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अनवस्थान
अनादि
जहां विश्रांति का अभाव होता है, वहां अनवस्था दोष होता है। अप्रामाणिकानन्तपदार्थ परिकल्पनया विश्रान्त्य
भावोऽनवस्था। (प्रमे०रत्न०२२७) अनवस्थान (वि०) अस्थिर, चंचल, अस्थायी। अनवस्थित (वि०) अस्थिर, चंचल, परिवर्तित। अनवेक्षक (वि०) असावधान, उदासीन। अनवेक्षणं (नपुं०) [नञ्+अब+ईक्ष् ल्युट्] अनवधानता,
असावधानता, उदासीनता। परीक्षण अभाव, पर्यालोचन
शून्यता। अनशनं (नपुं०) उपवास [न+अश्+ल्युट्] बाह्य तप का प्रथम
भेद अनशन तप। (जयो० वृ० १/२२) अशनत्यागोऽनशनम्। मुक्त्यर्थं तपोऽनशनमिष्यते। (अनगार धर्मामृत ७/११)
उपवास भी अवधूतकाल और अनयधूत काल रूप है। अनश्वर (वि.) अविनाशी, शाश्वत। अनस् (पुं०) १. गाड़ी, २. जन्म, ३. प्राणी। भोजन, रसोईघर। अनसूय (वि०) [नञ्+सूय] ईर्ष्यारहित, द्वेष रहित। अनाकाङ्क्षः (पुं०) (अन+आकाङ्क्ष) अनादर भाव रखना। अनाकाङ्क्षणा (स्त्री०) निष्कांक्षित अंग। अनाकाक्षित (वि०) अनाकांक्षा भाव वाले, आकांक्षा से
रहित। (मुनि०१०) नो गच्छे दतिभूमिगे हिसदनं
निष्टोऽप्यनाकाङ्कितः। (मुनि०१०) अनाकार (वि०) आकार रहित, विकल्प रहित। अनाकालः (पुं०) कुसमय, दुर्भिक्ष। अनाकुल (वि०) ०व्यग्रताविहीन, ०शान्त, ०अविनाशिनी।
०स्वस्थित, आत्मस्थ, स्वस्थ, ०दृढ़। पापं न मनागनाकुलः।
(जयो० २३/६) अनाकुला (वि०) प्रसाधनीया, प्रसाधिता। ललाटप्रान्तेऽनाकुलाः
प्रसाधनी प्रसाधिता। (जयो० वृ० १०/३३) अनाग (वि०) आगोवर्जित, निष्पाप, शीत बाधा समाप्त करने
वाला। द्यौर्मुच्छिताप्यनिशि चित्त्वमिताप्यनागः। (जयो०
१८/७०) अनागत (वि०) भविष्यत् काल, आगे आने वाला। (जयो०
१२/७३) गतवत्स्युरनागतानि। (जयो० १२/७३) अनागतानि
भविष्यत्कालप्रभवाणि। अनागस् (वि०) निरपराध, निर्दोष। (जयो० ३/५) अनागसेवित (वि०) निरपराध द्वारा सेवित, सत्पुरुषों से संरक्षित। नागैः सत्पुरुषैः सेवित आराधितः सन् अनागसे निरपराधजनाय अनित: संरक्षित इति। (जयो० वृ० ३/५)
अनागम (वि०) अप्राप्ति, न आना। अनाचार (पुं०) विषयासक्ति, इन्द्रियाधीनता, ०अनुचित
आचरण, दुराचरण, कुरीति, व्रत भंग होना। (अनाचारो
व्रतभङ्गः, सर्वथा स्वेच्छया प्रवर्तनम्) (मूला० १० ११/११) अनाचिन्न (वि०) ग्रहण करने में अयोग्य। अनाच्छादित (वि०) प्राङ्गण, खुला स्थान। (जयो० वृ० २/१४९) अनाज्ञाद्य (वि०) छाया, ताप रहित, ठण्डा। (जयो० वृ० ३/११३) अनातुर (वि०) उदासीन, खिन्न, अप्रसन्न, थका हुआ, अक्लांत, ___अनुत्सुक। अनात्मन् (पुं०) पुद्गल, अजीव। आत्माऽनात्मपरिज्ञानसहितस्य।
(सुद० १३३) अनात्मन् (वि०) आत्मा से रहित, मन से रहित। ०अचेतना
पुइगलपना। अनात्मभूत (वि०) अनात्मभूत लक्षण या हेतु। जो लक्षण वस्तु
के स्वरूप में मिला हुआ न हो। अनात्मशंसनं (नपुं०) आत्म स्वरूप के अतिरिक्त अन्य __ पदार्थों के स्वरूप का कथन। ०रुव प्रतिपादन का अभाव। अनात्म-सदनं (नपुं०) स्वगृहाचार। (जयो० २/४५) अनात्म-सदनावबोधनं (नपुं०) अपने घर की जानकारी न
रखने वाला। (जयो० २/४५) आत्मनः सदनं तस्याव बोधनमात्मसदनावबोधनं नात्मसदनावबोधनं तस्मिन्
स्वगृहाचार ज्ञानाभावे। (जयो० वृ० २/४५) अनात्मवत् (वि०) [आत्मा वश्यत्वेन नास्ति इत्यर्थे-नञ्+
आत्मन्+मतुप्] असंयमी, इन्द्रियाधीन। अनाथ (वि०) स्वामिरहित, असहाय, निर्धन, त्यक्त, मातृविहीन।
(जयो०८८४) अनादर (पुं०) तिरस्कार, अवज्ञा, उपेक्षा, प्रीत्यभाव, उन्मनस्क
प्रकार। (जयो० १७/२३) अनादरः प्रीत्यभावः। (जयो०
वृ०८/१९) अनादर (वि०) उपेक्षा करने वाला, उदासीनता। अनादरः (पुं०) प्रोषधोपवास में लगने वाला अतिचार। अनादरः (पुं०) जम्बूद्वीप का अधिपति व्यंतर देव। अनादर-भाक् (वि०) अवज्ञा जन्य कथन करने वाला (वीरो०
१७/२२) अनादानं (नपुं०) दानशील। (जयो० १/७२) अनादानकर (वि०) दानशीलत्व। (जयो० वृ० १/७२) अनादि (वि.) नित्य, आदि रहित, अनादि से आगत। (सम्य०
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