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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेकान्तमतः अन्तक एकान्ते न भवतीति संकीर्णो देशः, तत्प्रतिष्ठाः सन् एकान्ते निर्जने देशे स्थितिमभ्यगाद् इति विरोधः, तस्मादनेकान्ते नाम स्याद्वाद सिद्धान्त प्रतिष्ठा यस्य स इत्यर्थः।। अनेकान्तमतः (पुं०) अनेकान्त मत, अनेकान्त विचार। "एकोऽपि सम्पातितमामनेकलोकाननेकान्तमतेन नेकः।" (वीरो० १/५) हे नेक/भद्र! आपने एक होकर भी अनेकान्त मत से अनेक विरोधियों को एकता के सूत्र में बांध दिया | है। अनेकान्तमताधीनोऽप्येकान्तं समुपाश्रयत्। (समु० ९/७) अनेकान्तसिद्धि (स्त्री०) अनेकान्त मत की पुष्टि। 'सुदर्शनोदय' में 'अनेकान्त सिद्धि' के 'सिद्धिरनेकान्तस्य' राग युक्त पंक्तियां दी हैं।" सा सुतरां सखि पश्य सिद्धिरनेकान्तस्य। (सुद० वृ० ९१) हे सखि! देख! अनेक धर्मात्मक वस्तु की सिद्धि स्वयं सिद्ध है अर्थात् कोई भी कथन सर्वथा एकान्त रूप नहीं है। प्रत्येक उत्सर्ग मार्ग के साथ अपवाद मार्ग का भी विधान पाया जाता है। इसलिए दोनों मार्गों से ही अनेकान्त रूप तत्त्व की सिद्धि होती है। देख-एक वेश्या से उत्पन्न हुए पुत्र-पुत्री कालान्तर में स्त्री-पुरुष बन जाते। पुनः उनसे उत्पन्न हुआ पुत्र उसी वेश्या के वश में हो गया अर्थात् अपने बाप की मां से रमने लगा। इस अठारह नाते की कथा में पिता के ही पुत्रपना स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। फिर किस मनुष्य का किसके साथ तत्त्व रूप से सच्चा सम्बन्ध माना जाए। इसलिए अनेकान्त की सिद्धि अपने आप प्रकट है। बाजार में जब वस्तु सस्ती मिलती है, व्यापारी उसे खरीद लेता है और जब वह मंहगी हो जाती है, तब ग्राहक के मिलने पर उसे अवश्य बेच देता है, यही व्यापारी का कार्य है। अनेकान्तरङ्गस्थलं (नपुं०) अनेक द्वार वाले रङ्गस्थल, रङ्गस्थान/रङ्गभूमि। (सुद० १२२) अनेकान्तरङ्गस्थल-भोक्त्रीं किञ्चिद्वृत्तमुखामाश्रय। (सुद० १२२) जिनवाणी जैसे अनेकान्त सिद्धान्त की किञ्चिद् कथञ्चित् पद की प्रमुखता का आश्रय लेकर प्रतिपादन करती है उसी प्रकार यह देवदत्ता भी अनेक द्वार वाले रङ्गस्थल का उपभोग करती अनैकान्त (वि०) परिवर्त्य, अनिश्चित, अस्थिर, असहाय। अनैकान्तिक (वि०) [न+एकान्त-ठक्] अस्थिर। अनैक्यं (नपुं०) एकता का अभाव, अव्यवस्था अशान्ति, अराजकता। अनैतिचं (नपुं०) परम्परागत, प्रामाणिकता का अभाव। अनो (अव्य०) नहीं, न, न तो। " अनोकहः (०) [अनसः शकटस्य अकं गतिं हन्ति-हन्+ड] वृक्ष, तरु। पदे पदेऽनल्पजलास्तटाका अनोहका वा फलपुष्पपाकाः। (वीरो० २/१९) अनोकहस्य सुकृतसंगीति। (जयो० १४/६) . अनौचित्यं (नपुं०) [न+उचित+ण्यञ्] अनुपयुक्तता, अनुचितता। किमनौचित्यमत्र, किमहं भवतां पुत्रो नास्मि। (दयो० ८१) . अनौजस्यं (नपुं०) [न+ओजस्+ष्यञ्] शक्ति सामर्थ्य का अभाव, बल हीन। अनौहृत्यं (नपुं०) [न+उद्धत+ष्यञ्] शालीनता, उदारता, विनय, शान्ति। अनौरस्म (वि०) औरस न हो, विवाहिता स्त्री से न उत्पन्न, गोद लिया पुत्र। अन्त (वि०) [अम्+तन्] निकट, अन्तिम, सुन्दर, मनोहर, मध्य, छोर, मर्यादा, अन्तिम बिन्दु, परिसर, पराकाष्ठा, सामीप्यता, सन्निकता, परिसर, किनारा, सीमा, निकटवर्ती (जयो० १६/१५) श्रीमन्तमन्तः शयवैजयन्ती। (जयो० ३/८६) अन्ततां स्फुटमनेकपदेव। (जयो०५/४४) अन्तशब्दस्य सुन्दरतावाचकत्वात्। (जयो० वृ०५/४४) ० अन्त' शब्द धर्मवाचक भी है। अनेकेऽन्ता धर्मा। ०अन्तो भोगभृगुपरितु योगो। (सुद० १०५) उक्त पंक्ति में 'अन्त' का अर्थ अन्तरङ्ग है। ०अन्तः-भीतर/अन्दर-अन्तः समासाद्य। (सुद० ११९) (भीतर ले जाकर) प्रसरति किन्नहि जगदन्तः। (सुद०८१) अन्त-बाद में-पश्चात्-निर्धूमसप्तर्चिरिवान्ततस्तु। (सु०२/४०) (सम्य० ११०) अन्तः-आभ्यन्तर-अन्तर्विषमया नार्यो। (सुद० जयो० २/१४६) ०अन्तः-मध्य-आम्रस्य गुञ्जकलिकान्तरतो। (वीरो० ६/२) ०अन्तः-अवसान-(वीरो० वृ० ५/१९) अन्त:-अन्तरङ्ग-परस्य घोण्टाफलवत्कठोरान्तस्त्वेन वृत्तिर्बहिरस्त्वघोरा। (समु० १/२३) ०अन्तः-समाप्त-जड़तायाश्च भवत्यन्तः। (सुद० ८१) अन्तक (वि०) विघ्नविनाशक। (जयो० १०/२) [अन्तयति-अन्तं अनेडः (पुं०) [न एड:] मूर्ख पुरुष, अज्ञानी, मूढ। अनेनस् (वि०) निष्पाप, निष्कलङ्कक। अनेहलः (पुं०) [न हन्यते-हन्+असि-धातोः एहादेशा न+एह+अस्] समय, काल। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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