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अभिघातः
अभिधा
अभिघातः (पुं०) [अभि+हन्+घञ्] ०मारना, कष्ट पहुंचाना,
घातना, ०ताड़ना, प्रताड़ना, प्रहार, ०आघात, विध्वंस,
नाश, विनाश, विघात, विहनन। अभिघातक (वि०) विध्वंसक, विनाशक, प्रताड़क, विघातक। अभिघातिन् (वि०) विध्वंसक, शत्रु, बैरी, विनाशक। अभिघारः (अभि+घृ+णिच्+घञ्) घी की आहूति। अभिघ्राणं (नपुं०) [अभि+घ्रा+ल्युट्] मस्तक सूंघना, शिर चुम्बन। अभिचरणं (नपुं०) [अभि+ चर् + ल्युट्] ०मारना,
झाड़ना-फूंकना। अभिचारः (पुं०) [अभि+च+घञ्] जादू करना, झाड़ना। अभिचारिन् (वि०) अभिचार करने वाला। अभिजन: (अभि+जन्+घञ्) स्व जन्म स्थान वंश, उत्पत्ति
स्थान, जन्मभूमि, ०मातृभूमि कुटुम्ब, कुल अपने अपने स्थान। जनोऽभिजनसाम्प्राप्तो वर्धमानाभिधानतः। (जयो०
८/८३) अभिजनवत् (वि०) [अभिजन+मतुप्] उत्तम कुल का, श्रेष्ठ ।
कुटुम्ब में उत्पन्न। अभिजयः (पुं०) [अभि+जि+अच्] विजय, जीत। अभिजात (भूक०कृ०) [अभि+जन्+क्त] ०उत्कृष्ट कुलोत्पन्न,
कुलीन, उच्चकुल, उन्नत वंश। (प्रवालोऽपि चाभिजातः) (जयो० ४१/१३) सद्योजात प्रवाल। सैवाभिजातोऽपि च नाभिजातः। (वीरो० १/२) अभिजातः सुभगोऽपि नाभिजातः सौन्दर्यरहित इति। (वीरो० वृ० १/२) 'अभिजात' का अर्थ उत्कृष्ट कुलोत्पन्न है। "अभिजातदपि नाभिजातकम्" (सुद० ३/१३) यहां 'अभिजात' का अर्थ तत्काल उत्पन्न है। हे नाभिजातासि किलाभिजातः। (जयो० १९/१७) ०अकुलीन होकर भी 'कुलीन' का बोधक है। २.०' अभिजात' का अर्थ सुन्दर,
मनोहर, ०बुद्धिमान, ०श्रेष्ठ, मधुर, उपयुक्त विद्वान्
भी किया जाता है। अभिजातत्व (वि०) विवक्षित अर्थ रूप कथन शैली। अभिजातिः (स्त्री०) [अभि+जन्+क्तिन्] प्रशंसनीय प्रकृति,
उत्तम जाति, श्रेष्ठ कुल। भोगीन्द्रदीर्घाऽपि भुजाभिजातिः।
(जयो० १/५२) आभजिघ्रणं (नपुं०) [अभि+घ्रा+ल्युट्] सिर का स्पर्श करना। अभिजित् (पुं०) [अभि+जि+क्विप] १. नक्षत्र, २. विष्णु।
पराभिजिद् भूपतिरित्यनन्तानुरूपमेतन्नगरं समन्तात्। (सुद० १/२९)
अभिज्ञ (वि०) [अभि+ज्ञा+क]
०जानने वाला, प्रमाण ज्ञाता, ज्ञानवान्, ज्ञानीजन। इत्येवमालोक्य भवेदभिज्ञः। (सुद० १२१) वनस्थानमभिज्ञोऽभूत् स एव प्रमोक्षोपसंग्रही। (जयो० २८/५९), २.
कुशल, अनुभवशील, दक्ष,चतुर, निपुण। अभिज्ञा (स्त्री०) [अभि+ज्ञा] ०ज्ञाता, ज्ञायक कुशल, निपुण,
दक्ष, प्रज्ञाशील। स्वनिन्दयेत्थं निगदन्त्यभिज्ञाः। (भक्ति
सं० ३७) अभिज्ञा (नपुं०) [अभि+ ज्ञा+ल्युट्] दर्शन की परम्परा में
'अभिज्ञा' को प्रत्यभिज्ञा/प्रत्यभिज्ञान भी कहते हैं। 'तदेवेदम्' इति ज्ञानमभिज्ञा। (सिद्धि वि०२२६) 'यह वही है' इस
प्रकार का ज्ञान 'अभिज्ञा है। अभिज्ञानं (नपुं०) [अभि+ज्ञा+ ल्युट्] प्रत्यभिज्ञान, स्मरण,
स्मृति, पहचान। अभितः (अव्य०) पर्यन्ततः, (अभि+तसिल्) ०दोनों ओर।
निकट, सब ओर, सभी तरफ। समस्त, चारों ओर। (सुद०३/८) अस्मिन् पर्वाणि तमसा रभसादसितोऽभितोऽर्कयशाः। (जयो०६/१९) अभितः समस्तभावतो। (जयो० वृ० ६/९) प्राचालि लोकैरभितोऽप्यशः। (वीरो० १/३०) श्रणनाङ्के मृदुतापुताऽभितः। (सुद० ३/२१)
प्रमदाश्रुभिराप्लुतोऽभितः जिनपं। (सुद० ३/५) अभितापः (पुं०) [अभितप्+घञ्] ०अत्यन्त गर्मी, संताप,
कष्ट, ०पीड़ा, भावावेश। अभिताम्र (वि०) प्रवल रक्त, पूर्ण राग। अभिदक्षिणं (अव्य०) दक्षिण की ओर। अभिद्रवः (पुं०) [अभि+अप+घञ्] आक्रमण, प्रहार। अभि+दा (अक०) प्रतीत होना, "अभिददतीत्यनुरक्तिम्"।
(जयो० ४/१४) अभिद्रोहः (पुं०) [अभि+दुह्+घञ्] ०षड्यन्त्र रचना, हानि,
०क्रूरता, ०द्रोह, गाली, निन्दा। अभिद्वार (नपुं०) मुख्य द्वार, प्रवेशद्वार। देवांशे स्फुरदेव
देवदिगभिद्वारे प्लवालम्बने। (जयो० ३/७१) अभिधं (नपुं०) पाप, दुष्टकर्म। "निरन्तर जन्तुबधाभिधेन।"
(सुद० ४/१७) अभि+धा (सक०) कहना, बोलना। "नानैवमित्यभिधाय नागः।"
(जयो० २/१५८) अभिधाय कथयित्वा। अभिधा (स्त्री०) [अभि+धा+अ+टाप्] १. स्मरण, स्मृति
(जयो० १६/३) "रामाभिधामकलयन्ति नामाधुना।" स्त्री
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