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ग्रहणं
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ग्रैवेयकः
ग्रहणं (नपुं०) अर्थ ग्रहण, स्वीकार, अधिकृत। 'ग्रहणं सद्गुरुप--
दिग्टार्थविज्ञानम्' (भ० आ० ४३१) ग्रहदशा (स्त्री०) ग्रहों की स्थिति। ग्रहदेवता (पुं०) इष्ट देवता। ग्रहनायकः (पुं०) सूर्य, चन्द्र। ग्रहनेमि (स्त्री०) चन्द्रमा। ग्रहपतिः (०) सूर्य, चन्द। ग्रहपीडनं (नपु०) ग्रह जनित पड़ा। ग्रहमण्डलं (नपुं०) ग्रहों का वृत्त। ग्रहयुति (स्त्री०) ग्रहों का संयोग। ग्रहराजः (पुं०) सूर्य। ग्रहवर्ष: (पुं०) ग्रहों की स्थिति। ग्रहविप्रः (पुं०) ज्योतिषी। ग्रहशान्तिः (स्त्री०) ग्रहों का उपचारा। ग्रहसम (नपुं०) समान स्वर का ग्रहण। ग्रहिल (वि.) [ग्रह। इतच्] स्वीकारने वाला, लेने वाला। ग्राम: (पुं०) [ग्रस्+मन्] गांव, पुरवा, (सुद० १/२०) 'ग्रसति
बुद्ध्यादीन् गुणान् इति ग्रामः: (जयो० ३/३३) 'ग्रामो जनपदाश्रितः सन्निवेशविशेषः' अनेककल्पद्रुमसम्बिधाना
ग्रामा लसन्ति त्रिदिवोपमाना' (वीरो० २/१०) ग्रामकण्टकः (पुं०) पालतू मूगा। ग्रामकुमारः (पुं०) ग्राम बालक। ग्रामकूट: (पुं०) ग्राम प्रमुख। ग्राम गोदुहः (पुं०) ग्राम का ग्वाला। ग्रामघातः (पुं०) ग्राम का लूटना। ग्रामघोषिन् (पुं०) इन्द्र। ग्रामचर्या (स्त्री०) स्त्री संभोग। ग्रामचैत्यः (पुं०) गूलर तरु। ग्रामजालं (नपुं०) ग्राम समूह, ग्राममण्डल। ग्रामणी (पुं०) मुखिया, प्रधान। १. विषयासक्त व्यक्ति, २. |
नापित। ग्रामतक्षः (पुं०) बढ़ई, विश्वकर्मा। ग्रामदेवता (पुं०) ग्राम का अभिरक्षक देव। ग्रामधर्मः (पुं०) स्त्री संभोग। ग्रामनिवासिन् (वि०) ग्राम निवासी। (दयो०५) ग्रामप्रेष्यः (पुं०) दूत, सेवक। ग्राममुखः (पुं०) मण्डी, बाजार। ग्राममृगः (पुं०) कुत्ता।
ग्रामयजकः (पुं०) पुरोहित। ग्रामयाजिन् (पुं०) पुरोहित। ग्रामलुण्डनं (नपुं०) गांव लूटना। ग्रामवासः (पुं०) ग्राम निवास, ग्रामस्थान। ग्रामपण्डः (पुं०) क्लीव, नपुंसक। ग्रामसंघ: (पुं०) ग्रामसिंहः ग्राम निगम, पंचायत। ग्रामस्थ (वि०) ग्रामणी, गांव वाला। ग्रामहासकः (पुं०) जीजा, बहनोई। ग्रामिक (वि०) [ग्राम+ठञ्] गंवार, अक्कड़। ग्रामिकः (पुं०) मुखिया, प्रधान, प्रमुख व्यक्ति। ग्रामीण: (पुं०) [ग्राम खञ्] ग्रामवासी। ग्रामेय (वि०) गांव में उत्पन्न। ग्राम्य (वि०) [ग्राम यत्] १. गंवार, देहाती, ग्राम का निवासी।
२. घरेलू, पालतू। ३. अभद्र। ग्राम्यः (पुं०) सूकर। ग्राम्यकर्मन् (नपुं०) ग्राम व्यवसाय। ग्राम्यधर्मः (पुं०) ग्राम कर्त्तव्य। ग्रामबुद्धिः (स्त्री०) जड़ बुद्धि, अनाड़ी। ग्रासः (पुं०) [ग्रस्+घञ्] कौर, कवल। १. भोजन, २. पोषण,
३. ग्रस्त, ग्रहण युक्त, आच्छादित चन्द्र सूर्य। ग्रासभक्षक (वि.) कवलोपसंहारक। (जयो० वृ०७/२१) ग्रासशल्यं (नपुं०) कांटा, मछली का कांटा। ग्रासीकृत् (वि०) कवलित। (जयो० वृ० २५/६८) ग्राह (वि०) पकड़ने वाला, थामने वाला। ग्राहः (पुं०) १. पकड़ना, जकड़ना। २. घड़ियाल, मगरमच्छ। ग्राहकः (पुं०) १. बाज, स्येन। २. विपचिकित्सक, ३. क्रेता,
खरीददार, ४. पुलिस अधिकारी। ग्रीवकः (पुं०) ग्रैवेयक पर्याय। (समु० ५/१६) सिंहचन्द्रमुनिराट् ___ चरमेसग्रीवकेष्वजनिनाम सुरेशः। (समु० ५/१६) ग्रीवा (स्त्री०) गर्दन। ग्रीवाधोनयनं (नपुं०) कायोत्सर्ग में ग्रीवा नीचे करना। ग्रीवोर्ध्वनयनं (नपुं०) कायोत्सर्ग में ग्रीवा ऊपर करना। ग्रीष्म् (वि०) उष्ण, गरम। ग्रैवेयकः (पुं०) अवेयक नाम देव, लोक रूप पुरुष के ग्रीवा
स्थान पर अवस्थित विमानों के देव। (जयो० १७/३६) ग्रीवासु भवानि ग्रैवेयकाणि विमानानि, तत्साहचर्यादिन्द्रा अपि ग्रैवेयकाः। (तन्वा०४/१९) २. गले का अलंकरण, गले का हार।
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