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अनुनीति:
अनुनीति: (स्त्री०) अनुनय, प्रार्थना, शालीनता, शिष्टता, नम्र निवेदन ।
अनुनीवि: (स्त्री०) कटिवस्त्र बन्धन, नाडा । नीविमनु समीपमनुवीवि। (जयो० १२/१७) अनुपघातः (पुं०) उपघात का अभाव, क्षति का अभाव। अनुपचर ( सक०) स्वागत करना, सम्मान करना, आदर करना । आगतानुपचचार विशेषमेष । (जयो० ५ / ६ ) अनुपतनं (पुं० ) [ अनु+पत् + ल्यट् ] ऊपर गिरना, एक के बाद एक गिरना, पीछा करना, अनुसरण करना, क्रमिक अनुसरण करना।
अनुपथ (वि०) मार्गानुसार अनुरसण करने वाला, राजपथ के
साथ साथ ।
अनुपद (वि०) कदम के साथ कदम, अनुसरण करता हुआ, गीत टेक, गायन गति, सम्मिलित गायन ।
अनुपदवी (स्त्री०) मार्ग, पथ, सड़क। अनुपदिन् (वि० ) [ अनुपद + णिनि ] अनुसरण करने वाला, अनुगामी ।
अनुपदीना (स्त्री०) उपानत, जूता, ऊँची एड़ियों का जूता । अनुपध: (वि०) उपधा रहित, जिसके पूर्व कोई अक्षर न हो। अनुपधि (वि०) छल रहित, कपट रहित । अनुपन्यासः (पुं०) वर्णन न करना, प्रमाणाभाव, संदेह, अनिश्चितता, कथनाभाव ।
अनुपम (वि०) अनन्यसदृशी, सर्वोत्तम, अतुलनीय | अनुपमा एनां विधायानुपमां भविष्यत् । (जयो० ११ / ८७) अनुपप्लुतः (पुं०) सहायक। (सम्य० ८४) अनुपमता (वि०) सर्वोत्तमता, श्रेष्ठत्व, योग्यतम ।
साम्यमहिंसा स्याद्वादस्तु सर्वज्ञतेयमुत्तमवस्तु । अनुपमतयाऽनुसन्धेयानि पुनरपि चत्वारीत्येतानि । (वीरो० १५ / ६३ ) अनुपमत्व ( वि० ) ० अनुपमता, उत्कृष्टता, ० प्रशास्यता ० सर्वोत्तमता (जयो० ३/६२) ० श्रेष्ठ भाव युक्त । अनुपमित (वि०) [नञ्+उप+मा+क्त] अतुलनीय, सर्वोत्तमता, बेजोड़ ।
अनुपमेय (वि०) अतुलनीय, अनुपमता, सर्वोत्तमता, श्रेष्ठता । अनुपलम्भ: (पुं०) किसी एक के अभाव स्वरूप जो अन्य की
उपलब्धि होती है, वह अनुलंभ है। जैसे क्षणक्षण एकान्त सम्भव नहीं है, क्योंकि उसका अनुपलंभ है। अनुपवासः (पुं०) आहार परित्याग, चतुर्विधाहारत्यागः, ईषदुपवासोऽनुपवास इति ।
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अनुप्रसङ्ग
अनुपलंभ: (पुं०) [नञ्+उप+लभ्+ णिच्+घञ् ] अप्रत्यक्ष होना, बुद्धि अभाव, ज्ञान हीन । अन्योपलभोऽनुपलंभः प्रमाण। अनुपवीतिन् (वि०) यज्ञोपवतीत रहित । अनुपशयः (पुं०) भड़काना । अनुपसंहारिन् (वि०) हेत्वाभास का एक भेद, जिसके अन्तर्गत पक्ष सम्बन्धी सभी ज्ञात बात आ जाती है और उदाहरण द्वारा विधेयात्मक या निषेधात्मक, कार्य-कारण सिद्धान्त के नियम का समर्थन नहीं हो पाता।
अनुपसर्ग: (पुं०) उपसर्ग का अभाव । निपातादि का अभाव । अनुपस्थानं (नपुं० ) [ अनुप + स्था + ल्युट् ] ०अभाव, ० विहीन, ० अनुपस्थिति, ० अप्रस्तुत, ०उपमा रहित स्थान, ०स्थिति का न होना।
अनुपस्थित (वि० ) [ नञ् + उप + स्था+क्त] अप्रस्तुत, उपस्थित न होना, सम्मुख न होना ।
अनुपहत (वि०) अप्रयुक्त, कोरा, अक्षत, नया कपड़ा) अनुपात: (पुं०) अनुपतन, ऊपर पड़ना । अनुपातक (वि० ) [ अनु+पत् + णिच् + ण्वुल्] अपराधी, घातक, अति आरम्भी, समारम्भी, हिंसक ।
अनुपानं (नपुं० ) [ अनु+पा+ ल्युट् ] पश्चात् पान, औषधि के बाद पीने योग्य वस्तु का ग्रहण |
अनुपुरुष: (पुं०) अनुयायी, अनुचर, सहगामी, सहचर । अनुपूर्व (वि०) क्रमशः, नियमित, क्रमबद्ध, मान रखने वाला। अनुपूर्वशः ( क्रि०वि०) क्रमागत रीति, क्रमानुसार । अनुपूर्वेण ( क्रि०वि०) क्रमागत रीति, अनुक्रम से । अनुपेत (वि०) विरहित, ०विहीन, ०अभावजन्य । अनुप्रज्ञानं (नपुं० ) [ अनु + प्र+ज्ञा + ल्युट् ] अनुसारण, अनुगमन । अनुप्रपातम् (अव्य०) क्रमागत, रीतिपूर्वक | अनुप्रयोगः (पुं० ) अतिरिक्त, उपयोग, आवृत्ति । अनुप्रविधानं (नपुं० ) [ अनु+प्र + विधान+ ल्युट् ] अनुकूलकार्य, योग्य कार्य। मातुर्मनोरथमनुप्रविधानरक्षा । (वीरो० ५/४२) इच्छानुकूल कार्यचरणनिपुणा । (वीरो० वृ० ५ / ४२ ) अनुप्रवेशः (पुं० ) [ अनु+प्र + विश्+घञ् ] प्रविष्ट, अनुगमन, अन्दर जाना, अन्तः समावेश ।
अनुप्रश्न: (पुं०) प्रश्न के बाद प्रश्न, एक प्रश्न पूछे जाने के बाद दूसरा प्रश्न । अनुप्रसक्तिः (स्त्री० ) [ अनु+प्र + संज् + क्तिन् ] प्राप्त करना, पहुंचना ।
अनुप्रसङ्ग (वि०) अति संलग्नता, अन्तः संपर्क । विशेष एकाग्रता ।
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