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अनुरतिः
अनुवाचनं
वचनं (
अनुवृ
(सुद०"
अनुरतिः (स्त्री०) [अनु+रम्+क्तिन् प्रेम, सानुकूलवृत्ति,
आसक्ति। (जयो० २३/६८) रताद विरक्ताप्युनरतिमापालते जगतश्छाया। (जयो० २३/६८) अनुरथ्या (स्त्री०) पगडंडी, उपमार्ग। अनुरसः (पुं०) प्रतिध्वनि, गुंजन। अनुरहस (वि०) गुप्त, एकान्तप्रिय, शान्त। अनुरागः (पुं०) [अनु+रंज्+घञ्] प्रेम, स्नेह। (वीरो० २२/५१) अनुरागकः (पुं०) रति आसक्ति, अनुराग, भक्ति, निष्ठा,
श्रद्धा। (जयो० १/४०) अनुराग-करणं (नपुं०) अनुराग का कारण, अनुराग करना,
आसक्ति रखना। वस्तुत्वेन ततोऽनुरागकरणं (मुनि०१७) अनुरागधारिणी (वि०) अनुराग धारण करने वाली, स्नेहवती।
तव सुदृगनुकरिण्यां प्रान्तेष्वनुरागधारिण्याम्। (जयो० २०/२१) अनुरागसम्बर्द्धन् (वि०) अनुराग बढ़ाने वाला (वीरो० २१/१९) अनुरागार्थ (वि०) प्रीत्यार्थ, स्नेहार्थ। लालिमा यत्रानुरागार्थमुपैति
चेतो। (वीरो० १/१३) अनुरागिन् (वि०) अनुरागी, स्नेही। अनुरात्रं (क्रि०वि०) (अव्य०) प्रतिरात्रि, प्रत्येक रात्रि। अनुराधा (स्त्री०) अनुराधा नक्षत्र, २७ नक्षत्रों में सत्तरहवां नक्षत्र। अनुरुः (पुं०) अ-पद, पैर का अभाव। सूतोऽपदो येन रथाङ्ग
मेकी (जयो० १/१९) अनुरूध (अक०) आश्रय लेना, विचार करना, इच्छापूर्ति
करना। मूलसूत्रमनुरुद्धय नृत्यतः। (जयो० २/२९) अनुरूप (वि०) तुल्य रूप, सदृश, एक समान। भूपेऽमुष्मिञ्छ्यिा
पावनयाऽनुरूपे। (सुद० १/२९), (जयो० १/६४) अहो
किलाश्लेषि मनोरमायां त्वयाऽनुरूपेण मनो रमायाम्। अनुरूपता (क्रि०वि०) समनुरूपता, सादृश्यता, अनुकूलता।
(दयो० १००) भार्यायामनुरूपताऽऽपि। (दयो० १००) अनुरूसादित (वि०) जघन स्थल। तावद्नुरूसादितः सुभगाद्।
(सुद० १००) अनुरोधः (पुं०) [अनु+रुध्+घञ्] ०आग्रह, निवेदन, प्रार्थना, |
याचना, (सम्य० १५६) आराधना, विनय, ०इच्छा,
विचार। अनुरोधनं (नपुं०) निवेदन, विनय, प्रार्थना। अनुरोधिन् (वि०) [अनु+रुध्+णिनि] प्रार्थना करने वाला, |
विनम्रशील। अनुलग्न (वि०) अन्तर, लगी हुई, संलग्न। (समु० २/२८,
जयो० २१/७५)
अनुलापः (पुं०) [अनु+लप्+घञ्] आवृत्ति, पुनरुक्ति । अनुलिङ्ग (वि०) अनुमान। (जयो० ६/१००) अनुलेपः (पुं०) [अनु+लिप्+घञ्] उपटन, मर्दन। अनुलोम (वि०) नियमित, स्वाभाविक, क्रमानुसार, अनुकूल।
अनुलोमं मनोहारी। अजानुलोमस्थितिरिष्टवस्तु। (जयो० ११/८२) उक्त पंक्ति में 'अनुलोम' का अर्थ निर्लोम, रोम रहित है। जयकुमार की दृष्टि के सामने सुलोचना निर्लोम जङ्घाओं से युक्त है। अनुलोमिन् (वि०) निर्लोमला रहित, नियमित (सम्य० १८) अनुल्लङ्घय (वि०) अतिक्रम्य, आगे ले जाते हुए।
अखिलानुल्लङ्घ्य जनान् सुलोचना। (जयो० ६/१०१) अनुल्वण (वि०) बहुत गम, अधिक नहीं। अनुवंशः (पुं०) वंशक्रम, वंशतालिका। अनुवक्र (वि०) अत्यन्त कुटिल, तिरछा, अधिक तिर्यग। अनुवचनं (नपुं०) आवृत्ति, पाठ, स्वाध्याय। अनुवर्त (अक०) [अनु+वृत्] पालन करना, अनुकरण करना।
छायेव तं साऽप्यनुवर्तमाना। (सुद० प०११५) छाया की तरह अनुकरण करती हुई। पित्रोरनुज्ञामनुवर्तमाना। (समु०
६/१४) अनुवर्तनं (नपुं०) [अनु+वृत्+ल्युट] ०अनुगमन, ०अनुरूपता,
स्वीकृति, आज्ञानुशीलता, प्रसन्न करना, संतुष्ट करना। अनुवर्तिन् (वि०) [अनु+वृत्+णिचि] अनुगामी, आज्ञाकारी,
अनुकूल, अनुरूप। अनुवर्तिनी (वि०) अनुकूलवृत्ति, अनुगामिनी, आज्ञाकारिणी।
(जयो० वृ० १२/९२) नानुवर्तिनी रवौ प्रतियाते। (जयो०
५/२५) सूर्येऽनुवर्तिनि सानुकूलवृत्ति। (जयो० वृ० ५/२५) अनुवद् (अक०) ०कहना, ०भाषण करना, सुनना (वृत्तं
त्वनुवदन् २/१४३) प्रतिपादन करना, ०समझना, ०अनुमोदन करना। ध्यानं तदेवानुवदन्ति सन्तः। (समु०
८/३४) तद्दानमप्यनुवदामि पापकृत्। (जयो० २/१०३) अनुवदता (वि०) अनुमोदन करने वाले, समर्थन करने वाले,
प्रशंसक, अनुवादक। आराम-रामणीयकमनुवदताऽदर्शि
हर्षिताङ्गेन। (जयो० १/९०) अनुवश (वि०) आज्ञाकारी, अनुगामी। अनुवाकः (पुं०) [अनु+वच्+घञ्] आवृत्ति करना, स्वाध्याय
करना, ०पाठ करना, ०याद करना। अनुवाचनं (नपुं०) [अनु+वच्+णिच्+ल्युट्] सस्वर पाठ करना,
अध्यापन, शिक्षण।
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