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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चलदल: ३८४ चातुर्मासः चलदलः (पुं०) अश्वस्थ वृक्ष। चलनं (नपुं०) चरण, पाद, पैर। 'स्वयं लघुत्वाच्चलनैकहक्का' (जयो० २०/८१) चलनकं (नपुं०) छोटा लहंगा। चलनैकहक (नपुं०) चरणसन्नीत दृष्टि, चरणों में संलग्न दृष्टि। (जयो० वृ०२०/८१) चलातङ्कः (पु०) गठिया वाट, रोग, गठानों में होने वाला रोग। चलात्मन् (वि०) चलचित्र, चलायमान मन। चलाचलं (नपुं०) चञ्चल, चपल. अस्थिर। (जयो० २५/४) चलित (भू०क०कृ०) आन्दोलित। चलेन्द्रिय (वि०) चञ्चल इन्द्रिय, विषसाक्त इन्द्रिय। चलेषुः (पुं०) लक्ष्यहीन धनुर्धर। चलोष्ठ (वि०) चलायमान होंठ। (जयो० १३/११) चष् (सक०) १. खाना, ग्रहण करना। २. चोट पहुंचाना। चषकः (पुं०) [चष्+क्वुन्] सुरापात्र, मदिरा पात्र, पानपात्र, (जयो० १६/३६) जलपात्र, शकोरा। चषके पानपात्रे (जयो० वृ० २/२०) चषकार्षित (वि.) दानपात्रार्पित, जल को परोसने वाली। निपपो चषकार्पित न नीरं जलदायाः प्रतिबिम्बित शरीरम्। (जयो० १२/२०) चषालः (पुं०) [चष्+आलच्] छत्ता। चाकचक्यं (नपुं०) चमक, कान्ति, प्रभा। चाकचिक्यं (नपु०) चेष्टा। चारित्रौ रिङ्गिनै ___ चाकचिक्यादिभिश्चेष्टादिभिः। (जयो० वृ० ३/८०) चाक्र (वि०) चक्र से किया जाने वाला प्रहार, मंडलाकार फरकना। (जयो० वृ० ९/१३) चाञ्चल्यभक्ष्णारनुमन्यमाना दोषाकरत्वं च मुखे दधाना। (वीरो० ३/२३) चाटः [चट्-अच्] चाटुकार, विश्वास जमाने वाला, ठग। चाटुः (स्त्री०) ठग, चाटुकार, चापलूस, मधुरालापी। चाटुकार: (पु०) चापलूस, मीठी-मीठी बाते करने वाला। चाटुवचनम् (पुं०) चादुकारी वचन। (समु० ३/४२) चाणक्यः (पुं०) कौटिल्य शास्त्र प्रणेता, नागर राजनीति का पण्डिता चाणरः (पुं०) कंस का सेवक। चाण्डालः (पुं०) १. पतित, अधम, नीच, दुष्ट। (वीरो० १७/२२) (सुद० १०५) २. वृषल, शूद्र-वृपलश्चाण्डाल इति--(जयो० वृ० १/४०) ३. मातङ्ग-(दयो० ४९) 'मातङ्गः यद्यपि वयं चाण्डाल:' चाण्डालचेत् (पुं०) मातंग हृदय। (सुद० १०७) चाण्डालिका (स्त्री०) चण्डाल की स्त्री, मातङ्ग स्त्री। चाण्डाली (स्त्री०) १. चण्डाल की स्त्री, एक भाषा, प्राकृत के स्वरूप को लिए हुए। २. रीति विशेष। चातकः (पुं०) चातक, पपीहा, चकवा। (सुद० १/४३, २/५०) (दयो० २०) कलिङ्ग इव चातकपक्षीव (जयो० वृ० ६/२१)'चातको मेघानां वर्षणमपेक्षते' (जयो० वृ०६/२१) 'चिरात्पतच्चातकचञ्चमले' (वीरो०४/१९) चातकगेहिनी (स्त्री०) चकवी, पपीहा पत्नी। (दयो० २०) चातकानन्दनः (पुं०) वर्षाऋतु, मेघ, बादल। चातकी (स्त्री०) चतकी, चातकगृहिणी। महिषी नरपालस्य चातकीवोदिताम्बुदम्। (सुद० ९९) चातनं (नपुं०) [चत्+णिच्+ ल्युट्] हटाना. क्षति पहुंचाना। चातुर (वि०) योग्य, प्रवीण, बुद्धिमान्, मधुराभाषी। चातुरक्षं (नपुं०) चार गोटी, पांसे, चौपड़ खेल। चातुरी (वि०) दक्षता, बुद्धिमानता। चातुर्दशं (नपुं०) राक्षस। चातुर्मासः (पुं०) चातुर्मास, वर्षावास। (वीरो० १२/३६) पञ्चभ्या नभत: प्रकृत्य भवतादर्जस्विनी या ह्यमा तावद् घरस्त्रशतवृधौ निवसतादेकत्र लब्ध्वा क्षमा। एतस्मिन्भवति स्वतोऽवनिरियं प्राणिव्रजैराकुला संजायेत ततोऽर्हतां सुमनसोऽसावुज्जम्भे तुला।। (मुनि०५१) साधु को चाहिए कि वह सावन वदी पञ्चमी से लेकर कार्तिक की अमावस्या करता हुआ एक स्थान पर निवास करे, क्योंकि इस समय में पृथ्वी स्वयं जीवों के समूह से व्याप्त हो जाती है। इसके बाद वह चाक्रिक (वि०) चक्र पर काम करने वाला, चक्राकार-कार्य करने वाला कुम्हार, तेली। चाक्रिकः (पुं०) कुम्हार, तेली, सारथि, चालक। चाक्रिणः (पुं०) कुम्हार पुत्र। चाखवः (पुं०) चूल्हा। निधेय मया किं विधेयं करोतुत सा साम्प्रतं चाखवे यद्वदौतुः। (सुद० ९५) चाक्षुष (वि०) [चक्षुस्+अण्] दृष्टि पर निर्भर, दृष्टिगत, दृष्टि रखने वाला। चाक्षुषं (नपुं०) चक्षु सम्बन्धी ज्ञान। चाक्षुषज्ञानं (नपुं०) चक्षु इन्द्रिय जन्य प्रमाण, साक्षात् प्रमाण। चाङ्गः (पुं०) १. अम्ललोणिका शाक, २. दन्त स्वच्छता। चाञ्चल्य (वि०) [चञ्चल+ष्यब्] चपलता, अस्थिरता, विलोलता, For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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