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अप्रिय
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अब्ज
अप्रिय (वि०) अस्निग्ध, स्नेहरहित, अरुचिकर। प्रियोऽप्रियोऽथवा अबल (वि०) बलहीन, शक्ति रहित, दुर्बल। (जयो० ३/१२) स्त्रीणां कश्चनापि न विद्यते। (जयो० २/१४७)
अबला (स्त्री०) सुकुमारी। (जयो० वृ० १/७१) अप्रासुकता (वि०) सजीवता, प्रासुकता का अभाव। (वीरो० अबला-मृषा साहसमूर्खत्वलौल्य कौटिल्यकादिकान्। सर्वानव१६/२४)
गुणांल्लातीत्यबला प्रणिगद्यते।। (जयो० २/१४५) "झूठ अप्रियकर (वि०) अरुचिकर, निष्ठुर, कठोर।
बोलना, दुस्ससाहसता, मूर्खता, चंचलता और कुटिलता अप्रियकारी (वि०) निष्ठुर/कठोर भाषी, अहित भाषी, अमृदुभाषी। आदि जितने भी अवगुण हैं, उन सभी को जो ग्रहण करती अप्रिय-वचनं (नपुं०) विरोध जन्य वचन। अरतिकरं भीतिकरं है, वह 'अबला' है।
खेदकरं वैर-शोक-कलहकरम्। यदपरमपि तापकरं परस्य अबलाकुल (वि०) स्त्री जनासक्त। नित्यमत्रावसीदन्ति मादृशा तत्सर्वमप्रियं ज्ञेयम्॥ (पुरुषार्थसिद्धयाप ९८)
अबलाकुलाः। (जयो० १/१०७) अप्रीतिः (स्त्री०) स्नेहशून्य, अरुचि। प्रायः प्राग्भव-भाविन्यौ अबलाधिकारी (वि०) १. बलहीनता का अधिकारी, २. प्रीतत्यप्रीती च देहिनाम्। (सुद० ४/१६)
अबलाओं का अधिकारी "अबलस्य बलाभावस्य, अवलायाः अप्रीतिदायक (वि०) अरतिकर, अरुचिकर, अप्रसन्नता स्त्रियो वाऽधिकारी। (जयो ० उत्पादक। (जयो० वृ० ३/१२)
८/५९) बभूव भूयोऽबलाधिकारी। (जयो०८/५९) अप्रौढ़ (वि०) भीरु, असाहसी, अवयस्क।
अबहु (वि०) कम, हीन। अप्लुत् (वि०) ध्वनि विशेष, वह स्वर जो दीर्घ न किया जा अबहुश्रुतं (नपुं०) अध्ययन का विस्मरण। अधीतं वा विस्मारितम्। सके।
अबाध (वि०) ०बाधा रहित, ०अनियन्त्रित, ०पीड़ा मुक्त, अप्सरस (स्त्री०) [अद्भ्यः सरन्ति, उद्गच्छन्ति-अप+स+असुन्]
रोग मुक्त। अप्सरा, स्वर्वेश्या, स्वर्गसुन्दरी, इन्द्रनर्तकी। जलक्रीड़ा अबाधा (स्त्री०) बंधने के पश्चात् कर्म का आवरण। (वीरो० रुचिकरा। (वीरो० २/१०) (जयो० वृ० ३/७९) "इय २०/५) उदय में न आना। मप्सरसामिवाधिका।" (समु २/१७) "अपां जलानां सरस्सु अबाधावृत्तिः (वि०) आवरण निवृत्ति (वीरो० २०/५ स्थानेषु विचरन्ति" अर्थात् जो जल/जलक्रीडा स्थानों में अबाधित (वि०) बाधा रहित, पीड़ा से मुक्त। विचरण करती है। ग्रामान् पवित्राप्सरसोऽप्यनेक। (सुद० अबाल (वि०) १. मूर्खता का अभाव, ज्ञानयुक्त, २. पूर्ण, १/०)
यौवन रहित, युवक। ३. निर्लोभ युक्त। "बालो मूर्खः, न अप्सरः सारमयी (वि०) १. स्वर्ग सुन्दरियों में श्रेष्ठतम्-त्वं बालोऽबालस्तद्भावतो मूर्खत्वाभावाद् हेतोः।" (जयो० वृ०
पुनरप्सरसां स्वर्गवेश्यानां सारमयी। (जयो० वृ० १६/१५) ३/४६) "अबालभावतो निर्लोमत्वात्।" (जयो० वृ० ३/४६) २. जलयुक्त सरोवरों में श्रेष्ठतम अप्सरसा अबाला (स्त्री०) न बाला अबाला, जो बालिका नहीं, सुदीर्घा, जलयुक्तसरोवराणां।
अलध्वी। (जयो० वृ० ३/३९) अप्सरोमयी (वि०) १. स्वर्ग की अप्सरा रूपवाली। २. जल अबाह्य (वि०) आभ्यन्तर, आन्तरिक, भीतरी, अनुचित। (वीरो०
के सरोवर रूपवाली। "स्वर्गीयवेश्यास दृशायां सरोमयी १८/४८) चाराच्छीघ्रमेवाभूत्।' (जयो० वृ० २२/६८)
अबुद्ध (वि०) [न+बुध्] अज्ञानी, मूर्ख, अनभिज्ञ, मतिविहीन। अफल (वि०) निष्फल, निरर्थक, प्रयोजन रहित, पुरुषत्व | अबुद्धिः (स्त्री०) अज्ञान, मति हीन, मूर्खता। "आत्मस्थविहीन।
दु:ख-बीजापायोपायचिन्ताशून्यत्वादनिवार्य-पर-दु:ख अफलत्व (वि०) फलाशय रहितपना, निरर्थकता (वीरो० १८/३६) शोचनानुचरणाच्चाबुद्धिः।" (भ०अ०टी० १/५४) अबद्ध (वि०) १. बन्ध मुक्त, बन्धन हीन, बन्ध रहित, २. अबोध (वि०) मूढ, मूर्ख, नादान, छोटा, लघु, अज्ञानी। स्वच्छंद, अर्थहीन, प्रयोजन रहित।
(जयो० १७/९) अबन्ध (वि०) ०अनुराग रहित, प्रीति सम्बंध नहीं। सिद्ध, अबोधा (स्त्री०) बोधविहीना, ज्ञानशून्य। (जयो० १७/९) मुक्त (जयो० )
अब्ज (वि०) [अप्सु जायते-अप्+जन+उ] जल में उत्पन्न हुआ। अबन्धक (वि०) मित्र रहित, एकाकी, अकेला।
अब्ज (नपुं०) [अप्सु जायते] कमल, अरविंद, पद्म, सरोज।
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