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अनुभावः
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२/४३) गर्भस्थ अतिबलशाली पुत्र का प्रभाव । तपोऽनुभावं दधता तथापि । (सुद० वृ० ११८) तप के प्रभाव को धारण करने वाला। स्वप्नावलीयं भवतोऽनुभावात्। (सुद०२ / ३५) उक्त पंक्ति में 'अनुभाव' शब्द कृपा का सूचक है। अनुभाव: (पुं०) अनुभव, अवलोकन, ज्ञान, समझ । (विपाकोऽनुभावः। जो जिस कर्म का शुभाशुभ विपाक है, वह अनुभाव है। कर्मविशेषानुभवनं अनुभावः । अनुभावि (वि०) आगमी काल। (सुद० ३ / २५) अनुभावित (वि०) अभिषिक्त, अभिसिञ्चित द्रवीभूत। (जयो०
९/५४) मुदुदिताश्रुन्जलैरनु भावितम्। (जयों ९/५४) यान्यश्रुजलानि तैरनुभावितं समभिषिक्त मित्याशयः । (जयो० वृ० ९/५४)
अनुभावित ( वि० ) प्रत्येक बात का विचार करना, अनुभव वाला, विचारशीलता। (जयो० २३/३४) त्यागिताऽनुभाविता । (जयो० २ / ७४)
अनुभाषणं (नपुं० ) [ अनु+भाष्+ल्युट् ] क्रमानुसार उच्चारण। उच्चारित, प्रत्याख्यान सम्बन्धी अक्षर, पद, व्यञ्जन आदि जिस क्रम से वर्णित हैं, उसी क्रम के अनुसार उनका अनुवाद रूप से घोषशुद्ध उच्चारण।
अनुभू (सक० ) [ अनु+भू] अनुभव करना, ०जानना, ०समझना, चिन्तन करना। ( सम्य० १०९) अगणिताश्चगुणा गणनीयतामनुभवन्ति भवन्ति भवान्तकाः । (जयो० १ / ९४ ) गुणं जनस्यानुभवन्ति सन्तः । (वीरो० १ / १४) पर्यटन्तोऽमी सुखमनुभवन्तु । (जयो० वृ० ११/७४)
अनुभूत (वि०) अनुभव करने योग्य, चिन्तनीय । ( सुद० ९४ ) अनुभूता शतशो मयाऽ हो । ( सुद० ९४ ) अनुभूतमत (वि०) अनुभवजन्य, चिन्तनीय विचार । (समु० २/२४) अनुभूतमतः समुत्थितं । (समु० २ / २४) अनुभूतत्व (वि०) बार-बार अनुचिन्तन करने वाला । अनुभूति: (स्त्री० ) अनुभव, चिंतन। (सम्य० ८४ ) अनुभूष्णू (वि०) अनुभवकर्ता, विचार करने वाला, परिशीलन
वाला।
उपपीडतोऽस्मि तन्वि भावादनुभूष्णुस्तवकाम्र- काम्रतां वा । (जयो० १२ / १२७) अनुभूष्णुरस्मि, अनुभवकर्ता भवामीत्युक्ते । (जयो० वृ० १२/१२७)
अनुभोगः (पुं० ) [ अनु+भुज्+घञ्] उपभोग, प्रयुक्त, प्रयोगजन्य । अनुभ्रष्टः (वि०) भ्रष्ट हुआ, पतित हुआ। सिद्धान्त की दृष्टि
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अनुमानं
से 'अनुभ्रष्ट' वह है जो सम्यग्दर्शन से च्युत है। दर्शनाद् भ्रष्ट एवानुभ्रष्ट इत्यभिधीयते। (वराङ्गचरितम् २६ / ९६ ) अनुभ्रातृ (पुं०) छोटा भाई, अनुज ।
अनुमत (वि० ) [ अनु+मन्+क्त] सम्मत, अनुज्ञात, मानित, सम्मानित, अनुज्ञप्त, इच्छित, अभिलषित, अभीष्टित, मान्य। (जयो० २२/८०) ०स्वयं न करोति, न च कारयति, किन्त्यवभ्युपैति यत्तदनुमननम् (भ०आ०टी०८१) ० अनुमतं अनुज्ञातम्। ०अन्यदप्यनुमतादुरीकुरु लोक एव खलु लोक गुरु: । (जयो० २ / ९० ) ० जो सज्जनों द्वारा 'सम्मत' हो उसे स्वीकार करना चाहिए। तं खलु विशेष कायानुमतं । (जयो० २२/८० ) ०नामानुमतं मानितम्। (जयो० वृ० २२/८०)
अनुमतं (नपुं०) अनुमोदन, अनुज्ञप्ति, स्वीकृति | अनुमतिः (स्त्री० ) [ अनु+मन्+ क्तिन् ] स्वीकृति, अनुज्ञा, अनुमोदन, अनुमनन।
नैव लोकविपरीतमञ्चितु शुद्धमप्यनुमतिर्गृहीशितुः । (जयो० २/१५)
अनुमति: स्वीकृति: । (जयो० वृ०२/१५) अनुमन् (अक० ) [ अनु+मन्] सम्मत होना, अनुज्ञात होना । नैवानुमन्यते धात्समाजस्यानुशासनम्। (हित सं० वृ० ५) तमनुमन्तुमवाप्य चचाल सः। (जयो० २ / १४२ ) यहां 'अनुमन्तुम्' का अपराध करने/ आक्रमण करने के लिए भी है।
अनुमननं (नपुं० ) [ अनु+मन् + ल्युट् ] स्वीकृति, सम्मति, अनुज्ञप्ति |
अनुमा ( स्त्री०) अनुमति, स्वीकृति। (वीरो० २० / १७) दिए गए कारणों से अनुमान ।
अनुमाता ( वि० ) स्वीकृति दाता (वीरो० ८/१७) अनुमात्व (वि० ) [ अनु+मा+ ल्युट् ] अनुमान करने वाला । (वीरो० ३/६) ततोऽनुमात्वे प्रति चाद्भुतत्वं । (वीरो० ३/६)
अनुमानं (नपुं० ) [ अनु+मा+ ल्युट् ] न्यायशास्त्र का एक नियम, ० उपसंहार, ०सादृश, ० अटकल, ० अन्दाज। (जयो० ५ / ६०) ० अभिनिबोधस्य अनुमानस्य विसर्गः प्रवृत्ति (जयो० वृ० ५/१७) ० साधन से साध्य के ज्ञान को अनुमान कहा जाता है। जैसे धूम को देखकर अग्नि का ज्ञान करना । • यत्कृष्णवर्त्मत्वमृते प्रतापवह्निं सदाऽमुष्य जनोऽभ्यवाप । (वीरो० ३/६) परन्तु राजा जो कृष्णवर्त्मा/पापाचार से
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