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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनन्य सेविका अनन्य सेविका (वि०) परमसेविका, प्रमुख सेवा करने वाली। (जयो० २३/२९) अनन्यसेवा (स्त्री०) समर्थित भाव (भक्ति १२) अनन्य सुन्दरी (वि०) अपूर्व रूपा, परमसुन्दरी (जयो० ११/७६) अनन्वय: (पुं०) सम्बन्धाभाव । अनन्वयालङ्कार ( पुं०) अनन्वय अलंकार, जिसकी किसी वस्तु की तुलना उसी से की जाए और उसको ऐसा बेजोड़ सिद्ध किया जाए जिसका और कोई उपमान ही न हो। तथापि भूमावपि रूपराशावाशाधिकनार्यो बहुलास्तु तासाम् । का सावरम्या स्मरसारवास्तु सुरोचना नाम सुरोचनास्तु ।। (जयो० ३/७३) सुरोचना तु सुरोचनैव सूत्तमतया रोचना रूचिकरी विलसतु । न किल काचनापि स्त्री समकक्षतामेतस्या उपढौकतामिति । अनन्वयालङ्कारः । अनप (वि०) जलहीन, जल रहित, क्षुद्र जलाशय, सूखा तालाब (जयो० वृ० १/५) अनपकारणं (नपुं०) चोट न पहुंचाना। अनपकर्मन् (नपुं०) ऋण न चुकाना अनपक्रिया ( स्त्री०) पुनः वापस नहीं करना । अनपकारः (पुं०) उपकार का अभाव, अहित का अभाव। अनपकारिन् (वि०) उपकार का अभाव। अनपत्य (वि०) निस्संतान, सन्तानरहित। अनपत्रप (वि०) निर्जल्ज, जल्जाविहीन | अपभ्रंशः (पुं० ) शुद्ध शब्द, व्याकरण सिद्ध शब्द । अनपवृत्ति ( स्त्री० ) यथोत्तर प्रवृत्तिशील। (जयो० वृ० ११ / ५ ) अनपसर (वि०) अन्यायोचित, अक्षम्य । अनपाय (वि०) प्रसन्न, अनश्वर, अक्षीण, निर्वाध पूर्ण (भक्ति सं० १६, २४) स्वयंत्वमानन्दद्दशेऽनपाय: । (समु० ३ / ६) मनोरथस्तस्य सदाऽनपायः (भक्ति पृ० २४) अनपाय: (पुं०) शिव, कल्याण, निर्दोष (वीरो० २२ / १ ) अनपायिन् (वि०) [ अनपाय+णिनि] ० विच्छेद रहित दृढ़, स्थिर, अचल गोहिनो हि जगतोऽनपापिनी भक्तिरेव खलु मुक्तिदायिनी (जयो० २/३८) अनपायिनी विच्छेदरहिता। (जयो० वृ० २/३८) मनसा मन्यमानानां वचसोच्चरतामिदम्। कायेन कुर्वतामेवं सिद्धि स्यादनपायिनी । (हि०सं० वृ०२) ३९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनर्थक अनपेक्ष (वि० ) ०असावधान, ०अपेक्षा रहित, ०उदासीन, ०ध्यानशून्य (मुनि००९) अनपेक्षक (वि०) अपेक्षा रहित । अनपेक्षिन् (वि०) असावधान, उदासीन अनपेत (वि०) विचलित नहीं हुआ। । अनभिज्ञ (वि०) अनज्ञान, अनभिज्ञ, अपरिचित, अनभ्यस्त । (वीरो० ३/९) (सम्य ३२) अनभिज्ञत्व (वि०) अपरिचितपना; अज्ञत्व (वीरो० वृ० ३ / ९ ) मोक्षपुरुषार्थसम्पत्तयेऽनभिज्ञत्वमहत्व वेद । अनभिव्यक्त (वि०) गुप्त। (जयो० कृ० १६/४२) वेद। (वीरो० वृ० ३/९) अनभ्यावृत्ति (स्त्री०) पुनरुक्ति का अभाव। अनभ्यास (वि०) अभ्यास रहित । अनम्बर (वि०) दिगम्बर, निर्ग्रन्थ। अनयः (पुं०) अन्याय, अनीति नीति वर्जित दुराचार, दुर्नीति, विपत्ति, दुःख । दुर्भाग्य। (जयो० ७ /६०) अनयन (नपुं०) अन्धा, जन्मान्ध (जयो० २५/७०) २५/६८) अनयनोऽन्धोऽपि जन: । अनयनश्च जनः श्रुतमिच्छति । परिकृतः परितोऽप्यधिगच्छति । अहहसूळतया न मया हितं सुमतिभाषितमप्यवगाहितम् ।। (जयो० ९ / ३१ ) अनरः (पुं०) अतिमानुष (जयो० २ / ३९ ) अनर - गोचर ( वि०) देव गोचर (जयो० २ / ३९) नराणां गोचरं न भवतीति अनरगोचरमतिमानुषं कार्यं साधयति । (जयो० वृ० २ / ३९) अनध (वि०) मेघ विहीन । अनम्र (वि०) नम्रता हीन, अविनीत। अनर्गल (वि०) अव्याहत ०फैलाव ० अनियन्त्रित, ० स्वेच्छाचारी । (जयो० १३ / ३० ) अनर्गलसद्रिन् (वि०) ० अव्याहत प्रसार, ०बहुत तेजी के साथ फैलाव । किमनर्गलसर्पिणे स्थितिं, क्षमता दातुमहो बलाय मे। (जयो० १३/३० ) अनर्घ (वि०) अमूल्य, अनमोल। (सुद० ७२ ) अनर्घ्य देखो ऊपर। अनर्घ्य (वि०) ० अनुपयुक्त, ०भाग्यहीन, ०निष्क्रिय, ० निरर्थक, हानिकारक | " अनर्थः (पुं०) अनुपयुक्त वस्तु ० विपत्ति, दुर्भाग्य, ० विप्लवकरी, ०अनिष्ट । अनर्थक देखो अनर्थकर | For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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