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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्यपुरुषः अन्वय अन्यपुरुषः (पुं०) ०परपुरुष, व्याकरण प्रसिद्ध क्रियात्मक अभिव्यक्ति का कारण। (जयो० वृ० १२/१४५) अन्यपुष्टः (पुं०) पर पुष्टि, दूसरे का पोषण। (मौन्यन्यपुष्टः स्वयमित्यनेन। (वीरो० ४/८) अन्यभावः (पुं०) दुर्वृत्ति, दुष्परिणाम, प्रजादुरीहाधिकृतान्यभावं। (वीरो० १८/४५) अन्यमनस्कता (वि०) अप्रस्तुत का आरोप, (जयो० वृ० १/२१) अन्यया (अव्य०) कदापि, कभी भी। (क्षेत्रेऽन्यया कान्तिझरैकयोग्ये) (जयो० वृ० १५/७७) अन्ययोग व्यवच्छेदः (पुं०) एक दार्शनिक दृष्टि। विशेष्य के साथ प्रयुक्त एवकार। ०पक्ष-प्रतिपक्ष के चिंतन के साथ अपना मत प्रस्तुत करना। अन्यविधिः (स्त्री०) अन्यथा विधि (वीरो० १८/५१) अन्यहितः (पुं०) परोपकार। (जयो० वृ० १८/१७) अन्या (वि०) अन्य, दूसरा, ऊपर। उदग्र-कुसुमोच्चिीषयान्या। अन्या-काचिन् (जयो० १४/२७) अन्यार्थ (वि०) परोपकारार्थ, अन्य पुरुष वाचक। अन्यार्थसाधक तया विचरन् सुवंशे। (जयो० १४/१४५) अन्यार्थस्य परोपकारस्यान्यपुरुष-वाच्यस्य। (जयो० वृ० १४/१४५) अन्यानपेक्षिन् (वि०) अन्य से निरपेक्ष। नित्यं पादप-कोटरादिषु वशेदन्यानपेक्षिष्वथा। (मुनि०३) अन्यापोहता (वि०) अन्य सांसारिक प्रपञ्च का अभाव। अन्यापोहतया चित्तलक्षणेऽथ क्षणे स्थितिम्। (जयो० २८/२४) अन्यस्य सांसारिकाप्रञ्चस्यापोहोऽसभावः। (जयो० वृ० २८/२४) अन्याय (वि०) न्यायरहित, अनुपयुक्त। अन्यायिन् (वि०) न्यायहीन, अनुचित। अन्याट्य (वि०) न्यायहीन, अनुचित। अन्येऽपि (अव्य०) और भी। अन्येऽपि बहवो जाता कुमारश्रमणा नरा। (वीरो० ८/४१) अन्योक्ति-भावः (पुं०) अन्य दूसरे के माध्यम से कथन। अन्योक्तिमानं (नपुं०) दूसरे की उक्तियों पर निर्भर। स्याणणमो संयबुद्धीणं नरो नान्योक्तिमानतः। अन्यस्येतरस्योक्तिमान्त भवति। (जयो० वृ० २१/६४) अन्योक्तिरलङ्कारः (पुं०) प्रत्येक्यश्येकाभिधयाथ मूर्च्छन्नारक्त फुल्लाक्षितयेक्षितः सन्। दरैक धातेत्यनुमन्यमानः कुजातितां पश्यति तस्य किन्न।। (वीरो०६/१५) यहां कु+जाति-भूमि से उत्पन्न, दूसरे पक्ष में खोटी जाति वाला अर्थ है। इसी प्रकार 'दरैकधाता' का अर्थ दर अर्थात् पत्रों पर अधिकार रखने वाला और दूसरे पक्ष में डर या भय को करने वाला है। अन्योन्य (वि०) [अन्य-कर्मव्यतिहारे द्वित्वम्, पूर्वपदे सुश्च] एक दूसरे को, परस्पर, प्रायः। (जयो० वृ० २/११५) (वीरो० २७/२०) अन्योन्यानुगुणैकमानसतया। (सुद० ४/४७) अन्योन्य-कलहः (पुं०) पारस्परिक द्वेष। अन्योन्यघातः (पुं०) आपस में ईर्ष्या। अन्योन्याभावः (पुं०) एक वस्तु में अन्य का अभाव। अन्योन्य सामाश्रय (वि०) एक दूसरों का आश्रय। (हित सं० २२) अन्योन्यानुकरणं (नपुं०) गतानुगति। (वीरो० वृ० ५/३३) अन्योन्यानुभावः (पुं०) एक पर्याय का दूसरी पर्याय में न होना। भावैकतायामखिलानुवृत्तिर्भवेदभावेऽथ कुतः प्रवृत्तिः। यतः परार्थी न घटं प्रयाति हे नाथ! तत्त्वं तदुभानुपाति।। (जयो० २६/८७) अन्योन्याश्रयः (पुं०) अन्योन्य समाश्रय, (हित सं० २२) अन्वक् (अव्य०) [अन+अञ्च+क्विप्] वाद में, पीछे, अनुकूल रूप। अन्वञ्च (वि०) [अनु+अञ्च+क्विप्] पीछे जाने वाला, पीछा करने वाला। अन्वक्ष (वि०) [अनुगत: अक्षम्-इन्द्रियम्] दृश्य, अवलोकित। अन्वतः (वि०) इधर उधर। मुहुरुदिगलनापदेशतस्त्वतिपातिस्तन जन्मनोऽन्वतः। (सुद० ३/१८) अन्वमं (नपुं०) निश्चित, सही, उचित, ठीक। (जयो० ४/३०) अन्वमानि रविणेदमयोग्य मित्यतोऽपयश एव हि भोग्यम्। अन्वय (वि०) अनूकूल्य, सम्बन्ध युक्त, (सुद० ३/१७) ०कुल परम्परा, ०अनुगमन, ०अनुगामी, ०अनुचर, ०सहभागी, तात्पर्य, अभिप्राय, प्रयोजन, समूह। (सम्य० २३) ०एक दार्शनिक विवेचन, जिसका तदङ्गजाप्यन्वयनीत्यधीना। (जयो० १/४०) यहां 'अन्वय' का अर्थ कुलाकूल या कुल परम्परा है। 'सदा सुलेखान्वयसेव्यमानः" (जयो० १/५१) यहां 'अन्वय' का अर्थआनुकूल्य है, दूसरा अर्थ, समूह भी है। सत्कर्माख्यदिनोदयात्प्रथमतो भूमण्डलास्यान्वये। (मुनि० पृ० १) उक्त पंक्ति में 'अन्वय' का अर्थ कुल है। अस्यां समानभावेन यतिवाचीन चान्वयः। (जयो० वृ० ४/६६) यहां 'अन्वय' का अर्थ विचार, है। अन्वयो विचारो भवति। (जयो० For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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