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चर्चनं
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चलचञ्चः
अध्ययन करना। २. धिक्कारना, आवृत करना, लगाना। चर्मप्रवेशकाः (पुं०) कमर बंद, बेल्ट, चमड़े की पट्टिका। 'मुदुचन्दनचर्चिताङ्गवानपि गन्धोदकपात्रत: स वा। (सुद० कमरबन्ध। ३/७)
चर्ममुण्डा (स्त्री०) दुर्गा देवी। चर्चन (नपु०) [चर्च् + ल्युट] १. उपटन लगाना, लिप्त करना। चर्मयष्टिः (स्त्री०) चाबुक। २. अध्ययन, अभ्यास।
चर्मवसनं (नपुं०) चर्मवस्त्र। चर्चरिका । स्त्री०) [चर्चरी+कन्+टाप्] १. चौराहे पर गाया चर्मवाद्यं (नपुं०) ढोल, तबला, मृदङ्ग, नगाड़ा।
जाने वाला गान, ताल युक्त संगीत। २. सस्वर पाठ, चर्मसंभव (स्त्री०) बड़ी इलायची। उत्सव, चाचर।
चर्मसमाश्रय (पुं०) चर्म पादत्राण युक्त। स चर्मसमाश्रयो चर्चा (स्त्री०) [चर्छ। अङ्टाप्] १. पूजा, अर्चना। (जयो० यदिता कुतः स्यात्तस्य वा न हिमा। (सुद० १०९)
६/१३२)। २. अध्ययन, अभ्यास। ३. विचार विमर्श। चर्मस्थ (वि०) चमड़े से युक्त। चर्चिक्यं (नपु०) [चर्चिका यत् ] उपटन, लेप, मालिश, चर्मावृत (वि०) चमड़े से आच्छादित। (सुद० १२०) (लि० संघर्षण।
सं०४७) चर्चित ( भू०क०कृ०) [चर्च् + क्त] १. आलिप्त, लेप किया चर्मिक (वि०) [चर्मन् ठन्] ढाल से सुसज्जित।
हुआ। (वीरो० १२/१६) २. विचारित, चिन्तनयोग्य माननीय। चर्मिन् (वि०) १. ढाल से आवृत, ढाल युक्त, २. केला ३. (सुद०३/७)
भूर्ज तरु। चर्पटः (पुं०) [चुप्। अटन् ] चपेटना, थप्पड़ मारना। चर्मोपसृष्ट (वि०) चमड़े में रखे हुए। चर्मोपसृष्टं च रसोदकादि चर्पटी (स्त्री०) [चर्पट् ङीष् ] चपाती, रोटी।
विचारभाजा विभुवा न्यगादि। (सुद० १२९) चर्भटः (पुं०) ककड़ी, ककड़ी विशेष।
चर्या (स्त्री०) [चर+यत्+टाप्] ०चाल, क्रिया, प्रवृत्ति, चर्भटी (स्त्री०) ककड़ी।
०व्यवहार, ०भ्रमरी वृत्ति (जयो० वृ० २३/४६) ०अनुष्ठान, चर्मम् (नपुं०) ढाल।
विधि, नियम, परिशीलन-विचार दृष्टि। चर्मण्यवती (वि०) चम्बल नदी।
चर्यानिमित्तं (नपुं०) चर्या का हेतु। (सुद० ११९) चर्मन् (नपुं०) [चर+मनिन् ] चमड़ा, खाल त्वचा। उपर्युपात्तं । चर्यापरायण (पुं०) चर्या में निपुण (वीरो० १/१०५)
ननु चर्मणा तु विचारहीनाय परं विभातु। (सुद० १०१) चर्या (स्त्री०) अवस्था-यो वै चचार समदृग्तृढयोगचर्याम् चर्मकारः (पुं०) चमार, मोची।
चर्व (सक०) ०चबाना, ०कुतरना, ०खाना, निगलना, ०काटना, चर्मकारिन् (पुं०) चमार, मोची, चमड़ा रंगने वाला।
०कर्तन करना, चूसना, स्वाद लेना, चखना। चर्मकीलः (पुं०) मस्सा, अधिमांस।
चर्वणं (नपुं०) चबौना, कुतरना, खाना, चार्बी (जयो० १३/७२) चर्मखण्डः (पुं०) चमड़े का टुकड़ा।
आचमन करना, चखना, स्वाद लेना। नष्ट करना-पापस्य चर्मचित्रकं (नपुं०) सफेद दाग, सफेद कोढ़।
चर्वणं (जयो० वृ० २६/३१) 'पुमान् विधिचर्वणम्' (जयो० चर्मजं (नपुं०) केश, बाल।
२५/४६) चर्मतरङ्गः (पुं०) झुरौं, त्वचसंकोचन।
चर्वा (स्त्री०) थप्पड़, तमाचा। चर्मदण्डः (पुं०) चाबुक, चमड़े से बना चाबुक।
चल् (अक०) हिलना, कांपना, चलायमान, धड़कना, स्पंदन चर्मनालिका (स्त्री०) चाबुक।
होना। सर्वेऽपि चेलुः, समुदायवित्ताः (वीरो० १४/१७) चर्मपट्टिका (स्त्री०) चमड़े का कमर बंद, बेल्ट।
चलना (सुद० १२३) मन्दं मन्दमचलत्-(जयो० वृ० चर्मपत्रा (स्त्री०) चमगादड़।
१/८९) आस्तदा सुललितं चलितव्यम् - (जयो० ४/७) चर्मपादुका (स्त्री०) जूता, पादत्राण।
| चल (वि०) [चल-अच्] चलना, हिलना, कांपना। (जयो० चर्मपाश: (पुं०) गण्डकचर्मखण्ड, चमड़े की ढाल, चर्म वृ० १/९४)
कवच। धृतः क्षत्रत्राणकचर्मपाश:। (जयो० २७/२७) चलकर्णः (पुं०) वास्तविक दूरी। चर्मप्रभेदिका (स्त्री०) मोची की रांपी।
चलचः (स्त्री०) चकोर पक्षी।
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