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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तिमाम्भोभिः ६२ अन्य अन्तिमाम्भोभिः (पुं०) पश्चिमादिशा समुद्र। (जयो० १५/१६) अन्ती (स्त्री०) चूल्हा, अंगीठी। अन्ते (अव्य०) अन्ततः, भीतर, निकट। अन्त्य (वि०) [अन्त+यत्] अन्तिम, चरम, आखिरी। (भक्ति०२) अन्त्यकः (पुं०) [अन्त्य एवेति स्वार्थ कन्] निम्न पुरुष। । (जयो० २८/२०, १/५४ अन्त्यजः देखो अन्त्यकः। अन्त्य-यमकालङ्कारः (पुं०) अन्तपद यमक। यदुपान्तिकेषु सरलाः सरला यदनूच्चलन्ति हरिणा हरिणा। तदिदं विभाति कमलं कमलं मुदमेत्यं यत्र परमाय रमा।। (वाग्भट्टा० ४/३३) जहां अन्त्य पदों की आवृत्ति हो वहां 'अन्त्य यमकालङ्कार' होता है। 'सौष्ठवं समभिवीक्ष्य सभाया यत्र रीतिरिति सारसभायाः। वैभवेन किल सज्जनताया। मोदसिन्धुरुद्भज्जनतायाः।। (जयो० ५/३४) अन्त्रं (नपुं०) अन्त्+ष्ट्रन्+अम्] आंत, अंतड़ी। अन्दुः (स्त्री०) [अन्द्+कु पक्षे ऊङ् स्वार्थे कन्] ०श्रृंखला, ०बेड़ी, आभूषण, विशेष अलंकृति। (जयो० १७/५२) 'अन्दुः स्त्रियामलङ्कार' इति विश्वलोचनः। अन्दुभिस्तु पुनरंशुकराजैः। (जयो० ५/५६) अन्दोलनं (नपुं०) [अन्दोल+ल्युट] झूलना, हिंडोलना। अन्ध् (सक०) अन्धा बनाना, अन्धा करना। अन्ध (वि०) [अन्ध+अच्] अन्धा, अनयन, नेत्रहीन। (जयो० वृ० २५/६८) अंधक (वि०) ०अन्धापन, दृष्टि हीनता। अन्धकरण (वि०) [अन्ध+कृ+ल्युट्] अन्धा करने वाला, दृष्टिहीन करने वाला। अन्धकलोष्ठः (पुं०) धूर्त पाषाण। (जयो० ९/२८) सफेद पत्थर जिसका उपयोग नहीं होता। अन्धकारः (पुं०) तिमिश, तमस्, ०अंधेरा, तिमिर, ०प्रकाशाभाव। (जयो० वृ० ११/९३, १५/९) अन्धं करोतीति अन्धकारो यं दृष्ट्वा। (जयो० वृ० १५/२४) हाहान्धकारोऽपि निशाचरों पि। (जयो० १५/२४) अन्धकारः (पुं०) अन्धकासुर दैत्य। हे धीरश्वरासुरहित सहसान्धकारम्। (जयो० १८/३०) अन्धकारः (पुं०) दिशाओं की प्रभा का शून्यता। दिगम्बर। अयं दिगम्बरोऽन्धकारश्चरति। (जयो० वृ० १३/४८) अन्धकार हाथियों के झुण्ड के बहाने विचरण कर रहा है। अन्धकाररूप (पुं०) अन्धकार स्वरूप। (जयो० वृ० १५/२६) अन्धकार-रूपधारक (वि०) अन्धकार के स्वरूप को धारण करने वाला। अन्धकार-रूपिणी (स्त्री०) तिमिर-रूपवाली, श्यामवर्णा। (जयो० १५/२७) तमोमयीमन्धकाररूपिणीं श्यामवर्णा। अन्धकार-सत्ता (स्त्री०) तमस्थितिः, अन्धकार परिणति। (वीरो० ५/२४) यथा प्रभातो दयतोऽन्धकारसत्ता विनश्येदयि बुद्धिधार। (वीरो०५/२४) अन्धकार-स्वरूपः (पुं०) श्यामशय, कलुषपरिणाम, कृष्णपक्ष। . (जयो० १/१०१) अन्धकारस्थित (वि०) तमोस्थित (वीरो० २०/२०) अन्धकारी (वि०) अन्धकार वाला, अन्धकार धारक। (सुद० २/२५) केशान्धकारीह शिरस्तिरोऽभूद। अन्धकूप (पुं०) खंडहर कूप, पानी से रहित कूप, गहरा कूप। (नाभिभ्रमणान्धकूपा। सुद० २/४) अन्धकूपा (वि०) अन्धविश्वासी। (सुद० २। अन्ध-तमस् (पुं०) अन्धकाराच्छन्न, गहन अन्धकार। (जयो० २।८६) दिक्षुचान्धतमसायते। अन्धता (वि०) अवलोक हीनता, दृष्टि हीनता (जयो० ९/२७) अन्धिका (वि०) अन्धी, रात्रि। [अन्ध+ण्वुल्। इत्वम् टाप्] दद्यादन्तरिताऽन्धिका। (मुनि०११) अन्धुः (स्त्री०) कूप, कुआं। [अन्ध कु] अन्नं (नपुं०) खाद्यान्न, चना, मूंग, गेहूं। सदन्नमातृप्ति तथोपभुज्य। (सुद० १३०) अन्नं करोतीत्यन्नकृद धान्य पाचको भवति। (जयो० २/३६) अन्नकृत (वि०) अन्न को पकाने वाला। अन्नं करोत्यन्नकृद धान्यपाचको भवति। (जयो० ० २/३६) यद्वदेव तपना तपोऽन्नकृच्छ्रीजिनानुशय)। (जयो० २/३६) अन्नकूटः (पुं०) खाद्यान्न समूह। अन्नकोष्ठः (पुं०) अनाज की कोठी। अन्नगंधिः (स्त्री०) पेचिश रोग। अन्नदोषः (पुं०) आहार दोष। अन्नशुद्धिः (स्त्री०) आहार शुद्धि। यदुद्दशादिदोषेभ्योऽतीतं स्वस्मै प्रसाधितम्। शोधिताऽन्नप्रदेयं स्यात्तद्देयं हि तपस्विने।। (हित०सं० १० १४०) अन्नोत्पादनं (नपुं०) खाद्यान्न उत्पादन। (जयो० वृ० २/५) अन्य (वि०) भिन्न, दूसरा, और, अनोखा, असाधारण, अतिरिक्त। (सम्य० २१) त्वममुष्यासि सवर्णाऽलमन्यया हे सुकेशि वर्णनया। (जयो० ६/८५) उक्त पंक्ति में 'अन्य' वर्णन "अर्थ को प्रकट कर रहा है। अधिक वर्णन करने से क्या For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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