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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनन्त ३८ अनन्य-सहाय अनन्त वि०) अनन्त संख्या विशेष, आय-रहित और निरन्तर अनन्तानुबन्धी (वि०) अनन्तभवों की परम्परा को बनाए व्यय सहित होने पर भी जो राशि समाप्त न हो या जो रखने वाली कषाय। (सम्य० १२२) राशि एकमात्र केवलज्ञान का ही विषय हो। अनन्तानुरूपं (नपुं०) अनन्त रूप। (सुद० १/२९) अनन्तकायः (पुं०) अनन्तजीव, जिन अनन्त जीवों का एक अनन्तालयः (पुं०) शेषनाग का भवन। (वीरो० २/२३) साधारण शरीर हो तथा जो अपने मूल एवं जो शरीर से विभात्यनन्तालयसंकुलं। (वीरो० २/२३) छिन्न-भिन्न होने पर भी पुनः उग आते हैं, ऐसे थूवर, अनन्तालयः (पुं०) अगणितालय, असीम भवन। गुडूची आदि अनन्तकाय हैं। अनन्य (वि०) [न अन्योऽपरो वा] अभिन्न, अद्वितीय, अप्रतिहत अनन्तचतुष्टयं (नपुं०) अनन्त दर्शन, ज्ञान, सुख और बल। (जयो० १/९) निश्चित, दृढ़ (जयो०५/१०६) (१/१०), (भक्ति०१९) अनुपम, एकमात्र, अविभक्त, अविभाज्य, समरूप, अनन्तजिनः (पुं०) चौदहवें तीर्थंकर अनन्तप्रभु इन्हें 'अनन्तजिद्' एक सा, पूर्व। (जयो० ११/७२) रमणे चरणप्रान्ते अनन्तनाथ, भी कहते हैं। प्रणतिप्रवणेऽत्त्यनन्यशरणे वा। (जयो० १६/६१) इस पंक्ति अनन्तजीवः (पुं०) अनन्तकाय। में 'अनन्य' का अर्थ परम है। पाणिपीडनमनन्यगुणेन। अनन्तता (वि०) अनन्त रूपता। (वीरो० ७/२३) (समु०५/२२) यहां 'अनन्य' का अर्थ यशस्वी, अनुपम, अनन्तदेवः (पुं०) अनन्तनाथ। (चौदहवें तीर्थंकर) अद्वितीय है। (तवालसत्वं स्विदनन्यभासः) (जयो० ८७१) अनन्तधर्मता (वि०) अनन्तधर्म वाला। (सुद० ९१) अनन्यभासोऽसदृशतेजः। अनन्तनाथ: (पुं०) अनन्तजिन, अनन्तप्रभु। चौदहवें तीर्थंकर। अनन्यकर्मन् (नपुं०) अपूर्वकर्म (वीरो० २२/२७) (भक्ति सं० १९) अनन्यगतिः (स्त्री०) एकमात्र सहारा, एकमात्र आश्रय। अनन्तपार (वि०) असीम विस्तार युक्त, निस्सीम। अनन्यगुणं (नपुं०) यशस्वीगुण, अद्वितीय गुण। (समु०५/२२) अननन्तमिश्रित (वि०) अनन्तकायिक, अनन्यचित्तं (नपुं०) एकाग्रचित्त। अनन्तर (वि०) [नास्ति अंतरं यस्य] ०सीमा रहित, ०अन्त अनन्यजनः (पुं०) परम जन। (वीरो० २१/१९) रहित, सटा हुआ, ०संसक्त, निकटवर्ती। अनन्यजन्मन् (पुं०) कामदेव। ०मदन। अनन्तरं (नपुं०) सन्निकटता। अनन्यता (वि०) स्वार्थपरता। (वीरो० १/३४) अनन्तरं (अव्य०) पश्चात्, तुरन्त बाद, इसके बाद, पुनश्च। अनन्यतम (वि०) अभिन्नतम। (जयो० १०/२३) सुहृदोऽनन्यतमे (सम्य ७२) क्षेमप्रश्नानन्तरं ब्रूहि। (सुद० ३/४५) योग-भोग- गुणक्षमे। (जयो० १०/२३) योरन्तर खलु। (सुद० वृ०७०) पुनरनन्तरं (जयो० वृ० ११/१५) अनन्यतेजः (पुं०) अनन्यभास। (जयो० १/९) अनन्तर-बन्धं (नपुं०) कर्मरूप प्रथम परिणमन। अनन्यभावः (पुं०) अनुपमभाव (वीरो० २२/३६) अनन्तरसिद्धः (पुं०) सिद्धगति प्राप्त होना। अनन्यभासः (पुं०) असदृश तेज, अनुपम कान्ति। (जयो० अनन्तरूपत्व (वि०) जरा रहित, अन्तवर्ण रहित। न विद्यतेऽन्तो ८/७१) यस्य तत्तादृग्रूपं यस्य तस्य भाव। (जयो० १७/१०७) अनन्यमनस् (नपुं०) अनमने का रहस्य। (समु० ३/३१) अनन्तवियोजक (वि०) अनन्तानुबन्धी कषाय की विसंयोजना अनन्यरमणीय (वि०) परम रम्य, अद्वितीय, सुन्दरता। (जयो० वाला जीव। वृ० ३/४५) अनन्तवीर्य (पुं०) राजा जयकुमार और रानी शिवंकरा का | अनन्यवृत्तिः (स्त्री०) परमवृत्ति, अन्यत्र नहीं गमन। (भक्ति पुत्र। (जयो० २७/२) सं० २९) अनन्यवृत्त्यात्मनिमग्नतातः। (भक्ति०२९) अनन्तवीर्य (नपुं०) वीर्यान्तराय कर्म के क्षय से प्राप्त शक्ति, अनन्यवेषः (पुं०) [न अन्यो अपरो वेषो परिवेषः रूपः] अनन्त चतुष्टय में अन्तिम चतुष्टय, जिसे 'अनन्तबल' दिगम्बर रूप। भी कहते हैं। अनन्यशरणं (नपुं०) परमशरण, पूर्णशरण, अद्वितीयाश्रय। अनन्तसंसारी (वि०) अर्ध पुद्गल प्रमाण काल तक परिभ्रमण (जयो० १६/६१) करने वाला जीव। अनन्य-सहाय (वि०) इतर साहाय्य। (जयो० ६/११४) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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