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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अन्तराविष्ट www.kobatirth.org शुभोपयोगी गुणधर्मकृपः किलान्तरात्माऽयमनेन भाति परीत-संसार - समुद्र-तातिः ।। (समु० ८ / २२) शरीर को आत्मा से भिन्न मानते हुए विवेक रूप विचार होने का नाम शुभोपयोग है, इस शुभोपयोग से आत्मा गुणवान् और धर्मात्मा बन जाता है तथा अन्तरात्मा कहलाने लगता है। ० ज्ञानमयं परमात्मानं ये जानन्ति ते अन्तरात्मनः । (कार्तिकेयानुप्रेक्षा टी० १९२) ० सिद्धि स्यादनपायिनी " (हित०सं० ३) सिद्धि के सम्मुख जो होता है, वह अन्तरात्मा है। आत्मा के भेदों में एक भेद है, इसे'अन्तरात्मतामेति विवेकधामा' (सुद० वृ० १३५) ० विवेकधाम भी कहा है। अन्तराविष्ट (वि०) आभ्यन्तर प्रवेश अन्तरंग प्रविष्टि (जयो० १४/५८) चान्तराविष्टतया युवतिः (जयो० १४/५८) अन्तरायः (पुं०) विघ्न, बाधा, अवरोध, रूकावट । ज्ञानविच्छेदकरणमन्तरायः (स०सि० ६ / १०) किसी भी ज्ञान में बाधा पहुंचाना, या जो दाता और देय आदि के बीच में अवरोध आता है। 'अन्तरमेति गच्छतीत्वन्तरायम्' (धव०पु० १३ वृ० २०९) आठ कर्मों में अन्तिम तथा घातियां कर्मों में चतुर्थ कर्म । अन्तरालम् (वि०) ( अन्तरं व्यवधानसीमाम् आरति गृह्णातिअन्तर + आ + टा+क रस्य लत्वम् ] ०भाग, ० मध्यवर्ती प्रवेश, ०स्थान, ०काल, ०अवकाश ०भीतर, ०अन्दर (सुद० वृ० २६) पितामहस्तामरसान्तराले (जयो० १/८) अन्तराले मध्ये (जयो० वृ० १/८) शाखाभिराक्रान्तदिगन्तरालः । (जयो० २/१५) विशाल शाखाओं से दिशाओं को पूरित करने वाला। + अन्तरि (वि० ) [ अन्तः स्वर्गपृथिव्योर्मध्ये ईक्षते इति अन्तर् ] मध्यवर्ती प्रदेश, वायु, वातावरण, आकाश । अन्तरिक्षः (अन्तः स्वर्गपृथिव्योर्मध्ये ईक्षते - ईति अन्तर् + ईक्ष-पञ्) आकाश, वातावरण वायु आकाशगत सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा आदि । 7 अन्तरित (वि० ) [ अन्तः+इ+क्त] ० भीतर, अन्तरङ्ग ०गुप्त, ० अन्तर्हित, ०छिपी हुई । (जयो० २६ / २५) ० समीपवर्ती (चीरो० २०/८) दद्यादन्तरिताऽन्धिका शिशुमती रूग्णा पिशाचान्विता (मुनि०११) स विरलो लभतेऽन्तरितं च य (जयो० ९/८६) योऽन्तरितमन्तर्हितं गुप्तरहस्यं लभते । (जयो० वृ० ९/८६) अम्भोजान्तरितोऽलिरेवेमधुना। (सुद० १२७) ६१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्तिममनु अन्तरित शत्रु ( पुं०) आन्तरिक शत्रु, काम कोध आदि । अन्तरीषः (पुं०) ०टापू, द्वीप, समुद्र का जल विहीन उच्च स्थान । अन्तरीपि (स्त्री०) खपू द्वीप विभात एतावधुनान्तरीपी (जयो० ११ / ३५) अन्तरीपौ द्वीपौ विभात (जयो० वृ० ११ / ३५ ) अन्तरीयं ( नपुं० ) [ अन्तर छ] अधोवस्त्र निरस्य शैवाल दलान्तरीयं । (जयो० १८ / २७) समन्तरीयोद्भिदि । (जयो० १७/७४) अन्तरेण (अव्य० ) [ अन्तर + इण+ण] इसके बिना, सिवाय, अतिरिक्त, अन्य, इतर, पश्चात्। (दयो० वृ० २ / २६ ) त्रिवर्गसंसाधनमन्तरेण । (दयो० २ / २६) यहां 'अन्तरेण' का अर्थ 'व्यर्थ' भी है। अन्तर्गत ( वि० ) [ अन्तः+गम्+क्त] गया हुआ, समाहित, अन्तस्थित। (सम्य० ४६ ) अन्तर्गमिन् (वि० ) [ अन्तः+ गम् + णिनि] गुप्त रहस्यपूर्ण, मध्यगत, गूढ । | अन्तर्धा (वि०) आच्छादन, गोपन अर्धानं (नपुं०) अदृश्य, नहीं दिखना । अन्तर्भव (वि०) आन्तरिक आत्मगत अन्तर्भावः (पुं० ) अन्तर्भूत, आत्मगत । अन्तर्भावना ( स्त्री०) आत्मभावना, हृदयगत भावना । अन्तर्मुहूर्तः (पुं०) समय विशेष (सम्य० ५६ ) अन्तर्य (वि०) आन्तरिक । अन्तर्हृदयं (नपुं०) मनोमध्य, हृदन्त। (जयो० वृ० २३/४० ) अन्तर्व्याप्तिः (स्त्री०) साध्य के साथ साधन का होना। अन्तलता (स्त्री०) अन्तरता, आत्मगत (जयो० १७/ अन्तसमयः (पुं०) चेतनस्यात्मनोऽभावे । (जयो० २५/५६ ) अन्ति (अव्य० ) [ अन्त+इ) पास में, निकट, समीप अन्तिक ( वि० ) [ अन्तःसामीप्यमस्यतीतिअन्त+ठन् ] निकट, समीप (सम्य० ४३) जिनालयस्यान्तिकमेत्य मृत्यु (सुद० ४/१८) अन्तकान्तिक समात्त-शिक्षिण (जयो० २ / १३४ ) अन्तिम (वि० ) [ अन्त+ डिमच्] ०आखरी, चरम, ० सर्वोत्कृष्ट, । ० सम्पन्नावस्था कुजानातिगमन्तिमं स मनसा तेनार्जितः सिद्धये (जयो० २७/६६) तथान्तिमं सम्पन्नावस्थं (जयो० वृ० २७/६६) पौरुषोऽर्थ इति कथ्यतेऽन्तिमः। (जयो० २/ २२) अन्तिमश्चरमः पुरुषस्यायं पौरुषः (जयो० वृ० २/२२) सुदर्शनाख्यान्तिमकामदेव (सुद० १/४) अन्तिममनु (पुं० ) अन्तिम कुलकर। अन्तिम मनु-तेष्वान्तिमो नाभिमुख्य देवी प्रासूत पुत्रं जनतैक सेवी (वीरो० १८/१२) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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