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अब्जबुद्धिः
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अभावः
(जयो० १/५४) “अन्ते भवतीत्यन्त्यो जकारो यस्य अब्जस्य, तस्यादौ प्रारम्भ मवर्णो यस्य तस्य भाव आदिमवर्णता किं स्यात् न स्यात् मुखभाव इत्यर्थः। (जयो० वृ० १/५४)
आकर्षताब्जं च सहस्रपत्र। (सुद० ४/१९) * कमल। अब्जबुद्धिः (स्त्री०) पद्मबुद्धि, कमलबुद्धि। वध्वा स वध्वानयनेऽ
ब्जबुद्धि। (जयो० १६/४८) अब्जयः (पुं०) सूर्य, दिनकर (वीरो० २/११) अब्जज (वि०) कमल को उत्पन्न करने वाला। अब्जनेतः (पुं०) सूर्य, दिनकर। (जयो० वृ० १५/४) अब्जा (स्त्री०) सीपी। अब्जिनी (स्त्री०) [अब्ज इनि स्त्रियां ङीप्] कमल वल्ली,
कमलवेल, कमललता, कमलिनी। (वीरो० ६/३४)
निमीलिताभ्भोजदृगब्जिनीति। (जयो० १५/८) अब्दः (पुं०) [अपो ददाति-दा+क] ०बादल, मेघ, वार्दर, |
वर्ष। (जयो० २०/५) अब्दरम्य (वि०) रमणीय मेघ। 'अब्दो मेघस्तदिव रम्यः।'
(जयो० वृ० २०/३२) अब्द-संकुलः (पुं०) वार्दर व्याप्त, मेघाच्छादित, मेघ समूह।
(जयो० २०/५) अब्दैः संवत्सरैः संकुला षोडशवर्ष-वयस्क।
(जयो० वृ० २०/५) अब्दसारः (पुं०) कर्पूर (जयो०) अब्धिः (पुं०) [आपः धीयन्ते अत्र अप+धा+कि] उदधि,
सागर, वारिधि, समुद्र। परापराब्धी हि पुरा स्फुरन्तौ। (जयो०
८/१) भवाब्धितीरं गमितप्रजावान्। (जयो०सुद० १/१) अब्रह्म (वि०) न ब्रह्म अब्रह्म (स०सि०७/१७) ब्रह्म अभाव,
मैथुन भाव। यद्वेदराग-योगान्मैथुनमभिधीयते तदब्रह्म। (पु०सि०
१०७) स्त्री-पुरुष सम्बंधी राग चेष्टा। अब्रह्मचर्य (वि०) ब्रह्मभाव रहित, ब्रह्मचर्य से विहीन, __ अब्रह्म/मैथुन की अभिलाषी। अब्रह्म-वर्जनं (नपुं) अब्रह्म का त्याग, परस्त्री स्मरण का परित्याग। अभक्ति (स्त्री०) भक्ति विहीन, अविश्वास, संदिग्धता,
० अर्चना की हीनता। अभक्ष्य (वि०) भक्षण योग्य नहीं, खाने के लिए निषिद्ध।
नरस्य दृष्टौ विष्भक्यवस्तु किरेस्तेदतदरऽभक्षमस्तु। सन्धानक त्यजेत्सर्वं, (वीरो० १९/४) दधि-तर्क, द्वयहोषितम्। दना तक्रेण वा मिश्र, द्विदलञ्च न भक्षयेत्।। पिप्पलोदुम्बर-प्लक्षवट-फल्गु-फलानि तु त्यजेदन्यफलं जन्तु शून्यं कृत्वा च संभवेत्।। (हि०सं० १२०-१२१ श्लोक०)
अभक्षवृत्तिः (स्त्री०) अभक्ष्य प्रवृत्ति (समु० ४/४८) अभग (वि०) अभागा, भाग्यहीन, बेसहारा। अभङ्ग (वि०) नित्य, शाश्वत, स्थाई। न भङ्गा अभङ्गा प्रवाहयुक्ता।
(जयो० १/८) "गङ्गामभङ्गां न जहात्यथाकी" अभद्र (वि०) अशुभ, अकल्याणकारी, कुत्सित, दुष्ट। अभद्रं
हि संसारदु:खम्। अभय (वि०) निर्भय, भयमुक्त, सुरक्षित, निर्भयभाव, अभय___ दान। (जयो० १/९८) अभयमङ्गिजनाय नियच्छता। (जयो० १/९८) अभयंकर (वि०) भय रहित, निर्भयता जन्य। अभयकुमार (पुं०) राजा श्रेणिक का पुत्र, रानी ब्राह्मणी का तनय। अभयचन्द्रः (पुं०) आचार्य, गोमट्टसार के टीकाकार। अभयदान (नपुं०) अनुग्रह करने वाला दान, प्राणिमात्र का
कृपा दान। अभयदेवः (पुं०) सन्मति तर्क के टीकाकार। अभयदेवी (स्त्री०) राजा दार्फ वाहन की रानी। दार्फवाहनभूपस्या
भया नाम नितम्बिनी। (वीरो० १५/२८) अभयनन्दिः (पुं०) वीरनन्दि के शिक्षा गुरु। अभयप्रदः (वि०) अभयप्रदाता। अभयमति (स्त्री०) अभयमती रानी, राजा धारणीभूषण की
रानी। (सुद० पृ० ८४) चम्पा नगरी के एक शासक धात्री वाहन की रानी का नाम भी अभयमती था। अभयमतीत्य
भिधाऽभूद्भार्या। (सुद० १/४०) अभयमती देखो अभयमति। अभयमुद्रा (स्त्री०) ध्वाजाकार मुद्रा। अभवः (पुं०) ०अनुत्पन्न, अनुजाय, नहीं उत्पन्न। अभव्य (वि०) ०अनुपयुक्त, ०अशुभ, दुर्भाग्यपूर्ण, ०अभागा।
सिद्धान्त में 'अभव्य' उसे कहा गया है जो सिद्धिगमन के लिए अयोग्य, सम्यग्दर्शनादि पर्याय से कभी भी परिणत न हो। 'निर्वाणपुरस्कृतो भव्यः, तद्विपरीतोऽभव्यः। (धव०
१/५०-१५१) अभाग (वि०) अविभक्त, विभाज्य योग्य नहीं। अभागिनी (स्त्री०) भाग्य विहीन, सौभाग्य सुख हीन। राज्ञी
प्राह किलाभागिन्यसि त्वं तु नगेष्वसौ। (सुद० वृ०८५) अभावः (पुं०) ०अनुपस्थिति, विमुक्त, ०हीन, ०रहित,
असफलता, अनस्तित्व। निषेध, अपाय, प्रहानि। (जयो० १/२४) अतिरेकोऽभावस्तु। (जयो० वृ० १/१९) 'अभाव' अतिरेक को भी कहते हैं। 'अभाव' को अपाय भी कहा। (जयो० २४/३७) अभाव को 'प्रहाणि' भी कहा। (जयो०
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