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अनुषङ्गः
अनुसूचिनी
अनुषङ्गः (पुं०) [अनु+षंज्+घञ्] प्रसंग, संलग्न, ०सबद्ध।
अनुगृह्णन्ननुषङ्गसम्भवम्। (जयो० १३/४४) ० प्रसङ्ग प्राप्त' अर्थ है। अशक्नुवन्तो युगपत्पतङ्गा इवाऽऽनिपेतर्दुहनेऽनुषङ्गात्।
(जयो०८/५२) अनुषङ्गजन्मिन् (वि०) प्रसङ्ग प्राप्त/०संलग्न, तत्परता युक्त
षडज्रिमाला ह्यनुषङ्गिजन्मिनाम्। (जयो० २४/८३) प्रसङ्गतः
प्राप्तानामागसामपराधानाम्। (जयो० वृ० २४/८३) अनुषङ्गत् (वि०) प्रसङ्गवश। (जयो० ७/५९)
हृष्यदङ्गमनुसङ्गतोऽङ्गना। अनुषङ्गिक (वि०) [अनुषङ्गठ] सहवर्ती, निकटवर्ती। अनुषङ्गिन् (वि०) [अनु+षंज्+णिनि] संबद्ध, अनुरक्त, संसक्त, ___ व्यावहारिक। अनुषङ्गजनीय (वि०) [अनु+षंज+अनीय] पूर्ववाक्य से ग्राह्य,
पूर्वानुसार प्राप्त। अनुषेकः (पुं०) [अनु+सिच्+घञ्] अभिषेक, पुनः अभिषिञ्चित। अनुष्टुभ् (स्त्री०) [अनु+स्तुभ+क्विप] सरस्वती, भारती, वाणी। अनुष्ठ (सक०) [अनु+स्था] स्मरण करना, याद करना। ____अनुजायताम नुष्ठीयताम्। (जयो० वृ० २/३६) अनुष्ठातुम् (अनु+स्था+तुमुन्) स्मरण करने योग्य। (वीरो० १७/४०) अनुष्ठान (नुपं०) [अनु+स्था ल्युट्] कार्यनिष्पादन, आज्ञापालन,
समीपवास। अनु समीपे स्थानं निवासं। (जयो० २२/२४) अध्ययन, बोध, आचरण और प्रचार इन चार अनुष्ठान
से युक्त जयकुमार थे। (जयो० वृ० १/१३) अनुष्ठापनं (नपुं०) [अनु+स्था+णिच्+ल्युट] कार्य कराना,
कार्य निष्पादन। अनुष्ठायिन् (वि०) कार्य कराने वाला। कार्यनिष्पन्नक,
आज्ञापालक। सनाभयस्ते भय एव यज्ञानुष्ठापिनो
वेदपदाऽऽशयज्ञाः। (वीरो० १४/३) अनुष्ठेय (वि०) अनुष्ठानवाला, यज्ञकर्ता। (जयो० वृ० १/२२) अनुष्ठेयता देखो-अनुष्ठेय। अनुष्णा (वि०) शिशिर, शीतल, ठंडा, शिथिल, वीतराग, गर्मी
रहित। (जयो० वृ० १२/६) अनुष्णच्छायः (पुं०) शिशिरच्छाय, शीतल छाया। (जयो० वृ०
१२/६) अनुष्यंदः (पुं०) [अनु+स्यन्द+घञ्] पिछला पहिया। अनुसज (वि०) संलग्न, तत्पर। स्वगनन्दिगन्धनेऽनुसजत्। (जयो०
वृ० ६/१२७) अनुसज्ज (वि०) संलग्न हुआ, तत्पर हुआ। आकर्ण्य
वर्णावनुसज्जकर्णा। (जयो० १/६५)
अनुसन्दधान (वि०) विश्लेषण करने वाला। (सुद० ४/१०) अनुसन्ध् (सक०) [अनु+सम्+धा] अनुसन्धान करना, खोजना,
अन्वेषण करना। (जयो० २/१५५) अनुसन्धानं (नपुं०) [अनुसम्+धा+ल्युट] अनुचिन्तन, विचार,
विश्लेषण, पृच्छा, गवेषण, निरीक्षण, परीक्षण, क्रमबद्ध करना, खोज, तत्पर रहना। (सुद० १३२, दयो० ६५)
इत्येवमनुसन्धानो धनादिषु। (सुद० १३२) अनुसन्धानकर (वि०) अन्वेषक, अनुचिन्तन करने वाला।
(दयो० वृ० ८६) अनुसंधानधर (वि०) अनुसंधान करने वाला। (दयो० वृ० १/९) अनुसन्धानवंशगत (वि०) खोज में लीन हुआ। (दयो० वृ०६५) अनुसंहित (वि०) [अनु+सम्+धा+क्त] पूछ की गई, पृष्ठवान्। अनुसंबद्ध (वि०) [अनु+सम्+बंध+क्त] संयुक्त, संलग्न, तत्पर। अनुसंधत (वि०) धारण की गई। (वीरो० २२/३) अनुसन्धेय (वि०) [अनु+सम्+विधातृ] अनुसन्धान/खोज करने
योग्य। (वीरो० १५/६३) अनुसम्बिधात्री (वि०) अनुसन्धान करती हुई, खोज करती
हुई। (वीरो० ५/३७) विनोद वार्तामनुसम्बिधात्री। अनुसरः (पुं०) [अनु+सृ+अच्] अनुगामी, अनुचर, सेवक। अनुसरण (नपुं०) [अनु+सृ+ल्युट्] अनुगमन, समनुरूपता, . अग्रगामी। (जयो० वृ० ३/३३) (जयो० वृ० १/५७) अनुसर्पः (पुं०) [अनु+सृप+अच्] ०सरीसृप, ०सर्पसदृश चलने __ वाला जन्तु। अनुसवनं (अव्य०) प्रतिक्षण, हरक्षण। अनसारः (पं०) [अनु+सघञ] पीछे जाना, अनुगमन,
अनुसरण। (सुद० १/३४) अनुसारः (पुं०) प्रथा, रीति, पद्धति। (जयो० अनुसारित्व (वि०) [अनु+सृ+णिनि] अनुसरण करने वाला।
(सुद० १/३४) सुरतानुसारिसमयैर्वा। (जयो०६/९) 'सुरता देवत्वं तस्यानुसारिणः' इस व्याख्या के अनुसार 'अनुसारि' का अर्थ ०बराबरी, सादृश्यता है और सुरतं मैथुनं तस्यानुसारिभिः
की व्याख्या से 'अनुसारि' का अर्थ कुशल है। अनुसिंच (सक०) [अनु+सिंच्] सींचना, प्रक्षेपण करना।
अनुसिच्यमाना खलता प्रवर्धते। (वीरो० ९/११) अनुसुखं (नपुं०) यथासुख, प्रसन्न रखना। मुखं बभारानुसुखं __ च। (जयो० १/५७) अनुसूचिनी (वि०) सूचनाकारिणी, संदेशदायिनी। (जयो० ६/३९)
गुण संश्रवणावसरे विजृम्भणेनानुसूचिनी शस्ताम्। (जयो० ६/३९)
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