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अन्वयव्यतिरेकः
अपकर्षणं
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४/६६) साभिधेयमभिधानमन्वयप्रायमाश्रयतु। (जयो० २/५५) अन्वासनम् (नपुं०) [अनु+आस्+ल्युट्] सेवा, परिचर्या, पूजा, यहां 'अन्वय' का अर्थ समन्वय, संबंध भी है।
___ शक्ति , शोक, खेद। अन्वयव्यतिरेकः (पुं०) विधायक और निषेधात्मक प्रतिज्ञा। | अन्वाहिक (वि०) प्रतिदिन का, नैमित्तिकता। अन्नयायाङ्क (वि०) समागम। सुदर्शनान्वयायाङ्का स्थापिता | अन्विचारः (पुं०) चिन्तन, विचार। (समु० ८/२१) शरीर कपिलाख्यया। (सुद० वृ०८६)
| मेवाहमियान्विचारः। अन्वयी (वि०) अनुयायी, मंडाराने वाले। कमलान्वयिभ्रमरविस्तारा। | अन्वित (वि०) [अनु+इ+क्त] अनुगत, अनुष्ठित, सहित,
(जयो० २२/१९) १. 'कमलेन संतोषेप्यान्वयी संयुक्तो', युक्त, अधिकार जन्य, संयुक्त, क्रमगत, परिपूर्ण, साथ। २. 'कमलानां' वारिजानामन्वयी अनुयायी' (जयो० २२/१९)
शुचिबोधकदायतेऽन्वितः। (सुद० ३/२२) केयं दोनों भी पंक्तियों में 'अन्वयी' का अर्थ अलग-अलग है,
केनान्विताऽनेन। (सुद० ० ८४) शुशुभे छविरस्य प्रथम में 'अन्वयी' का अर्थ 'संयुक्त' और द्वितीय में
साऽन्विता। (सुद० ३/१९) तत्कुलक्लेदसम्भार धारान्वितम्। 'अनुयायी' अर्थ है।
(जयो० २/१३०) अन्वर्थ (वि०) [अनुगत:+अर्थम्] सार्थक, अनुकूल। (जयो०
अन्विततनुः (स्त्री०) पूर्ण शरीर। वैवयेनान्विततनुः। (सुद० १४/२९)
पृ० ७९) अन्वर्थभावः (पुं०) सार्थकभाव, अनुकूल परिणाम। रुचात्मनस्तु
अन्वितिः (स्त्री०) आदि, अनुसार। कन्यकाकनक-कम्बलान्विति। जगत्तिलकाया अन्वर्थभावमेवमथायात्। (जयो० १४/२९)
(जयो० २/१००) अत्रान्वितिशब्दआदिवाचकोऽस्ति। (जयो० अन्वरक्षीत्-रक्षा करने लगा। (सुद० ४/२२) श्रेष्ठी मुहुः
वृ० २/१००) स्वामिजनान्वितिरिति चरणेना (सुद०. वृ० स्नेहत्तयाऽन्वरक्षीत्।
९२) स्वामी की आज्ञानुसार चलना। अन्यवसित (वि०) [अनु+अव+सो+क्त] संयुक्त, संबद्ध, बंधा
अन्वीक्षणं (नपुं) [अनु+ईक्ष् ल्युट्] गवेषणा, अनुसन्धान, खोज। हुआ। अन्ववायः (०) [अनु+अव+अय+घञ] कल, जाति, वंश।
अन्वेषणं (नपुं०) विशोधन, गवेषणा, (वीरो० १८/२५)
अनुसन्धान, खोज। (जयो० वृ० २/४५) अन्ववेक्षा (स्त्री०) (अनु+अव+ ईक्ष+अङ्+टाप्) विचार,
अन्वेषणकारिन् (वि०) खोजकर्ता, अन्वेषण कर्ता, गवेषक, चिन्तन, मनन, अनुशीलन।
अनुसन्धानका रत्नान्वेषणकारि एतदिति कृत्सम्बोधयुक्तात्मना। अन्वहं (अव्य०) [अनु+वहन्] प्रतिदिन, नित्यमेव, सदैव। वैरिषन् रसिति वैरिसंग्रहमव्यथेऽकथि पथि स्थितोऽन्वहम्।
(मुनि०वृ०८) (जयो० ३/६) ऋद्धिं वारजनीव गच्छति वनी सैषान्वहं श्री
| अन्वेषिणी (स्त्री०) एषणा, गवेषणा, खोजना। (जयो० ७० भुवम्। (वीरो० ६/३७)
१३/४३) अन्वाख्यानं (नपुं०) [अनु+आ+ख्या ल्युट्] उल्लेख पूर्वक
अप् (स्त्री०) [आप्+क्विप्न हृस्वश्च] जल, वारि। कथन, पूर्वानुसार विवेचना
अप (अव्य०) विरोध, निषेध, अपवह। धातु से पूर्व लगने अन्वाचयः (पुं०) [अनु+आ+चि+अच्] जोड़ना, प्रधान के
वाला एक उपसर्ग। अपकार्तुम्। (समु० २/११) साथ गौण का कथन।
अपकरणं (नपुं०) [अप+कृ+ल्युट] अनुपयुक्त कार्य, अनुचित अन्वाजे (अव्य०) [अनु+आजि+डे] असहाय का उपकार।
कार्य बिगाड़। पथप्रस्थायिनामपि किलापकरणम्। (दयो० अन्वादिष्ट (वि०) [अनु+आ+दिश्+क्त] पश्चात् कथित, वृ० १०१) प्रतिभाषित।
अपकर्तृ (वि०) [अप्+कृ+तृच्] कष्टयुक्त, हानिसंयुक्त। अन्वादेशः (पुं०) [अनु+आ+दिश्+घञ्] पूर्वोक्त का कथन, अपकर्म (वि०) कर्त्तव्यविहीन। (जयो० १८/४) ___ पूर्व की पुनरुक्ति ।
अपकर्षः (पुं०) [अप+कृष्+घञ्] घाटा, नीचे करना, खींचना। अन्वाधानम् (नपुं०) [अनु+धा+ल्युट्] समिधा निक्षेपण।
(सम्य० ९९) अन्वाधि: (स्त्री०) [अनु+आ+ धा+कि] पश्चाताप, खेद, यथार्थ | अपकर्षणं (नपुं०) [अप+कृष्+ ल्युट] ०दूर करना, ०खींचना, प्रतिदेय।
०वञ्चित करना, नीचे करना।
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