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चोय
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चोज्य (वि०) आश्चर्य, विस्मय।
चोटी (स्त्री० ) [ चुट्+अण्+ ङीप्] छोटा लंहगा । चोडा ( स्त्री० ) [ चोड़ति संवृणेति शरीरम् चड्+अच् + ङीष् ] चोली, ऑगया।
चोदना (स्त्री० ) [ चुद् + ल्युट् स्त्रियां टाप्] फेंकना, निर्देश देना, उत्साहित करना, प्रोत्साहन देना, स्फूर्ति देना, आगे करना, हांकना, बढ़ाना। २. उपदेश विधि | चोद्यं (नपुं० ) [ चुद् + ण्यत् ] आक्षेप, प्रश्न, आश्चर्य । निवेद्य चोद्यं चतुरा तु राज्ञिका मनोविनोदं नयति स्म भूभुजः । (जयो० २३/८३)
चोर: (पुं० ) [ चुर+ णिच्+अच्] चोर। (सम्य० २८) चोरिका (स्त्री०) चोरी, लूट
चोरिन् (वि०) चुराया गया।
चोल (पुं०) १. चोल देश, बोलवंश २. चोली, अंगिया। चोलकः (पुं०) [ चोल+कै+क] वस्त्रस्त्राण, छाल, बल्कल । चोलकिन् (पुं०) [ चोलक + इनि] वस्त्रस्त्राण से सुरक्षित सैनिक, कवच, ढाल |
चोली (स्त्री०) चोली, अंगिया ।
चोष: (पुं०) [ चुप्+घञ् ] चूसना ।
चोष्यं (ऋ०वि०) चूसना ।
चौबीसी (वि०) चौबीस की संख्या वाला, चौबीस तीर्थंकरों की संख्या ( भक्ति० १८ )
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चौर: (पुं०) [ चुर. णिच्-अच्, चुराण चोर, लुटेरा (जयो० १५/८१) एकत्राङ्कित चौरसाधु पतिभि '
चौरकथा (स्त्री०) चोर सम्बन्धी कथा, चोरों का वर्णन, चोरों की चर्चा । 'चौराणां चौरप्रयोग-कथनं चौरकथाविधानम्' (निय० ता०वृ० ६७ )
चौरचरट: (पुं०) चौर भय। (जयो० वृ० १ / ३९)
चौरप्रयोग (पुं०) चोरों की चर्चा, चोरों की अनुमोदना । चौरसुति (स्त्री०) चोरों की संगति (जयो० कृ० २८/५७) चौर लुण्टाक (पुं०) चोर लुटेरा (जयो० १/३० ) चौर संयुतिः (स्त्री०) चोरों की संगति (जयो० वृ० २८/५७) चौरप्रिया (वि०) चोरों का विरोधी (समु० ६/७०) चौरार्थदानं (नपुं०) चोर द्वार लाए गए अर्थ संग्रहण चौराहतगृह (वि०) चोरी के अर्थ का ग्रहण करने वाला । चौर्य (नपुं० ) [ चोर + ष्यञ्] चोरी, छूट, चुराना, अदत्त (जयो० २/१२५) स्वयं ग्राह्य वस्तु बिना पूछे वस्तु लेना (सम्य० २७) 'अदत्तस्य स्वयं ग्राहो वस्तुनः चौर्यमीर्यते'
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च्युताधिभार
संक्लेशपरिणामेन प्रवृत्ति यत्र तत्र तत् ।। ( हरिवंश पु० ५८ / ११) शरीरादिकों में अहंकार/ ममकार लिए हुए पर वस्तुओं का हथियाना, जबरन अपनाना। (सम्य० वृ० २८) चौर्यप्रयोगः (पुं०) चोरी का प्रयोग, अनुमोदना । ( मुनि० २१ ) चौर्यरत (वि०) अदत्तादान रहित, चोरी से रहित। (जयो० वृ० २८/५७)
चौर्यानन्दः (पुं०) रौद्रध्यान, खोटा ध्यान, चोरी करके हर्षित होना। परद्रव्यहरणे तत्परता प्रथमं रौद्रम् (मूला०वृ० ५/१९९)
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चौर्यानन्दी (वि०) रौद्रध्यान का एक भेद हिंसानन्दी, मृषानन्दी, चौर्यानन्दी और परिग्रहानन्दी । ( मुनि० २२ ) चैव (अव्य०) तो भी ऐसा भी (सुद० ७२ ) चौहानवंशभृत् (वि०) चौहानवंश वाला, कीर्तिपाल नामक राजा। चौहान वंशभृत् कीर्ति पालनाममहीपते देवी महीलाख्याना बभूव जिनधर्मिणी (वीरो० १५/५१) च्यवनं (नपुं० ) [ च्यु लुट्] उद्वर्तन मरण, आना, अवतरण, गति, च्युतिः च्यवनं चूक कृत्ये ममाभूच्च्यवनं तदेतत् । ( भक्ति० ३८ )
च्यवतः (वि०) अवतरित च्युत होने वाले होता हुआ आया हुआ (सम्य १०८)
च्यवन्त (वि०) १. च्युत होते हुए गिरते हुए श्रद्धानतश्चाचरणाच्च्यवन्तः संस्थापिता संतु पुनस्तदन्तः । ( सम्य० ९५ ) २. हानि, वञ्चना, मरण, उद्वर्तन करते हुए।
च्यावित (वि०) भ्रष्ट कराए गए, च्युत कराए गए, कदलीघात, विषभक्षण, वेदना, रक्तक्षयादि से खण्डित आयु वाला शरीर। कदलीपातेन पतितं व्यावितम्।
च्यु
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(अक० ) गिरना, नीचे आना, बाहर आना एक पर्याय से दूसरी पर्याय को प्राप्त होना, शरीर त्यागना, नष्ट होना, छोड़ना, निकलना।
च्युत् ( अक० ) गिरना, निकलना, नीचे आना, छूटना, नष्ट होना, गिरना । 'पक्वफलमिव स्वयमेवायुषः क्षयेण पतितं च्युतम् ।
च्युत (भू०क० कृ० ) [ च्यु+क्त] गिरा, आया हुआ, निकला हुआ च्युतं त्यागं विनायुष्क क्रमश्वगतात्मकम्। 'निरूपराग शुद्धात्मानुभूतिच्युतस्य मनोवचन काय व्यापार-कारणम् । (सम्य० १३५ )
च्युतगत (वि०) बाहर निकला हुआ, गिरकर आया हुआ। च्युताधिभार (वि०) पदच्युत किया गया।
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