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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपकर्षणकी अपट सत्तागते कर्मणि बुद्धिनावाऽपकर्षणोत्कर्षणसंक्रमा वा। (समु० | ८/१५) कम असर कर देने का नाम 'अपकर्षण' है। अपकर्षणकी (वि०) मायाजन्य विद्या। (जयो० वृ० ५/५) अपकर्षणविद्या (स्त्री०) माया, कपट विद्या। कन्यका यदपकर्षणविद्या। (जयो० ५/५) अपकारः (पुं०) [अप+कृ+घञ्] दुःखोत्पादन, आघात, कष्ट, अविनय, अपकारि, उत्पीड़न, दुष्टता। (वीरो० १/३३) अपकारक (वि०) [अप+कृ+ण्वुल] कष्टप्रद, हानिकारक, अपमानजन्य। अपकारणं (नपुं०) निवारण। (जयो० १९/७९) णमो वचबलीणं यदजममारीनिवारणम्। णमो काय बलीणं च गोरोगस्या पकारणम्॥ (जयो० १९/७९ अपकारपदा (वि०) अपकीं। (जयो० ५/५९) अपकारि (वि०) अपकार करने वाला, अपमान कर्ता। अपकारिणी (वि०) विनाशकारी। जडताया अपकारिणीमतः। 1 (सुद० वृ० ५४) अपकृ [अप+कृ] उपकार करना। अपकृति (स्त्री०) [अप+कृ+णिनि] आघात, कष्ट, दु:ख, अपमान। अपकृष (सक०) [अप+कृष्] ग्रहण करना, लेना। "लताप्रतानस्य भुवोऽपकृष्य" (जयो० १/५०) अपकृष्य गृहीत्वा। (जयो० वृ० १/५०) अपकृष् (सक०) [अप कृष्] हटाना, दूर करना, खींचना, अपकर्षण करना। 'अपकर्षति स्म शिविकावाह।' (जयो० ६/४९) 'समयं स्वरूत्पन्नरुचोऽपकृष्टम्' (वीरो० २/४२) अपकृष्ट (वि०) [अप+कृष+क्त] खींचा गया, बाहर निकाला, दूर हटाया गया। अपक्व (वि०) कच्चा, अपच, अजीर्ण। (जयो० २/१५२) अपक्वमृण्मयभाजनं (नपुं०) आमपात्र, कच्चापात्र। (जयो० वृ० २/१५२) अपक्रमः (पुं०) [अप+क्रम+घञ्] हटना, भागना, पलायन करना। अपक्रमः (पुं०) दुष्क्रम, दुर्मत। (जयो० १२/४) वृषचक्रम पक्रमप्रभाव। (जयो० वृ० १२/४) अपक्रमप्रभावः (पुं०) दुर्मतप्रभाव, दुष्क्रम प्रसार। (जयो० वृ० १२/४) अपकीर्तिः (स्त्री०) दुर्यश, दुष्प्रभाव। (जयो० २/९४) अपकोशः (पुं०) [अप्+कृश+घञ्] भर्त्सना, निन्दा, गाली, अपमान शब्द। अपक्ष (वि०) १. पक्षहीन, पंख रहित। २. पक्षाभाव, विपक्ष। ३. निष्पक्ष। अपक्षयः (पुं०) [अप+क्षि+अच्] ह्रास, नाश, विनाश, अभाव। अपक्षेपः (पुं०) [अप क्षिप्+घञ] नीचे फेंकना, नीचे रखना। अपगत (वि०) रहित, विहीन। (जयो० ११/५५) "आपगाऽपगत लज्जमिवाङ्कम्" अपगत-लज्ज (वि०) लज्जा रहित, निःसङ्कोच। (जयो० ४/५५) अपगतवेद (वि०) वेदन रहित, त्रिविध पुं०, नपुं०, स्त्री, वेद रहित। अपगति (स्त्री०) [अप+गम्+क्तिन्] अशोभन गति, दुर्भाग्य, अविनीता उद्धतामथापगतिं भगवदागमे तु॥ (जयो० २३/८७) अपगरः (अप+गृ+अप्), निन्दा, गर्हा। अपगुणं (नपुं०) दुर्गुण, खोटे परिणाम। नाबन्धमवाप सापगुणदस्यु। (जयो० ६/९७) अपगण दस्य (वि०) दुर्गणों को हरण करने वाली। 'अपगणानां दुर्गुणानां दस्युहीं'। (जयो० वृ०६/९७) अपघनं (नपुं०) १. मेघ रहित, मेघविरोधिनी, 'अपघन रुचोचिता या'। (जयो० ६/७६) अपघना धनहीना मेघविरोधिनी। (जयो० वृ० ६/७६) २. अवयवयुक्त-अवघनेषु सर्वेष्ववयेषु। अपडूपात्री (वि०) कीचड़ रहित। (वीरो०२१/६) अपचयः (पुं०) [अप+चि+अच्] ह्रास, न्यूनता, कमी, छीजन, गिरावट, परिश्रम हीन। अपचरितं (नपुं०) [अप+च+क्त] दोष, दुष्कृत्य, दुष्कर्म। अपचारः (पुं०) [अप+च+घञ्] मृत्यु, अपराध, दोष, अभाव। दुराचरण, क्षति। अपचारिन् (वि०) [अप+च+णिनि] दुष्ट, दुराग्रही, दुष्टकर्मी। अपचितिः (स्त्री०) [अप+चि+क्तिन्] १. हानि, नाश, व्यय। २. प्रायश्चित्त, सम्मानन, पूजन, आदर। अपच्छत्रं (वि०) छत्र विहीन, छतरी रहित। अपच्छाय (वि०) छाया रहित, कान्तिहीन। अपच्छेदः (पुं०) [अप+छिद्+घञ्] हानि, नाश, व्यय। अपजयः (पुं०) [अप+जि+अच्] हार, पजिय। अपजात (वि०) [अप+जन+क्त] कुपुत्र, माता-पिता से हीन। अपजित (वि०) पराभूत, पराजय। अपजितस्य ममेदमुपायन। (जयो० ९/२१) अपज्ञानं (नपुं०) छिपाना, गुप्त रखना, मेटना, मुकरना। अपट (वि०) पट रहित, पर्दा हीन। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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