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अनु+सृ
अनृजु
अनु सृ (अक०) प्राप्त होना, अनुसरण करना, गमन करना, अनूचानत्व देखो ऊपर।
पीछे जाना। (भक्ति ९) दौर्गत्यमेवानुसरन्ति सत्त्वा। (भक्ति अनुचानः (पुं०) अनूचानः प्रवचने साङ्गेऽधीती। (अमरकोश, ९) भूतात्मकमङ्गं भूतलके वारिणि बुद्-बुदतामनुसरतु। २,७, १०) श्रुते व्रते प्रसंख्याने संयमे नियमे यमे। यस्योच्चैः (सुद० १००) यथा रात्रिः सूर्यमनुसरति। (जयो० वृ० सर्वदा चेतः सोऽनूचानः प्रकीर्तितः। (उपासकः ८६८)
२२/१) यहां 'अनुसरति' का अर्थ अनुगमन करना है। पुरापि श्रूयते पुत्री ब्राह्मी वा सुन्दरी पुरोः। अनुसृतिः (स्त्री०) [अनु+सृ+क्तिन्] अनुगमन होना, अनुसरण अनुचानत्वमापन्ना स्त्रीषु शस्यतमा मता।। (वीरो०८/३९) होना, पीछे जाना।
अनूढ (वि०) अविवाहित स्त्री, न ले जाया गया। अनुस्कंदं (अव्य०) क्रमानुसार अन्दर होना।
अनूढा (वि०) अनूढा, नवोढा, अविवाहित युवती। (सुद० अनु+स्था (अक०) बोलना, कहना। कर्त्तव्यमिति शिष्टस्य २/२१) करोत्यनूढा स्मयको तु कं न। सुद० २/२१) निमित्तं नानुतिष्ठतात्। (सुद० वृ० १२५)
अनुरक्ते सुरक्तेन स्वीकृते स्वयमेव ये अनूढा परकीये ते अनु स्मृ (सक०) स्मरण करना, बार बार याद करना। नासौ भाषिते शिथिलव्रते।।(अलंकारचिन्तामणि ५/९२)
दीर्घमनुस्मरेदपि मुनिर्दीव्यं न बोधं धरेत्। (मुनि०३१) अनूत (अव्य०) (अनु+उत) पुनरपि, फिर भी। (जयो० १७/८३) अनुस्मरणं (नपुं०) [अनु+स्मृ+ल्युट] स्मरण करना, पुनमरण, अनूत (वि०) अति नूतन। __अनुचिन्तन।
अनूतना (वि०) यथोत्तर नूतन। नूतना नूतनायां रुचिरवश्यंभाविनी। अनुस्मृतिः (स्त्री०) [अनु+स्मृ+क्तिन] स्मृतिजन्य, स्मरण योग्य, अनूत (अनु+उत) पुनरपि तृप्ति यि न प्राप्ता बुद्धिस्थित
तदालिङ्गनादीच्छानिवृत्ति भूत् किन्तु अनूतना वृप्तिरपि अनुस्यात् (वि०) आने नहीं देना। कदर्थिभाव: कमथाप्नयुष्यात्। यथोत्तरं नूतनापि नवीनेवानुभूता। (जयो० वृ० १७/८३) (वीरो० १८/३४)
अनूदकं (नपुं०) [उदकस्य अभावः] जलाभाव, सूखा। अनुस्यूत (वि०) [अनु+सिव्+क्त+ऊ] नियमित/निर्वाध अनूद्देशः (पुं०) [अनु+उत्+दिश्+घञ्] अलंकार नाम, जिसमें
रूप से मिला हुआ संसक्त। ०बंधा हुआ। ०ध्रुव। यह यथाक्रम पूर्ववर्ती शब्दों का उल्लेख होता है। यथासंख्यमनूद्देश: दार्शनिक शब्द है, पर्याय की अपेक्षा वस्तु में स्यूति उद्दिष्टानां क्रमेण यत्। (साहित्यदर्दण ७३२) (उत्पत्ति) और पराभूति विपत्ति/विनाश पाया जाता है। अनूद्य (वि०) सुनाकर, श्रवण कराकर। वृत्तोक्तिोऽनूद्य तदीयचेतः। ध्रुव भी वस्तु का एक कारण है, उत्पत्ति और विनाश में (सुद० ११६) बराबर अनुस्यूत रहता है। अनुस्यूत की अपेक्षा वस्तु न | अनून (वि०) ०अनल्प, पूर्ण, ०सम्पूर्ण, ०सम्मत, वृहद्,
उत्पन्न होती है और न विनष्ट होती है। (वीरो० १९/१६) महान्, ०बड़ा बहुतर। वाक्यकौशलं किञ्च मदेन यूनाछिटा अनुस्वनः (पुं०) अनुकूल शब्द, अनुरूप शब्द। सज्ज- कटाक्ष दृशोरनूना। अनूना बहुतरा। (जयो० १६/४३)
वारिनिधिरित्यनुस्वनः। (जयो० ७/५७) अनुस्वनोऽनुकूल: तपस्यताऽनेन पयस्यनूनममुष्य। (जयो० १/५४) ०अनूनमशब्दः । (जयो० वृ० ७/५७)
नल्पं। (जयो० वृ० १/५४) ०कलश: कलशशर्मवागनून। अनुस्वानः (नपुं०) [अनु+स्वन्+घञ्] अनुरूप शब्द करना, (जयो० १२/५) अनूनेनानल्पेन। (जयो० वृ० १२/५)
अनुरणन, अनुकरण रूप शब्द, प्रतिध्वनित शब्द। अनूप (वि०) [अनुगता: आपः यस्मिन् अनु+अप्+ अच्] अनुस्वारः (पुं०) [अनु+स्य+घञ्] बिन्दु, नासिक्य ध्वनि, जलीय, जल की बहुलता, दलदल प्रदेश। अनूपे सजले
अनुनासिक शब्द। (दयो० वृ०७६) बिन्दुमनुस्वारमाप्नोति। देश। नद्यादिपानीय बहुलोऽ नूपः। (जैनलक्षणावली पृ० (जयो० ३/५१)
८१) जलप्रायमनूपं स्यात्। (अमरकोश २, १, १०) अनुहरणं (नपुं०) [अनु+ह+ल्युट्] नकल, मिलना, अनुकरण, अनूपः (पुं०) देश का नाम। समानता।
अनूरु (वि०) जंघा रहित। अनूकः (पुं०) [अनु+उच्+क] कुल, वंश, मनोवृत्ति, स्वभाव, चरित्र। अनूर्जित (वि.) अशक्त, दर्परहित, दुर्बल। अनूचान (वि०) ब्रह्मचर्य, श्रुत, संयम, यम, नियम, संयत अनृच् (वि०) बंजर प्रदेश, अनुत्तम स्थान। आदि से युक्त।
अनृजु (वि०) कुटिल, वक्र, अयोग्य।
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