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अनीतिः
अनुकूल
अनीतिः (स्त्री०) ०ईति का अभाव, ०व्याधियों का नाश, | अनुकथनं (नपुं०) [अनु+कथ्+ल्युट्] वार्तालाप, सम्वाद,
अतिवृष्टि। धर्मार्थकामेषु जनाननीतिं (जयो० २/१२०) कथोपकथन। (जयो० १२/३१) अनीतिमीति वयं (जयो० वृ० २/१२०) अनीतिप्रथितं अनुकर्णधारः (पुं०) कर्णप्रान्तगत। कर्णस्य धारामनु समीपं राजा नीतिमान् पुरमप्यसौ। (जयो० ३/१०८) उक्त पंक्ति वर्तते सोऽनुकर्णधारो, यद्वाऽनुकर्णधरा यस्येति वा, स चासौ में 'अनीति' शब्द दुराचार को प्रतिपादित करता है। आशुगो बाणस्तेन कर्णप्रान्तगतबाणेन। (जयो० वृ०६/६६) एकाधृतानीतिर भक्ष्य वृत्ति। (समु०८/४८) यहां 'अनीति' अनुकंपक (वि०) [अनु कंप्+ण्वुल्] दयालु, करुणाशील। का अर्थ अन्याय है। अन्याय।
अनुकंपनं (नपुं०) [अनु+कंप+ल्युट्] करुणा, दयालुता, दयाभाव, अनीतिप्रथित (वि०) दुराचार युक्त। (जयो० ३/१०८)
सहानुभूति। अनीतिभावः (पुं०) अन्याय भाव, दुराचार भाव, ईतियों/उपाधि | अनुकंपा (स्त्री०) [अनु+कंप+ल्युट्] करुणा, दया, सहानुभूति,
का अभाव। (जयो० २३/२) आचार्य ज्ञानसागर ने ईतियों अनुकंपनमनुकंपा। (सि६/१२) सर्वप्राणिषु मैत्री अनुकंपा। का उल्लेख इस प्रकार किया है
(त०वा० १/२) क्लिश्मान-जन्तूद्धरणबुद्धिः अनुकंपा। अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः।
(भ०आ०टी० १६९६) कारुण्यपरिणामोऽनुकंपा (चा०प्रा० प्रत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः।। (जयो० वृ० टी० १०) 'अनुकंपा' सम्यक्त्व का कारण है। (जयो० १०५३, सि०उत्तरार्ध)
४/३४) (सम्य० ६४) अनीतिमतिः (स्त्री०) अन्याय बुद्धि। (सुद० १/२३) अनीतिमत्यत्र अनुकरणं (नपुं०) [अनु+कृ+ल्युट्] अनुरूपता, सादृश्यता, जनः सुनीतिः (सुद० १/२३)
समानता, अनुकूलन। अनुकरणस्यानुकूलनस्य। (जयो० अनीतियुक्त (वि०) अनीतिप्रथित, दुराचार युक्त। (जयो० वृ० । वृ० ४/३४) ३/१०८)
अनुकरणीय (वि०) अनुकरण करने योग्य, आदर्श रूप। अनीश (वि०) प्रमुख, सर्वोच्च, प्रधान, श्रेष्ठ।
महादर्शनमनुकरणीयम्। (जयो० वृ० ३/१०१) आदर्शस्य अनीशः (पुं०) प्रभु, स्वामी, ईश्वर।
अनुकरणीयस्या (जयो० वृ० १/९१) . अनीश्वर (वि०) असमर्थ, अनियन्त्रित। (जयो० ८/१६) अनुकी (वि०) सेवाकारिणी। (जयो० वृ० १२/९२) फणीश्वरस्त्यक्तुमनीश्वरोऽस्ति।
अनुकर्षः (पुं०) [अनु+कृष्+अच्] आकर्षण, लगाव, झुकाव। अनीश्वरोऽसमर्थस्तत्र। (जयो० वृ० ८/१६)
अनुकल्पः (पुं०) [अनु+कल्प+अच्] अनुदेश भाव की प्रयुक्ति। अनीश्वर (वि०) दोष विशेष, स्वामी से भिन्न।
अनुकाम (वि०) काम वाला, अपनी इच्छानुसार काम करने अनीश्वर-वादः (पुं०) ईश्वर को नहीं मानने वाले। नास्तिकवाद। वाला। अनीह (वि०) उदासीन, व्याकुल।
अनुकाल (वि०) समयोचित, सामायिक गुण। अनु (अव्य०) सदृश, लक्षण, क्रम, निरन्तर, सम्बद्ध संकेत, अनुकालित (वि०) अनुकरण। (वीरो०७/१६)
फलस्वरूप, पश्चात्वर्ती, तरह, अनुरूप आदि के अर्थ में अनुकीर्तन (नपुं०) कथन, प्रतिपादन, प्रकाशन, गुणस्तवन, 'अनु' का प्रयोग किया जाता है। (सम्य० १२३/७८) गुणगान। (सम०१/३) 'सादृश्ये लक्षणेऽप्यनु' इति विश्वलोचन:। (जयो० २१/४२) अनुकूल (वि०) [अनु+कूल+अच्] अनुवर्तिनि, मनोवाञ्छित, पातालमूलमनुखातिकया स्म सम्यक्। (सुद० १/३६) उक्त अभिमत, अनुरूप, कृपापूर्ण, (जयो० ३/९१) वामेन पंक्ति में 'अनुखातिकया' के साथ 'अनु' शब्द 'भाग' या कामेन कृतेऽनुकूले। (जयो० ३/९१) अनुकूले भवदिच्छानुअंश को प्रतिपादित कर रहा है। तरल-तरीष-विशिष्टो- वर्तिनि कृते। (जयो० वृ० ३/९१) सरस-सकल-चेष्टा ऽनुकर्ण-धाराशुगेन सन्तरति। (जयो० ६/६६) कर्णस्य सानुकूला नदीव। (वीरो० ३/३३) हारं हृर्दाऽनुकूलं स। धारामनु समीपं वर्तते। (जयो० वृ० ६/६६) इसमें 'अनु' (जयो० ३/९४) हृदोऽनुकूलं हृदयग्राह्यं हारं (जयो० ३/९४) का अर्थ समीप है।
हृदयग्राह्य हार। अनुकूले सति सुरथे। (जयो० ६/११) इस अनुक (वि०) [अनु+कन्] कामुक, विलासी, लालची, लोलुपी,
पंक्ति में (अनुकूलेऽभिमुख भावमिते) अभिमुख अर्थ है, लोभी।
सम्मुख भी इसका अर्थ है। छाया तु लोमावलिकानूकूले।
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