SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनीतिः अनुकूल अनीतिः (स्त्री०) ०ईति का अभाव, ०व्याधियों का नाश, | अनुकथनं (नपुं०) [अनु+कथ्+ल्युट्] वार्तालाप, सम्वाद, अतिवृष्टि। धर्मार्थकामेषु जनाननीतिं (जयो० २/१२०) कथोपकथन। (जयो० १२/३१) अनीतिमीति वयं (जयो० वृ० २/१२०) अनीतिप्रथितं अनुकर्णधारः (पुं०) कर्णप्रान्तगत। कर्णस्य धारामनु समीपं राजा नीतिमान् पुरमप्यसौ। (जयो० ३/१०८) उक्त पंक्ति वर्तते सोऽनुकर्णधारो, यद्वाऽनुकर्णधरा यस्येति वा, स चासौ में 'अनीति' शब्द दुराचार को प्रतिपादित करता है। आशुगो बाणस्तेन कर्णप्रान्तगतबाणेन। (जयो० वृ०६/६६) एकाधृतानीतिर भक्ष्य वृत्ति। (समु०८/४८) यहां 'अनीति' अनुकंपक (वि०) [अनु कंप्+ण्वुल्] दयालु, करुणाशील। का अर्थ अन्याय है। अन्याय। अनुकंपनं (नपुं०) [अनु+कंप+ल्युट्] करुणा, दयालुता, दयाभाव, अनीतिप्रथित (वि०) दुराचार युक्त। (जयो० ३/१०८) सहानुभूति। अनीतिभावः (पुं०) अन्याय भाव, दुराचार भाव, ईतियों/उपाधि | अनुकंपा (स्त्री०) [अनु+कंप+ल्युट्] करुणा, दया, सहानुभूति, का अभाव। (जयो० २३/२) आचार्य ज्ञानसागर ने ईतियों अनुकंपनमनुकंपा। (सि६/१२) सर्वप्राणिषु मैत्री अनुकंपा। का उल्लेख इस प्रकार किया है (त०वा० १/२) क्लिश्मान-जन्तूद्धरणबुद्धिः अनुकंपा। अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः। (भ०आ०टी० १६९६) कारुण्यपरिणामोऽनुकंपा (चा०प्रा० प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः।। (जयो० वृ० टी० १०) 'अनुकंपा' सम्यक्त्व का कारण है। (जयो० १०५३, सि०उत्तरार्ध) ४/३४) (सम्य० ६४) अनीतिमतिः (स्त्री०) अन्याय बुद्धि। (सुद० १/२३) अनीतिमत्यत्र अनुकरणं (नपुं०) [अनु+कृ+ल्युट्] अनुरूपता, सादृश्यता, जनः सुनीतिः (सुद० १/२३) समानता, अनुकूलन। अनुकरणस्यानुकूलनस्य। (जयो० अनीतियुक्त (वि०) अनीतिप्रथित, दुराचार युक्त। (जयो० वृ० । वृ० ४/३४) ३/१०८) अनुकरणीय (वि०) अनुकरण करने योग्य, आदर्श रूप। अनीश (वि०) प्रमुख, सर्वोच्च, प्रधान, श्रेष्ठ। महादर्शनमनुकरणीयम्। (जयो० वृ० ३/१०१) आदर्शस्य अनीशः (पुं०) प्रभु, स्वामी, ईश्वर। अनुकरणीयस्या (जयो० वृ० १/९१) . अनीश्वर (वि०) असमर्थ, अनियन्त्रित। (जयो० ८/१६) अनुकी (वि०) सेवाकारिणी। (जयो० वृ० १२/९२) फणीश्वरस्त्यक्तुमनीश्वरोऽस्ति। अनुकर्षः (पुं०) [अनु+कृष्+अच्] आकर्षण, लगाव, झुकाव। अनीश्वरोऽसमर्थस्तत्र। (जयो० वृ० ८/१६) अनुकल्पः (पुं०) [अनु+कल्प+अच्] अनुदेश भाव की प्रयुक्ति। अनीश्वर (वि०) दोष विशेष, स्वामी से भिन्न। अनुकाम (वि०) काम वाला, अपनी इच्छानुसार काम करने अनीश्वर-वादः (पुं०) ईश्वर को नहीं मानने वाले। नास्तिकवाद। वाला। अनीह (वि०) उदासीन, व्याकुल। अनुकाल (वि०) समयोचित, सामायिक गुण। अनु (अव्य०) सदृश, लक्षण, क्रम, निरन्तर, सम्बद्ध संकेत, अनुकालित (वि०) अनुकरण। (वीरो०७/१६) फलस्वरूप, पश्चात्वर्ती, तरह, अनुरूप आदि के अर्थ में अनुकीर्तन (नपुं०) कथन, प्रतिपादन, प्रकाशन, गुणस्तवन, 'अनु' का प्रयोग किया जाता है। (सम्य० १२३/७८) गुणगान। (सम०१/३) 'सादृश्ये लक्षणेऽप्यनु' इति विश्वलोचन:। (जयो० २१/४२) अनुकूल (वि०) [अनु+कूल+अच्] अनुवर्तिनि, मनोवाञ्छित, पातालमूलमनुखातिकया स्म सम्यक्। (सुद० १/३६) उक्त अभिमत, अनुरूप, कृपापूर्ण, (जयो० ३/९१) वामेन पंक्ति में 'अनुखातिकया' के साथ 'अनु' शब्द 'भाग' या कामेन कृतेऽनुकूले। (जयो० ३/९१) अनुकूले भवदिच्छानुअंश को प्रतिपादित कर रहा है। तरल-तरीष-विशिष्टो- वर्तिनि कृते। (जयो० वृ० ३/९१) सरस-सकल-चेष्टा ऽनुकर्ण-धाराशुगेन सन्तरति। (जयो० ६/६६) कर्णस्य सानुकूला नदीव। (वीरो० ३/३३) हारं हृर्दाऽनुकूलं स। धारामनु समीपं वर्तते। (जयो० वृ० ६/६६) इसमें 'अनु' (जयो० ३/९४) हृदोऽनुकूलं हृदयग्राह्यं हारं (जयो० ३/९४) का अर्थ समीप है। हृदयग्राह्य हार। अनुकूले सति सुरथे। (जयो० ६/११) इस अनुक (वि०) [अनु+कन्] कामुक, विलासी, लालची, लोलुपी, पंक्ति में (अनुकूलेऽभिमुख भावमिते) अभिमुख अर्थ है, लोभी। सम्मुख भी इसका अर्थ है। छाया तु लोमावलिकानूकूले। For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy