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अन्यक
अन्यपरिक्षणम्
लाभ? विनाऽन्ये न जातुचित्। (सुद० ४/४०) यहां 'अन्य' अन्यतः (अव्य०) दूसरे से, अन्य से। शेष वाचक है। तमन्यचेतस्कमवेत्य तस्य। (सुद० ३/३९) अन्त्यत्वः (पुं०) ० भावना विशेष, जीव का किसी के साथ युधिष्ठिरो भीम इतीह मान्यः,
सम्बन्ध नहीं है, ऐसा विचार।। शुभेगुणणैरर्जुन एव नान्यः, (जयो० १/१८)
अन्यत्र (अव्य०) [अन्य+त्रल्] और स्थान, दूसरा, इसके अन्यक (वि०) अन्य, दूसरा, इतर, भिन्न। (जयो० वृ० १/७२)
अतिरिक्त, सिवाय, अन्यथा, दूसरी अवस्था में। अन्य-कृति (स्त्री०) सर्वसाधारण बात। (जयो० वृ० १/७२)
रुग्दारिद्रयमन्यत्र धनं यथारूक्। (सुद० वृ० १२१) (जयो० ४/२३)
अभिधानेऽन्यत्राहो। (सुद० वृ० ८७) अन्यग (वि०) अन्य, दूसरे के पास जाने वाला।
अन्यत्रगत (वि०) अन्य पदार्थों में संलग्न। प्रवृत्तिमन्यत्रगतामुदस्य। अन्यगत (वि०) दूसरे की ओर प्राप्त हुआ।
(भक्ति सं० २९) समादरोऽल्पेऽन्यगतेऽप्यो । (समु० १/१८)
अन्यत्रसंकल्प (वि०) अन्य पदार्थ में संकल्प। (भक्ति ३०) अन्यगामिन् (वि०) अन्यत्र जाने वाला।
अन्यदशा (स्त्री०) अन्य पर्याय। (भक्ति वृ० ३) निरञ्जनोश्चान्यअन्यगोत्र (वि०) दूसरे वंश या कुल का।
दशाप्रतीपान्। अन्यगुणं (नपुं०) परगुण (वीरो० , जयो० ४/६७)
अन्यदा (अव्य०) किसी समय, अब, इस समय, अधुना, कभी। अन्यजन: (पुं०) भिन्न लोग। (वीरो० १६/३)
समुदीक्ष्य मुदीरितोऽन्यदा। (सुद० ३/३४) जातोऽन्यदा अन्यज (वि०) अन्य जन्मगत।
सम्बदा। (सुद० वृ० ९६) पुत्रः शत्रुत्वमन्यदा। (सुद० अन्जजात (वि०) अन्य जन्म को प्राप्त। (सम्य० १५४)
४/६० ४/९) अन्यच्च (अव्य०) अन्यत् भी, दूसरी ओर। तत्तत्सम्बन्धि
अन्यथा (अव्य०) [अन्य+थाल्] क्योंकि, जो कि, अन्य रीति चान्यच्च। (सुद० ४/११)
से, परथा। कामुकीनामन्यथापि, परिप्लावन दर्शनात्। (हित अन्यजन्मन् (वि०) भिन्न कुलोत्पन्न। मनोऽन्यजन्मादि यतः
सं०१६) निर्बलस्य बलिना विदारणमन्यथा सहजकं सुधारण। समस्यते। (जयो० ३३/३९) अन्यज्जमान् (वि०) भवान्तर प्राप्त, पूर्व जन्म सम्बन्धी।
(जयो० २/११२) यहां 'अन्यथा' का अर्थ क्योंकि है। (जयो० वृ० २३/३३)
अन्यथा तु (अव्य०) क्योंकि, और भी। (जय वृ० १/२०) अन्यत् (वि०) अन्य, भिन्न, इतर, अपर, क्वचित्, पृथक्,
अन्यलिङ्गः (नपुं०) अन्य वेश, विपरीत वेष। असाधारण। (सम्य० २३) (जयो० २/६२१)
अन्यथानुपपत्तिः (स्त्री०) अर्थापत्तिप्रमाण। (जयो० ७/१५) शिखिाजनोऽन्यत एव तया स च। (जयो ०
अन्यथानुपपत्त्याऽहं गतवान्स्त्व द्नुज्ञया। (जयो० वृ० ७/१५) ४/६७)यान्तोऽन्यतोऽभ्युद्धत (जयो० १३/८२) तत्स्वर्गतो
'अन्यथा साध्याभावप्रकारेण अनुपपत्तिः अन्यथानुपपत्तिः' नान्यदियाद्वदान्यः (सुद० १/६) मत्वा निजं परं
(सिद्धिविनश्चय टी०वृ० ३५८) साध्य के अभाव में हेतु सर्वमन्यदित्येषु मन्यते। (सुद० ४/७) उक्त पंक्ति में का घटित न होना। 'अन्यत' भिन्न या पराए अर्थ को प्रतिपादित कर रहा है। | अन्यथानुपत्तिरलङ्कारः (पुं०) अलंकार नाम। (जयो० २४/१२०) साम्प्रतं धनिविमोचितं पटाद्यन्यतः श्रणति भूषणच्छटाम्।
लताप्रताने गता महति या चकर्ष कान्तं परिरम्भधिया। (जयो० २/२८)
मुमुदे साम्प्रतमितो वयस्या वलयस्वनेन वध्वास्तस्या।। अन्यत्किं (अव्य०) और दूसरा क्या? कलि-मल-धावनमतिशय (जयो० १४/२५) पावनमन्यत्किं निगदाम। (सुद० वृ०७०)
अन्यदृष्टिः (स्त्री०) अन्य मत मतान्तरो में अनुराग। अन्यत्स्थानं (नपुं०) अन्य स्थान, दूसरा स्थान। (जयो० वृ० अन्यदृष्टि प्रशंसा (स्त्री०) मिथ्यादृष्टि के गुणों का गुणगान। ४/२६)
अन्यधनं (स्त्री०) परधन, दूसरे का द्रव्य। हिंसामृषाऽन्यधन अन्यतम (वि०) [अन्य उतम्] बहुत में से एक।
दार-परिग्रहेषु। (सुद० वृ० १२७) अन्यतर (वि०) [अन्य+तरफ] दोनों में से कोई एक। अन्यपरिक्षणम् (नपुं०) पररक्षण (वीरो० २२/२५) दूसरे की अन्यतंत्रः (पुं०) परतन्त्र। (सम्य० २१)
रक्षा का विचार।
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