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अभिनिवेशः
अभिप्रायवेदी
नियतं बोधनमभिनिबोधः।' (त०वा०१/१३) अपने नियत | अभिन्नचेतस् (पुं०) स्थितचित्त, चित्त की स्थिरता। प्रार्थयेत् विषय का बोध-जैसे चक्षु से रूप का ज्ञान। सत्तरङ्गतर- प्रभुमभिन्नचेतसा। (जयो० २/१२२) लैर्निजकेन्द्राप्रादागता हयवरैस्तु नरेन्द्राः। तावतैव हि हयानन- अभिन्नाक्षरं (नपुं०) परिपूर्ण अक्षर, दशपूर्व का ज्ञान अभिन्नाक्षर वर्ग, प्राप्तवान भिनिबोध निसर्ग:।। वहां जितने भी पृथवीतल कहलाता है। के राजा थे, वे सब अपने अपने स्थान से तरंग के समान अभिन्नाचारः (पुं०) ०अतिचार/दोष रहित, आचार/आचरण। चंचल घोड़ों पर आरूढ़ होकर आये थे। अतः वहां निर्दोषाचार। हयानन आ गए, यह सहज ही अनुमान होता था। अर्थात् अभिपतनं (नपुं०) [अभि+पत्+ल्युट्] गिरना, ०टूटना, भंग जिससे अर्थाभिमुख होकर नियम विषय का ज्ञान किया | होना, ०उपागमन। जाता है, वह 'अभिनिबोध' है।
अभिपत्तिः (स्त्री०) [अपि+पद्+क्तिन्] उपागमन, गिरना, अभिनिवेशः (पुं०) [अभि+नि+विश्+घञ्]०आग्रह, आसक्ति, निकट जाना।
०संलग्न, तत्पर, ०तैयार, ०एक निष्टता। "इत्येवमभिनिवेशा अभिपद (वि०) सुशोभित, व्याप्त, संयुक्त। "मृगमदाभिपदा द्वन्द्वमतिः।" (जयो० ६/२) दर्शन की दृष्टि से इसका अर्थ किल।" (जयो० २५/५६) यह है कि "नीतिमार्ग पर न चलते हुए भी दूसरे के अभिपन्न (भू०क०कृ०) [अभि+पद्+क्त] उपागत, समीपागत, तिरस्कार के विचार से कार्य प्रारम्भ करना।
संन्निकट। अभिनिषेशिन् (वि०) [अभि+नि+विश् णिनि] आसक्त, तत्पर, अभिपरिप्लुत (वि०) [अभि+परि+प्लु+क्त] भरा हुआ, परिपूर्ण संलग्न।
युक्त, डूबा हुआ। अभिनिष्क्रमणं (नपुं०) [अभि+निश्+क्रम ल्युट्] प्रयाण करना, अभिपूरणं (नपुं०) [अभि+पू+ल्युट्] परिपूर्ण, पूर्ण, संपन्न,
बाहर निकलना। सिद्धान्त की दृष्टि से बाह्य और आभ्यन्तर भरा हुआ।
परिग्रह का त्याग करके प्रव्रज्या की ओर अग्रसर होना। अभिपूर्व (अव्य०) क्रमशः, एक के बाद एक। अभिनिष्टानः (पुं०) [अभि+नि+स्तन्+घञ्] वर्णमाला का अभिप्रणयः (पुं०) [अभि+प्र+नी+अच्] प्रेम, कृपादृष्टि, अक्षर।
स्नेह, परस्पर अनुरञ्जन, ०अनुरक्ति, लगाव। अभिनिष्यतनं (नपुं०) [अभि+निस्+पत्+ल्युट्] निकलना, टूट
अभिप्रणीत (भू०क०कृ०) [अभि+प्र+नी+क्त] संस्कारित, पड़ना
निर्मित, आनीत। अभिनिष्पत्तिः (स्त्री०) [अभि+निस+पत्+वितन] ०समाप्ति, | अभिप्रथनं (नपुं०) [अभि+प्रथ् ल्युट्] विस्तार युक्त, प्रतान, ०सम्पन्नता, पूर्ति, निष्पन्नता।
व्यापकता। अभिनिह्नवः (पुं०) [अभि+नि+हु+अप्] छिपाना, मुकरना, अभिप्रदक्षिणं (अव्य०) दाहिनी ओर, दक्षिण ओर। मेटना।
अभिप्रमाणक (वि०) प्रमाणानुसारी (जयो० २/६२) अभिनीत (भू०क०कृ०) [अभि+नी+क्त] अभिनय किया गया, अभिप्रवर्तनं (नपुं०) [अभि+प्र+वृत्+ल्युट्] १. प्रयाण,
मंचित, अलंकृत, सुसज्जित, पहुंचाया गया, निकट प्रतिगमन, प्रस्थान, २. आचरण, प्रवाह। । लाया गया।
अभिप्रायः (पुं०) [अभि+प्र+इ+अच] प्रयोजन, वाञ्छा, अभिनीतिः (स्त्री०) [अभि+नी+क्तिन] इंगित, मित्रता, ०इच्छा, ०कामना, आशय, तात्पर्य, अर्थ, भाव, सहितष्णुता।
विचार, ०सम्मति, विश्वास, सम्बन्ध, उल्लेख। (जयो० अभिनेतु (पुं०) अभिनेता, नाटक का नायक।
१/११) "नीरीतिभावाभिप्रायो निष्फलो बभूव।" (जयो० अभिनेय (सं० कृ०) [अभि+नी+यत] अभिनय योग्य मंच, वृ० १/११) दृश्य स्थान।
अभिप्रायनेदिनी (वि०) अभिप्राय को जानने वाला, अन्तरंगअभिन्न (वि०) ०अखण्ड, पूर्ण, ०एक रूप, ०अपरिवर्तित, भावस्य वेदिकी। (जयो० १४/९)
स्थिर। (जयो०२/१२२) दर्शन की दृष्टि में वस्तु वर्णन के अभिप्रायवेदी (वि.) अभिप्राय को जानने वाला। (जयो० ७० लिए भिन्न और अभिन्न दोनों का प्रयोग किया जाता है। १४/१०)
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