो० ११/३४) ०(वि०) भोग रहित, ०भोग विहीन। रहित। अरीकिर्तापि सुरीतिकर्ताऽऽगसामभूमिः स तु भूमिकर्ता।
अभोक्तृत्व नयः (पुं०) नय की एक दृष्टि। (जयो० १/१२) अभूमिः-स्थान रहित इति। (जयो० वृ० १/१२)
अभोक्तृत्वशक्तिः (स्त्री०) उपरम स्वरूप, समस्त कर्मों से अभूषणत्व (वि०) शोभा विहीनता। (समु० ९/३)
किये गए, ज्ञातृत्वमात्र से भिन्न परिणामों के अनुभव का अभेद (वि०) अविभक्त, समरूप, भेदाभाव, भिन्नता रहित।
उपरमस्वरूप। अभेदः (पुं०) द्रव्यों और गुणों की युगपत् वृत्ति, प्रदेश भेद न
अभोज्य (वि०) अभक्ष्य, खाने में अयोग्य। होने से गुण-गुणी में अभेद। (जयो० वृ० २६/८१)
अभ्यगत (वि०) नष्ट हुआ, समाप्त हुआ, क्षीण हो गया। तमो अभेद-शतपत्र के समान सत्य है, सौ पत्र और कमल में
विलयमभ्यगात्। (सुद० १०८) भेद नहीं है।
अभ्यग्र (वि०) निकट, समीप, पास। अभेदनयः (पुं०) अभेदनय, गुण-गुणी/अवयव-अवयवी/अङ्ग
अभ्यङ्क (वि०) तात्कालिक चिह्न से युक्त। अङ्गी सम्बन्ध विवक्षी। सदेतदेकं च नयादभेदाद् द्विधाऽभ्य- अभ्यङ्ग (वि०) [अभि+अञ्ज+घञ्] मालिश, उपटन, लेप। धास्त्वं चिदचित्सुप्रभेदात्।" (जयो० २६/९२)
अभ्यङ्गं (नपुं०) शरीर के प्रति, देह प्रति। "अङ्गमभिव्याप्य अभेदभुज (वि०) एक रूपता, अनुकूलप्रतिकूल पदार्थों में वर्तत इत्यभ्यङ्ग शरीरं प्रति।" (जयो० वृ० २८/८)
एक रूपता को धारण करने वाली। भूत्वा ममाभेदभुजः अभ्यङ्गनी-राग (पुं०) शरीर के प्रति रोग। समाधीः। (भक्ति०२६)
अभ्यञ्जन (नपुं०) [अभि+अञ्ज ल्युट] मालिश करना, उपटन, अभेद-भेदात्मक (वि०) एक विचारात्मक दार्शनिक दृष्टि मर्दन।
जब व्यक्ति अभेद और भेद रूप पदार्थ को पूर्ण रूप | अभ्यतीत (वि.) ०अतिक्रान्त, समाप्त हुआ, ०व्यतीत हुआ, ग्रहण करता हुआ कहना चाहता है, सब पत्नी के पुत्र के
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