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अन्तकः
अन्तरात्मन्
करोति-पवुल्] घातक, नाशक, संहारक, मारक, यम, मृत्यु। नाश करने वाला। (जयो० १/९४) समवेत्य
तदात्ययान्तकं (जयो० १०/२) अन्तकः (पुं०) यमराज। (जयो० १२/८१) द्विषदने पुनरन्तकस्य
जिह्वा। (जयो० १२/८१) अन्तकान्तिक समात्तशिक्षिणः।
(जयो० २/१३४) अन्तकरी (वि०) दु:खकरी, दुःख उत्पन्न करने वाली। (जयो०
वृ० ११/५६) अन्तकान्तिक (वि०) यमराज के निकट। मृत्यु के समीप
अन्तकस्य यमस्यान्तिके (जयो० २/१३४) अन्ततः (अव्य०) [अन्त+तसिल्] किनारे से, अन्यत्र, कुछ, __ भीतर, नष्ट, अन्त। (जयो० वृ० १८/४८, सुद० २/४०) अन्ते (अव्य०) अन्त में, निकट, पास। (सम्य० ५७) अन्तर् (अव्य०) [अम्+अरन्+तुडामगश्च] बीच में, मध्य में,
अन्दर, भीतर, आन्तरिक। 'लोकान्तरायाततमः प्रतीपे।' (सुद० २/३३) उक्त पंक्ति में 'अन्तर' का अर्थ अन्तरङ्ग है। 'रूपोऽहतो मे च किमन्तरा धी:।' (भक्ति०२८) यहां 'अन्तर' का अर्थ
मध्य बीच है। अर्हत् और स्वभाव दोनों के मध्य कोई अन्तर नहीं है। 'अनुचक्रे स हि तीरमन्तरा' (जयो०
२१/७५) इसमें 'अन्तर' का अर्थ 'अनुलग्न' है अन्तःकरणं (नपुं०) अन्त:स्थल, चेत, चित्त। (जयो० १६/१५)
(जयो० ४/४४) अन्तःक्रिया (स्त्री०) मन की चेष्टा, चित्त की प्रवृत्ति। (जयो० १६/१५) अन्तर्घोषः (पुं०) अन्तर्ध्वनि, अन्तरंग स्वर। उद्योतयन्तोऽपि
परार्थमन्तर्घोषा। (जयो० २/२२) अन्तर्दधाती (वि०) अन्दर छुपाती हुई, भीतर ले जाती हुई।
(दयो० २/७) अन्तीति (स्त्री०) अन्तरङ्ग नीति, हृदयगतभाव। अन्तर्नीत्या
ऽखिलं विश्वं वीर-वर्त्मभिधावति। दयते स्व- कुटुम्बादौ
हिंसकादपि हिंसकः।। (वीरो० १५/५९) अन्तःपुरं (नुपं०) अन्तःपुर, राज्ञीप्रासाद, रनवास, अन्तःपुरे
तीर्थकृतोऽवतारः। (वीरो० ५/५) अन्तः पुरप्रवेशायोद्यतसा। (सुद०७/१) अन्तःपुरं द्वाः स्थनिरन्तरापि। (८/१) जयोदय के दशमें सर्ग में अन्त:पुर का अर्थ अवरोध किया है।
(जयो० १०/३) अवरोधमन्तः पुरमितः (जयो० १०/३) अन्तर्विशुद्धिः (वि०) अन्तरङ्ग की विशुद्धि। अन्तःशयः (पुं०) काम, कामदेव। (जयो० ३/८६) अन्तःशयं
हृदि वर्तमान कामदेव स्वयं। (जयो० वृ० १४/१४)
अन्तःस्तलं (नपुं०) अपना अन्तरंग, निज स्वभाव, आत्मभाव।
(वीरो० १४/२४) अन्तस्त्रुटि (स्त्री०) आत्मत्रुटि, निजभूल। अन्तस्तले स्वामनुभाव
यन्तस्त्रुटिं। (जयो० १४/१४) अन्तःस्फुरत (वि०) हृदयान्तर्गत शोभा। (जयो० ११/१९)
तदन्तःस्फुरदम्बुजं च। (जयो०१/४९) तदन्तो हृदयान्तर्गत
स्फुरच्छोभना अन्तरक्रिया (स्त्री०) ज्ञान क्रिया, आभ्यन्तर शक्ति। अन्तरङ्गच्छेदः (पुं०) अशुद्ध उपयोग, अशुद्धोपयोगो हि छेदः।
(प्रवचनसार टी ३/१६) अन्तरङ्गज (वि०) आभ्यन्तर में उत्पन्न होने वाला। अन्तस्थ (वि०) प्रान्तभाग, हृदयभाग। अन्ते प्रान्त भागे तिष्ठति
य-र-लवानां। (जयो० ११/७२) अन्तस्थ ध्वनियां-य, र,
ल, व। गर्भस्था अन्तस्थ (वि०) गर्भस्थ। अन्तस्थ-तीर्थेश्वरः (पुं०) गर्भस्थ तीर्थकर। बभूव भूपस्य
विवेकनाव: सोऽन्तस्थतीर्थेश्वरजः प्रभावः। (वीरो० ६/८) अन्तःस्थलं (नपुं०) ० अन्त:करण। ०अन्त:स्थलसत्।
अन्तःकरण की शोभा। (जयो० १/६६) अन्तस्था (वि०) समीपवर्तिनी, प्रान्तवर्तिनी। (जयो० २०/४८) अन्त:स्थित (वि०) अन्तरंग में स्थित। (जयो० १३/१००) अन्तर (वि०) [अन्तराति ददाति-रा+क] अन्दर होने वाला,
निकट, समीप, संबद्ध, घनिष्ट। (सम्य० ६५) अन्तरङ्ग (नपुं०) चित्त, हृदय, चित्त, अन्त:करण, मनसस्तत्त्व।
मुकुरार्पितमुखवद् यदन्तरङ्गस्य हि तत्त्वम्। (जयो० २/१५४) अन्तरङ्गस्य मनसंस्तत्त्वं। (जयो० २/१५४) यस्यान्तरङ्गेऽद्
भुतबोधदीपः। (जयो० १/८५) अन्तरङ्गस्थलं (नपुं०) आभ्यन्तर स्थान। (सुद० १२२) अन्तरतः (नपुं) अन्तराल, भीतर, आन्तरिक, मध्य, अन्त में (वीरो०) अन्तरतम (वि०) [अन्तर+तमप्] ०अत्यन्त निकट, निकटतम,
अनिष्टतम। अन्तरन्वेष्टुम् (वि०) अन्तरङ्ग में प्रविष्ट हेतु। (वीरो० १०/२५) अन्तरलिः (पुं०) चित्त रूपी भ्रमर। (जयो० ९/९१) अन्तरा (अव्य०) [अन्तरेति-इण+डा] भीतर, अन्दर, बीच,
मध्य। न तु इतरस्तरामन्तरा यामि (सुद० वृ०७३) अन्तरात्मन् (पुं०) [अन्तर्+आत्मन्] आत्मशुद्धिभाव, ज्ञान
युक्त आत्मा। (सम्य० ११५) समस्ति देहात्मविवेकरूपः,
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