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अभिलुलित
अभिशस्त
अभिलुलित (वि०) [अभि+लुड्+क्त] बाधित, क्षुभित, पीड़ित। अभिवद्धित (वि०) प्रमाण विशेष। अभिवदनं (नपुं०) [अभि+वद्+ल्युट्] नमन, प्रणमन। अभिवन्द् (सक०) वन्दन करना, नमन करना। (सुद० ४/२) अभिवन्दनं (नपुं०) नमन, प्रणमन। (जयो० वृ० २७/५३) अभिवह्निः (स्त्री०) यज्ञाग्नि, यज्ञ की आग। अभिवह्नि
कृतप्रदक्षिणोऽसि। (जयो० १२/९५) अभिवर्द्धमान (वि.) बढ़ते हुए, आगे जाते हुए।
मिथोऽभिवर्द्धमानतः। (जयो० २३/७८) । अभिवन्द्य (वि०) पूजनीय, समादरणीय। (वीरो० १७/२) अभिवाञ्छ (सक०) चाहना, कामना करना, इच्छा करना।
(दयो० १०७) तव दर्शनमिति साऽभिवाञ्छतो। (जयो०
१७/१०६) इष्टसिद्धिमभिवाञ्छतो। (जयो० वृ० २/३७) अभिवाञ्छित (वि०) ०अभिलषित, इच्छित, चाहा गया, |
०कामना जन्य। (समु०३/४४) संसिद्धत्यभिवाञ्छितं मनसि।
(समु०३/४४) अभिवाञ्छितमग्रतो। (जयो० १०/६८) अभिवादः (पुं०) [अभि+वाद्+घञ्] बोलबाला, बातचीत,
वार्तालाप। (जयो० ४/४५, समु० ८/२५) सत्तमोऽसि भवतामभिवाद:। (जयो० ४/४५) सत्यप्रतिज्ञावतोऽभिवादस्तथात्र मिथ्यावदतो विषादः। (समु० १/२८) द्वेधा जिनोयस्य
वरोऽभिवाद:। (समु० ८/२५) जिन भगवान् ने बतलाया। अभिवादः (पुं०) प्रणाम, नमस्कार, एक-दूसरे को नमन। अभिवादक (वि०) नमस्कार करने वाला, प्रणामकर्ता। अभिवन्दनक (वि०) अभिवादी, प्रणामकर्ता, नमन करने
वाला। (जयो० वृ० २७/५३) अभिवादिन् देखों नीचे। अभिवादी (वि०) वन्दना करने वाला, अभिवन्दनक। (वीरो०
१९/४४), (जयो० २७/५३) गणाधीनतयाभिवादी। निराधार
वचोऽभिलाषी। (वीरो० १७/२७) अभिविधिः (स्त्री०) [अभि+वि+धा+कि] पूर्णविधि, संबोध,
सीमा का प्रारम्भ, प्रारम्भिक विधि। अभिविद् (सक०) प्रकट करना, कहना, व्यक्त करना। अभिविदित (वि०) प्रकट किया, प्रतिपादित, अभिव्यक्त,
कथित ययाऽभिविदितो नरपो नार्या। (सुद० १/४०) अभिविश्रम्म (वि०) विश्वासपूर्वक, निष्ठाजन्य, संतोष युक्त।
(जयो०१०/११९) ग्रहण ग्रहणस्यादौ परमो भविनोरभिविश्रम्म।
(जयो० १०/११९) अभिविश्रुत (वि०) [अभि+वि+श्रु+क्त] सुविख्यात, प्रसिद्ध,
अति व्यापक।
अभिवीक्ष्य (सं० कृ०) देखकर, अवलोकनकर, निश्चेलक
तमभिवीक्ष्य बभूव। (सुद० ४/२) अभिवृत्तिः (स्त्री०) अभिव्यक्ति (सम्य० १०२) अभिवृद्ध (वि.) अत्यन्त विस्तृत, अति विशाल, विशिष्ट।
(सुद० ४/२१) सर्वेषामभिवृद्धाय जिनाय समहोत्सवम्। (सुद० ४/२१) 'निशङ्किताद्यष्टगुणाभिवृद्ध।" (भक्ति० ७) उक्त पद में 'अभिवृद्ध' का अर्थ परिपूर्ण, पूर्ण, सम्पूर्ण,
परिपुष्ट भी है। अभिव्यक्तः (भू०क०कृ०) [अभि+वि+अंज्+क्त] १. उद्घोषित,
प्रतिपादित, प्रकाशित, २. स्पष्ट, स्वच्छ, साफ। अभिव्यक्ति (स्त्री०) [अभि+वि+अं+क्तिन्] प्रदर्शन,
स्पष्टीकरण, कथन, विवेचन। अकृत्या तदिभव्यक्ती
(हितो०१४) अभिव्यक्तिः (स्त्री०) ०प्रकाशित होना, स्पष्ट दिखना,
अभिव्यक्त करना। "सौभाग्यमाहत्सीयमभिव्यनक्ति" (वीरो० वृ० १२) अभिव्यञ्जनं (नपुं०) [अभि+वि+अञ्ज ल्युट्] प्रकट करना,
अभिव्यक्त करना, प्रकाशन करना। अभिव्यापक (वि०) [अभि+वि+आप+ण्वुल्] १. प्रसार करने
वाला, फैलाने वाला, २. समझने वाला, स्पष्ट करने वाला। अभिव्याप्तिः (स्त्री०) [अभि+वि+आप+क्तिन्] ०सम्मिलित
करना, जोड़ना, ०व्यापक बनाना, सर्वत्र फैलाना। अभिव्यावहरणं (नपुं०) [अभि+वि+आ+ह+ल्युट्] ०उच्चारण
करना, ०ध्वनित करना, ०बोलना कसना। अभिशंसक (वि०) [अभि+शंस्+ण्वुल] अपमानक, दोषारोपक,
कलंककर। अभिशंसनं (नपुं०) [अभि+शंस्+ल्युट] दोषारोपण, आक्षेपक,
अपमान, निरादर। अभिशङ्का (स्त्री०) [अभि+शङ्क+अ+टाप्] आशङ्का, संदेह,
चिन्ता, भय। अभिशपनं (नपुं०) [अभि+शप् ल्युट्] ०शाप, दोषारोपण,
आरोप, ०लाञ्छन, मिथ्याशङ्का। .. अभिशब्दः (पुं०) [अभि+शब्द] उद्घोष, ०कथन, प्रतिपादन,
प्ररूपणा, निरूपण। अभिशब्दित (वि०) [अभि+शब्द+क्त] ०प्रकाशित, प्ररूपित,
निरूपित, प्रतिपादित, कथित, भाषित। अभिशस्त (भू०क०कृ०) [अभि+शंस्+क्त] ०अलंकित,
०अपमानित, बाधित, ०दुःखित, ०अशुभी, पापी, दुष्ट।
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