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अनियन्त्रण
अनियन्त्रण (वि०) असंयत, स्वतन्त्र |
अनियमः (नपुं०) नियम का अभाव, नियन्त्रण। अनियम (वि० ) ० अनिश्चितता, ० निश्चयाभाव । ० संदेह, ० अनुचित । नियम पर विचार नहीं करने वाला अनिरुक्त (वि० ) ० स्पष्ट व्युत्पत्ति का अभाव, ०व्याख्या का ० उचित प्रयोग नहीं, ०अनुचित कथन। ०शब्द विश्लेषण का उचित प्रयोग नहीं होना ।
अनिरुद्ध (वि०) अनियन्त्रित, स्वच्छंद, अनिश्चित, आकस्मिक । अनिर्णय (वि०) अनिश्चितता । ० विचारों में एक रूपता न होना, नीति निर्धारण नहीं होना ।
अनिर्दश (वि०) कम समय ।
अनिर्देश (वि०) नियम का अभाव, निर्देश की अवज्ञा । अनिर्देश्य (वि०) अवर्णनीय वर्णन शून्य, निर्देशन की उचित
व्यवस्था का अभाव।
अनिर्धारण ( वि०) नियमाभाव ।
अनिर्धारित (वि०) नियमाभाव ।
अनिर्वचनीय (वि०) कहने के अयोग्य, अवर्णनीय, कौशल चातुर्य। (जयो० वृ० ३ / २७)
अनिर्वाण (वि० ) निर्वाण का अभाव।
अनिर्वेद (वि०) उत्साह, उमंग, सम्यक्त्व की ओर। अनिवार्य (वि०) अव्यवहार । (जयो० वृ० १३ / ९ ) अव्यवहारोऽनिवार्य एवास्ति। (जयो० वृ० १३ / ९ ) अनिवार्य (वि०) आवश्यक । ०करने योग्य, ० विषय की निर्धारण पद्धति ।
अनिर्वृत (वि०) खिन्न, अशान्त ।
अनिर्वृत्ति (वि०) विकलता, व्याकुलता । अनिर्वृत्तिः (स्त्री० ) निर्धनता ।
अनिवृत्तिः (स्त्री०) विशिष्ट आत्मपरिणाम, निवर्तनशीलं निवर्ति, न निवर्ति, अनिवर्ति । सम्यक्त्व की अतिशयता । अनिवृत्तिकरण: ( नपुं०) नवम् गुणस्थान का नाम । (जयो० २८ अनिलः (पुं० ) [ अन्+इलच्] पवन, वायु, हवा । अनिलः (पुं०) देव नाम, वायुदेव ।
अनिशम् (अव्य० ) निरन्तर लगातार । कुर्यात्प्रयत्नमनिशं
मनुजस्तथापि ।
अनिषेवणं (नपुं०) प्रयोग का अभाव। (हित ७) (वीरो० १८/५८)
अनिःशेषित (वि०) शेष नहीं, सम्पूर्णता । (जयो० २ / १०७) अनिष्ट (वि०) अनर्थ ० अननुकूल, ०दुर्भाग्यपूर्ण, ०हानिकारक |
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अनीक्षित
(जयो० २ / ९० ) अमङ्गलसूचक। (जयो० वृ० २/२३) (सम्य० १३५) ० अशुभ कारक ।
अनिष्टता (नपुं०) निःसारता, दुर्भाग्यपूर्णता, अमङ्गलसूचकता। (जयो० वृ० ११ / २०)
अनिष्टनाशनं (नपुं०) अनर्थसूदन। (जयो० २ / २३) अनिष्टसंयोगः (पुं०) करणीय नहीं निर्दोष नहीं, अनिष्ट पदार्थों का मिलन। (जयो० १/१०९) इष्टवियोगनिष्टसंयोगतया । (जयो० वृ० १ / १०९ )
अनिष्टसंयोगजं ( नपुं०) आर्तध्यान का नाम, विष, कण्टक
आदि अनिष्ट पदार्थों का संयोग होने पर उसके दूर करने के लिए मन में जो बार-बार संकल्प-विकल्प उठते हैं, वे अनिष्टसंयोगज कहलाते हैं।
अनिष्टहानि (पुं०) अमंगल, अभाव (वीरो० २० / ७) अनिष्ठा (वि०) महती (जयो० १ / १६ ) अनिष्पन्नं (अव्य०) बहुत बलपूर्वक नहीं । अनिस्तीर्ण (वि०) अपारगामी, छुटकारा से रहित । अनिसृष्ट (वि०) दोष विशेष, अनियुक्त, अनधिकारी द्वारा प्रदत्त वसति ।
अनिस्सर ( अक० ) ( अनि+सृज् ) अनप्रित करना, अकेन्द्रित करना, बाह्यमनिस्सरन्तीमसतीं निगाह्य। (जयो० १/२० ) अनिस्सरन्ती न निर्गच्छन्तीम् ।
अनिस्सरणात्मक (वि०) तैजस शरीर विशेष । औदरिक, वैकल्पिक और आहारक शरीर के भीतर स्थित देहदीप्ति । अनिह्नवः (पुं०) अधीत गुरु का उल्लेख, ज्ञानाचार का एक गुण, जिस गुरु के पास जो पढ़ा, उसके विषय में उसी गुरु का उल्लेख करना, अन्य का नहीं। ( भक्ति० ८ ) अनिह्नवाचार: (पुं०) (यस्मात् पठितं श्रुतं स एव प्रकाशनीयः) ज्ञान के आठ भेद हैं- शब्दाचार, अर्थाचार, उभयाचार, कालाचार, उपधानाचार, विनयाचार, अनिह्नवाचार और बहुमानाचार। उनमें अनिह्नवाचार नामक सातवां भेद । अनीकः (पुं०) सेना, सैन्यपंक्ति, सैन्यदल, सैनिक, संग्रामदल । अनीकः (पुं०) अनीक नामक देव, जिनके पास हाथी, घोड़े, रथ, पादचारी, बैल, गन्धर्व और नर्तकी ये सात सैन्य रूप होते हैं।
अनीक को दण्डस्थानीय भी कहा है, जो क्षेत्र की दण्ड - व्यवस्था करते हैं।
अनीक्षित (वि०) दृष्टि से पर, अनालोकित, अदृष्टव्य, अनदेखे । ( भक्ति सं० ४४) अनीक्षितायोग्यपुरः प्रदेशे ।
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