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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छद्मस्थमरणं ३९७ छवि-दर्शिनी छद्मस्थमरणं (नपुं०) मन:मर्ययज्ञान वाले तक का कारण, | छर्दिका (स्त्री०) [छर्दि+कन्+टाप्] वमन करना। ___ चार क्षयोपशमिक वाले का मरण, छद्मस्थ संयतों का मरण। छर्दित (वि०) १. वमन करने वाला। २. घृतादि को गिराने का छद्मिन् (वि०) [छान् इनि] ठगी करने वाला, छल करने दोष वाला। वाला, कपट भावी। छर्दिदोषः (पुं०) आहार करते समय वमन से अन्तराय। छन्द् (सक०) प्रसन्न करना, संतुष्ट करना। छर्दिर्वमनमात्मनो यदि भवति। (मूला० ६/७६) छन्दः (पुं०) [छन्द्+घञ्] अभिलाषा, इच्छा, वाञ्छा, चाह, छर्दिस् (स्त्री०) वमन करना। इच्छानुकूल आचरण, चेष्टा। (जयो० वृ० २/५३) छल: (पुं०) छल, कपट, धूर्तता, वचन विघात। 'पशुतां छन्दना (स्त्री०) इच्छाकार पूर्वक ग्रहण। छलेन' (वीरो० १४/२७) वचनविघातोऽर्थविकल्पोपपत्त्या छन्दस् (नपुं०) [छन्द्+असुन्] १. इच्छा अभिलाषा, वाञ्छा, छलं वाक्छलादि। ब्याज, बहाना। 'लोम-लाजिच्छलात्सैषा' चाह, स्वेच्छाचरण। २. रचना, काव्य छन्द, वृत्त। (जयो० ३/४८) छलात्-व्याजात् (जयो० वृ० ३/४८) छन्दकृत् (वि०) पद्यात्मक रचना करने वाला। कालोपयोगेन हि मांसवृद्धि कुचच्छलात्तत्र समात्तगृद्धिः। छन्दगत (वि०) छन्द सम्बन्धी, रचना, कृति सम्बन्धी। (सुद० १०२) छन्दभङ्गः (पुं०) छन्दशास्त्र के नियम का उल्लंघन। छलं (नपुं०) १. छल, कपट, धोखा, बहाना ब्याज। २. छन्दयुगलः (वि०) छन्द समूह, युगलछन्द। योजना, उपाय। ३. दुष्टता। ४. दम्भ। छन्दशास्त्रं (नपुं०) रचनाधर्मिता का शास्त्र, वृत्ताास्त्र। छलच्छिदं (नपुं०) मायाचार, कपटभाव। (दयो० वृ० २३) छन्दसी (वि०) छन्द वृत्ति युक्त। छलनं (नपुं०) [छल्+ ल्युट्] कपट करना, मायाचार करना, छन्दोऽनुग (वि०) आज्ञानुसारिणी। (जयो० २७/२१) ठगना। छन्दोऽनुवर्ती (वि०) आज्ञानुसारी। छलयति-धोखा देता है, उगता है। छन्दोबन्धः (पुं०) प्रबन्ध रचना। (दयो० पृ० ५३) छलरहित (वि०) दम्भातीत, दम्भ रहित, कपट रहित। (जयो० छन्दोभिधः (पुं०) छन्द नाम। वृ० २३/९०) छन्दोऽभिश्चालः (पुं०) गेयात्मक पद्य का पद्धति, गीत - छलिकं (नपुं०) [छल+इनि] ठग, उचक्का। विशेष पद्धति। छवि-रवि-कलरूपाषायात् साऽऽर्हतीतिनः छल्लि (स्त्री०) १. छाल, वल्कल। २. फैलने वाली लता। ३. स्विदपायात्। (स्थायी) वसनाभरणैरादरणीयाः सन्तु मूर्तयः सन्तान, प्रजा, सन्तति। किन्तु न हीयान्। तसु गुणः सुगुणायाश्छविरवि-कलरूपा छवि (स्त्री०) [छयति असारं छिनत्ति तमो वा-छो वि+किच्च पायात्। (सुद० वृ० ७५) वा ङीप्] छन्न (वि०) [छद+क्त] ढका हुआ, आवृत, लुप्त, गुप्त, * आकार, (जयो० वृ. २४/४१) आच्छादित, आवरित, आच्छन्न। रहस्यपूर्ण। (सुद० ९०) * प्रतिमूर्ति, प्रतिबिम्ब (जयो० ३/८१) रजोऽन्धकारे जडजाधिनाथश्छन्ने न किं गोपतिरेष चाथ * कान्ति, शोभा, प्रभा (जयो० १०/४०) (जयो०८/७) * मुद्रा, आकृति (सुद० ७०) छन्नदोषः (पुं०) आलोचना, प्रायश्चित्त। राग-द्वेषरहिता सति सा छविरविरुद्धा यस्य। छन्ना (वि०) प्रलुप्ता, लुप्त हो गई। छन्ना किलोच्चै स्तनशैलमूले। * प्रकाश, दीप्ति, तेज। (जयो० ११/४९) * छाल, त्वच्, खाल। छन्नी-भवत्व (वि०) निष्प्रभ होता हुआ, छिपता हुआ। नियमेन * शरीर-'छविः शरीरं त्वक् वा' (त०भा० ७/२०) तिरोभावितुं किल गतवान्। (जयो०८/५०) * अलंकार छवि: अलंकार विशेषः। छमण्डः (पुं०) [छम्+अण्डन्] अनाथ, मातृपितृविहीन। छविकर (वि०) प्रभा फैलाने वाला। छर्द (अक०) वमन करना, कै करना। छविच्छल (नपुं०) प्रतिबिम्ब के बहाने। (जयो० २४/५८) छर्दः (पुं०) [छ+घञ्] वमन। छवि-दर्शिनी (वि.) कान्त्यवलोकिनी, सौंदर्य को देखने वाली। छर्दिः (स्त्री०) वमन करना। (जयो० १०/४०) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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