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च्युतात्मन्
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छद्मस्थः
च्युतात्मन् (वि०) आत्मभाव से रहित दुष्टात्मा वाला। च्युतिः (स्त्री०) [च्यु+क्तिन्] गिरना, पतन, अवतरण, आना,
निकलना, रिसना, झरना. टपकना।
छः (पुं०) चवर्ग का दूसरा व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान
तालु है। छः (पुं०) [छोड] १. अंश, खण्ड, भाग, हिस्सा, प्रदेश। २.
सूर्य (जयो० २८/१) छा-छोदन क्रिया छश्च छोदकार्कयो:
इति वि। छगः (पुं०) [छ यजादी छेदन गच्छति-छ+गम+ड] बकरा। छगलः (पुं०) बकरा, छाग, अजापुत्र। (दयो० ४४) (जयो०
२५/३५, २५/१२) छगलं (नपुं०) नील वस्त्र। छगलकः (पुं०) बकरा। छगी (स्त्री०) बकरी। छज्जा (स्त्री०) वलभीतल (जयो०० १०/६१) छटा (स्त्री०) [छो+अटन्+टाप्] १. प्रभाव, कान्ति, प्रकाश,
दीप्ति, किरण समूह। २. पुञ्ज, ढेर, राशि, ०ओघ। ३. रेखा, पंक्ति, लकीर। ४. आभा, ०शोभा, ०अलंकार (जयो० २/२३) ५. विचारधारा, अविच्छिन्न। धारा येषां
ते प्राणाचार्य: बभूवुः। (जयो० वृ० ३/१६) छत्रः (पु०) [छादयति अनेन इति-छ्+णिच्-त्रन्] कुकुरमुत्ता.
खंभी। छत्रं (नपुं०) आतपत्र, छाता। (जयो० वृ० २६/१५) १.
छत्राकार योग। छत्रत्रयः (नपुं०) तीन छत्र। चांदी या स्वर्ण निर्मित भगवान् के
मस्तक के ऊपर सुशोभित होने वाले तीन छत्र। त्रिगुणं
वपुराप्य घूर्णते क्षयजिच्छत्रतया जगत्पतेः। (जयो० २६/६१) छत्रधर (वि.) १. छत्र धारक। २. छत्र ग्रहण करके चलने
वाला। छत्रधार (वि०) छत्र ग्रहण करके चलने वाला। छत्रधारणं (नपुं०) १. आतपत्र लेकर चलना, छत्र लेना छाता
रखना। २. बच जाना, उड़ जाना, ३. प्रगमन करना,
भटकना। छत्रपुरी (स्त्री०) पुष्कल देश की नगरी। (वीरो० ११/३५)
जिसका शासक अभिनन्दन था।
छत्रा (स्त्री०) कुकुरमुत्ता। छत्रातिछत्रं (नपुं०) योग दृष्टि, जिसमें एक के ऊपर एक छत्र
के सद्भाव के समान आकार से योग साधना की जाती है। 'छत्रात् सामान्यरूपात् उपर्यन्यान्यछत्रभावतोऽतिशायि छत्रं छत्रातिछत्रम्। (जैन०ल० ४४६) छत्रायते-छत के समान प्रतीत होना-अधस्थ-विस्फारि-फणीन्द्र- दण्ड
श्छत्रायते वृत्ततयाऽप्यखण्डः। (वीरी० २/३) छत्रिकः (पुं०) [छत्र+ठन्] छाता लेकर चलने वाला। छत्रिन् (वि.) छाता रखने वाला। छत्वरः (वि०) [छद्+प्वरच] गृह, आवास, पर्णकुटीर। छद् (सक०) ढकना, पर्दा करना, आवरण करना, छिपाना,
आच्छादित करना। छदः (पुं०) [छद्+अन्] आवरण, चादर। छदं (नपुं०) [छद्+ल्युट] आवरण, पर्दा, चादर। 'प्रणप्टदण्डानि
सितातपत्रच्छदानि रेजुः पतितानि तत्र।' (जयो० ८/३८)
छदानि आवराणां शुकानि। (जयो० वृ०८/३८) छदनं (नपुं०) १. आवरण, चादर। २. पत्र, पर्ण, ३. म्यान,
खोल, संदूक, करण्य, डिबिया। छदपत्रं (नपुं०) तेजपत्र। छदिः (स्त्री०) १. छप्पर, छत का ऊपरी भाग। (जयो०
१२/९१) गृहस्योपरिभाग। २. सञ्छादनवृत्ति, आच्छादन
भाव, छिपाने का भाव। (जयो० वृ० २३/२८) छान् (नपुं०) [छद्म निन्] १. छिपाव, गोपन। (जयो० वृ०
६/६२) छल, कपटवश, धोखा देने वाला आवरण। २. बहाना, ब्याज। (जयो० १४८३) ३. जालसाजी, चालाकी, धूर्तता, ठगी। ४. आत्म-आवरण रूप कर्म, घातिया कर्म। 'छादयत्यात्मनो यथावस्थितं रूपमिति छद्म ज्ञानावरणादि
घातिकर्म-चतुष्टयम्।' (जैन०ल० ४४६) छद्मतापसः (पुं०) वेशधारी, तपस्वी, पाखण्डी साधु। छद्मदृक् (स्त्री०) १. छल दृष्टि। २. ब्याज दृष्टि। 'छद्म छल
यस्याः सा चासौ दृक् दृष्टिश्च। (जयो० वृ० १/८३) छद्मनामः (पुं०) उपनाम। छद्मभावः (पुं०) ब्याज, बहाना। छद्मवेशः (पुं०) कृत्रिम वेश। (जयो० वृ०७/४) छद्मस्थः (वि०) छद्म में स्थित, कर्मावरण जन्य। (सम्य०७३)
ज्ञानावरण दर्शनावरण में स्थित। 'छद्म ज्ञान-दृगावरणे, तत्र तिष्ठन्तीति छद्मस्थाः । (धवला० १/१८८) 'छदुम णाम आवरणं तम्हि चिट्ठदि त्ति छउमत्थो। (धव० १०/२९६)
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