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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रैष्मक ३६९ घडियाल: गृष्मक (वि०) [ग्रीष्म+वुज] गर्मी में बोया गया। ग्मा (स्त्री०) भूमि, धरणी। ग्लस् (सक०) खाना, निगलना। ग्लपनं (नपुं०) [ग्लै णिच्+ ल्युट] मुाना, सूखना, थकना, क्लान्त होना। ग्लपित (वि०) दु:खी, द्रवता प्राप्त बेहोश। (सुद० ८७) मुक्तात्मयत्वाच्च गभीरभावादे तस्य वार्धिर्लपितः सदा वा। (वीरो० ३/२) 'ग्लपितो द्रवत्वमित एव तिष्ठति' (वीरो० ३/२) 'विलोक्यं लोकं ग्लपितं द्रुतान्त-स्तयाप्तपुण्यातिशयेन दान्तः। (भक्ति० २२) ग्लहू (सक०) लेना, ग्रहण करना। प्राप्त करना, खेलना, पकड़ना। ग्लहः (पुं०) [ग्लह+अप्] पासे से खेलना, दाव, बाजी लगाना। ग्लान (भू०क०कृ०) [ग्लै क्त] क्लान्त, श्रान्त, थका हुआ। ग्लानिः (स्त्री०) [ग्लै नि] घृणा, अवसाद, थकान, हास, क्षय। (जयो० २/८२) ग्लानिर्गत (वि०) घृणामवाप्त, घृणा को प्राप्त। (जयो० १४/९२) ग्लानिमान (वि०) मलिनमुख। (जयो० ६/१७) ग्लान्यभावः (पुं०) नैर्जुगुप्सा, घृणा का अभाव। (जयो० वृ० २/७६) ग्लास्तु (वि०) [ग्लै+स्नु] क्लान्त, श्रान्त। ग्लुच् (सक०) जाना, पहुंचना, चलना। ग्लै (अक०) क्लान्त होना, थकना, मूछित होना। ग्लौ (पुं०) [ग्लै+डौ] १. चन्द्र, २. कपूर। घटक (वि०) [घट्+ण्+िण्वुल्] सुसंवेदनदायक-आत्म स्वरूप का अनुभव करने वाला। (जयो० २८/५९) २. कुम्भक, कुम्भ वाला। (जयो० वृ० २८/५९) पूरणायेत्यथो वाञ्छन् घटकं प्राप्य चात्मनः। (जयो० २८/५९) घटकल्पः (पुं०) घट युक्त, कुम्भसहित। घटकल्पसुस्ततिः (वि०) घर के समान सुन्दर। कुम्भोपमकुचवति। (जयो० १२/१२४) 'वटकं घटकल्पसुस्तनीत:' घटनं (नपुं०) [घट्+ल्युट्] प्रयास, प्रयत्न, घटित होना, मिलाना, एकत्रित करना, निष्पन्नता, प्रकाशन, कार्यान्विति। घटना (स्त्री०) समस्या। (जयो० वृ० ११/२०, दयो. ४४) अघटितघटनां करोति कर्म प्राणिनां सदाऽऽपदं च शर्म। घटा (स्त्री०) चेष्टा, प्रयत्न, प्रयास, बादलों का जमाव। घटिकः (पुं०) [घट्-कन्] घट के सहारे पार होना। घटिका (स्त्री०) [घटी+कन्+टाप्] छोटा घड़ा, करवा, मिट्टी का बर्तन। १. कालविशेष-द्वाविंशत्कलाभिर्घटिका' (जयो० २८/८०) २. घड़ी। घटिका घटिकार्थस्य समयः समयोऽसकौ। (जयो० २८/८०) ३. संगठनकी , सम्पन्न करने वाली। (जयो० २८८०) घटिकानन्तरः (पुं०) घड़ी के पश्चात्, चेष्टित्, (जयो० वृ० २७/३८) घटिन् (पुं०) [घट्+इनि] कुम्भ राशि। घटिन्धम (वि०) [घटी+ध्मा+खश्+मुम्] फूंक मारना। घटिन्धय (वि०) [घटी+घेट+खश] घटभर पानी पीने वाला। घटी (स्त्री०) मटकी, छोटा घड़ा। निधिघटीं धनहीनजनो यथाऽधिपतिरेष विषां स्वहशा तथा। (सुद० २/४९) घटोत्कचः (पुं०) नाम विशेष, एक शक्तिशाली वीर। घटोत्पादानुभागः (पुं०) घट के उत्पादन विषयक शक्ति। घटोनी (वि०) घट सदृश स्तन वाली। 'घटवत् पृथुलाकारौ ऊधसौ स्तनौ यस्याः सा घटोनी' (जयो० २२/८९) घटोपरोपिणी (वि०) कष्ट को उत्पन्न करने वाली। 'घटायाः ___ कष्टपरम्पराया उपरोपिणी प्रवर्तिनी' (जयो० वृ० २/१२६) घट्ट (सक०) हिलाना, संचालन करना, स्पर्श करना, मलना, सहलाना। घट्टः (पुं०) [घट्ट घञ्] घाट, तट, किनारा। घट्टनं (नपुं०) खण्डन, विनाश। तत्त्वोपदेशकृत्साशास्त्र कापथघट्टनम्।' (सम्य० ८३) घट्टना (स्त्री०) हिलाना, सहलाना, रगड़ना। घडियालः (पुं०) जल जन्तु। (दयो० ४२) घः (पुं०) कवर्ग का चौथा व्यञ्जन, इसका उच्चारण स्थान कंठ या जिह्वामूल है। यह स्पर्श वर्ण है। घकार घ भाव। (जयो० वृ० १/४८) घ (वि०) १. प्रहार करने वाला, नाशक, विध्वंसक, घातक। २. श्रम विशेष। 'घस्य शब्दस्य श्रमा' (जयो० वृ० २२/९१) घट (अक०) १. व्यस्त होना, प्रयत्न करना, प्रयास करना। उत्पन्न होना। उत्पन्न होना। (जयो० ६/७५) २. निष्पन्न होना, बनाना, निर्माण करना। ३. आरम्भ करना, शुरू करना। घटः (पुं०) [अट्+अच्] घड़ा, पात्र, मर्तवान, कुम्भ। (जयो० १२/१२४) For Private and Personal Use Only
SR No.020129
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages438
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size14 MB
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