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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिशस्तिः ८७ अभिसम्बन्धः अभिशस्तिः (स्त्री०) [अभि+शंस्+क्तिन्] ०अनिष्ट, हानिकर, कलंक, अपमान, दुष्ट, दुर्भाग्य, संकट। ) [अभि+शप्+णिच्+ ल्युट्] शाप देना, दोषारोपण, लाञ्छन। अभिशीत (वि०) [अभि+श्यैक्ति] शीतल, शदे, ठण्डा। अभिशोचनं (नपुं०) [अभि+शुच्+ ल्युट्] कष्ट, पीड़ा, ०अत्यन्त शोक, प्रगाढ़ व्याधि, तीव्र कष्ट। अभिश्रवणं (नपुं०) [अभि+श्रु+ल्युट्] उच्चारण, श्रुतश्रवण। अभिषङ्ग (पुं०) [अभि+ष+घञ्] १. आसक्ति, लगाव, संयोग, सम्पन। २. हार, पराजय। ३. वैराग्य, वियोग, ४. अभिशाप, लाञ्छन, आरोपण, ०अनादर। अभिषञ्जनं (नपुं०) आसक्ति, संयोग, सम्पर्क। अभिषवः (पुं०) द्रव या दृश्य द्रव्य। अभिषवः (पुं०) अभिषेक, स्नान “जिनेश्वरस्याभिषवं सुदर्शनः।" (सुद० ११४) अभिषिक्त (भू०क०कृ०) [अभि+सिंह+क्त] अभिषेक किया गया, स्नान युक्त (सम्य० ४१) अभिषिंच देखो नीचे। अभिषिञ्च (सक०) [अभि+सिंच] ०अभिषेक कराना, स्नान कराना, जलधारा छोड़ना। 'जिनपं चाभिषिषेच भक्तितः।' (सुद० ३/५) ०अभिषेक, जलाभिषेक का प्रयोग भगवन् प्रतिमा के लिए होता है। किन्तु राज्याभिषेक स्नान आदि के प्रयुक्त 'अभिषिञ्च' शब्द का अर्थ स्नान कराना, छिड़काव कराना, जल सिंचन करना, तिलक करते हुए संस्कार करना। 'अभिषिञ्च' अर्थात् अभिषेक के लिए प्रयुक्त जल शुद्ध, प्रासुक या पवित्र होता है। पञ्चम् सर्ग के (९८) श्लोक में 'अभिषिञ्चामि' क्रिया स्नान से सम्बन्धित है। अभिषेकः (पुं०) [अभि+सिंच्+घञ्] १. अभिषेक, पवित्र जलाभिषेक, प्रतिमाभिषेक। २. स्नान, सिञ्चन। शरीरि-वर्गस्य तमा विवेकहान्या महान्याग गुणाभिषेकः (जयो० १६/२५) उक्त पंक्ति में 'अभिषेक' का अर्थ समर्पित, संयमित, संस्कारित है। 'हे यागगुणाभिषेक! यागस्य हवनस्य गुणे वृद्धिकरणेऽभिषेको दीक्षाप्रयोगो यस्य तत्सम्बोधनम् अर्थात् हे यज्ञकर्तः।" (जयो० वृ० १६/२५) अभिषेचनं (नपुं०) [अभि+सिच्ल्यु ट्] प्रक्षालन, जलाभिसिंचन। (जयो० २२/२२) अभिषेचन-विधि (स्त्री०) प्रक्षालन विधि। (वीरो० २२/२२)। अभिषेणन (नपुं०) [अभि+सेना+णिच्+ल्युट] कूच करना, सैन्य ले जाना, शत्रु की ओर जाना। अभिष्टवः (पुं०) [अभि+स्तु+अप] प्रार्थना, अर्चना, पूजा, प्रशंसा, स्तुति। अभिष्यः (पुं०) [अभि+स्यन्द्+घञ्] १. टपकना, बहना, स्राव होना। २. अतिरेक, आधिक्य, विशेष वृद्धि। ३. नेत्र रोग होना। अभिष्वङ्गः (पुं०) [अभि+स्व+घञ्] सम्पर्क, संयोग, स्नेह, अनुराग। विषयसुखे राग आसक्तिः । (जै०११६) अभिसंश्रयः (पुं०) [अभि+सम्+श्रि+अच्] आश्रय, आधार, शरण। अभिसंस्तवः (पुं०) [अभि+सम्+स्तु+अप्] सुस्तवन, विशेष स्तुति, महगुणगान। अभिसंतापः (पुं०) [अभि+सम्+तप्+घञ्] ०संघर्ष, अति दुःख, विशेष व्याधि, ०पीड़ा, ०अधिक आकुलता। अभिसन्देहः (पुं०) [अभि+सम्+दिह्+घञ्] १. विनिमय, विनियोग, २. अति संदेह, अधिक संशय। अभिसन्दध्यात् (भू०) लगाना, व्यतीत करना। 'समयं सोऽभिस्सन्दध्यात्परमं।' (सुद० १३२) अभिसन्धः (पुं०) [अभि+सम्+धा] ०लाञ्छक, ०वञ्चक, निन्दक, छली, कपटी। अभिसंधा (स्त्री०) [अभि+सम्+धा+अ+टाप्] ०भाषण, उद्घोषण, प्रस्तुतिकरण, विवेचन, प्रतिज्ञा, कथन। अभिसन्धानं (नपुं०) [अभि+सम्+धा+ल्युट्] प्रतिज्ञा, उद्घोषण, ०कथन, ०प्रयोजन, उद्देश्य, लक्ष्य। अभिसन्धिः (स्त्री०) [अभि+सम्+धा+कि] विचारधारा, ०भाषण, उद्देश्य, प्रवचन ०अभिप्रेत, ०सम्मति, विश्वास, ०अनुबन्ध, प्रतिज्ञा, ०प्रस्ताव। 'कृताभिसन्धिरभ्यङ्गनीराग, महितोदय।" (जयो० २८०८) अभिसन्धित (वि०) [अभि+सम्+धा+णिनि+क्त] 'वञ्चकता, ठगीभावसा। रमन्ते प्राङ्गणेऽन्येनाहो विचित्राऽभिसन्धिता। (जयो० २/१४९) अभिसमवायः (पुं०) [अभि+सम्+अव+इ+अच्] एकता, संयोग, मेल, सम्बन्ध। अभिसम्पत्तिः (स्त्री०) [अभि+सम्+पद्+क्तिन्] परिवर्तन, बदलना, प्रभावित होना। अभिसम्पातः (पुं०) [ अभि+सम्+पत्+घञ्] ०समागम, संगम, संयोग, संघर्ष, ०युद्ध। अभिसम्बन्धः (वि०) [अभि+सम्ब न्ध+घञ्] १. संपर्क, सम्बन्ध, समवाय, एकरूपता, संयोजन। २. मैथुन, अब्रह्म For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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