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अतीव
अत्युदार
यतीश्वर देश, काल और भूमि आदि से प्रच्छन्न सूक्ष्म, अत्यन्तं (अव्य०) अत्यधिक, बहुत, अधिक। अन्तरित और दूरवर्ती पदार्थों को जान लेता है तो इसमें अत्यन्ताभावः (पुं०) एक दार्शनिक कथन, एक द्रव्य का विस्मय की क्या बात है?
दूसरे द्रव्य रूप नहीं होना। पटस्य वस्त्रस्यार्थी जनो घटं न अतीव (अव्य०) [अति+इव] अधिक, बहुत, बड़ा। प्रयाति, न स्वीकरोति ततस्तत्त्वं वस्तु तदनुभानुपाति। (जयो०
अस्मन्मनसोऽयमतीवानन्ददायी लगति। (दयो० पृ० ५८) वृ० २६८७) अतुच्छ (वि०) अनल्प, विपुल। (जयो० ८/२६)
अत्यन्तिक (वि०) [अत्यन्त+ठन्] बहुत अधिक, तीव्रतर, अतुच्छरसं (नपुं०) नव रसों की विपुलता। (जयो० १/४)
तीव्रतर गामी। अतुल (वि०) ०अनुपम, असाधरण, ०अनन्य ०अद्वितीय, अत्यय (वि०) [अति+इ+अच्] जाना, ०बीत जाना, ०व्यतीत
बेजोड़, अपूर्व। (जयो० ६/१५) सम्भूयभूयादतुलः प्रकाशः। होना, समाप्ति, उपसंहार, ०अतिक्रमण, ०अपराध, (वीरो० १४/२३) जयो० १२/१२
दोष, दुःख अवसान, ०अनुपस्थिति, अन्तर्धान, नाश, अतुल-कौतुकवती (वि०) अपूर्व आनन्ददायी, विशेष प्रशंसनीय। ०भय, हानि। (जयो० २/१५४)
(सुद० पृ० ८२) अतुलकौतुकवती वा या वृततिरकलङ्कसद- | अत्ययकर (वि०) हानिकर। प्रत्ययमत्ययकरं विद्धि यदि विद्धि धीतिः। (सुद० पृ०८२)
नरं त्वम्। प्रत्ययं विश्वासमत्ययकरं (जयो० २/१५४) अतुलप्रभा (स्त्री०) अपूर्वकान्ति। अतुला प्रभा कान्तिर्यस्य। हानिकारक। (जयो० वृ० ६/१५)
अत्ययित (वि०) [अत्यग्र+इतच्] बढ़ा हुआ, आगे निकला, अतुल्य देखो नीचे।
उल्लंघन किया गया। अतुल्या (वि०) ०अनुपम, अद्वितीय, ०अपूर्व, विशिष्ट। (जयो० अत्ययिन् (वि०) [अति+इ+णिनि] बढ़ने वाला, आगे निकलने
११/१) न विद्यते तुला यस्याः सा तामनन्य सदृशीम्। वाला, उड़ाई गई। (जयो० ५/३) वात्ययाऽत्ययिनि तूलकलापे। (जयो० वृ० ११/१)
(जयो०५/३) वात्या तयाऽत्ययिनि अत्ययभृति वातप्रेरिते। अतुषार (वि०) शीतलता रहित।
(जयो० वृ० ५/३) अतेजस् (वि०) कान्तिहीन, प्रभाविहीन, धुंधला, निरर्थक। अत्यर्थ (वि०) अत्यधिक, बहुत भारी। अतोष (वि०) अप्रसन्न, संतुष्टि रहित, गरीयसी स्वस्य अत्यर्थ (क्रि०वि०) अत्यन्त, अधिक। (सम्य १००) गुणेऽप्यतोषः। (समु० १/१८)
अत्याचार (वि.) [आचारमतिक्रान्तः] आचार उपेक्षक, अत्ता (स्त्री०) माता, मां [अत्+तक+टाप्] सास, बड़ी बहिन। व्यभिचार, दुराचार। अनः [अतति सततं गच्छति-अत्+न] १. हवा, २. सूर्य। अत्याचारः (पुं०) धर्म विहीन आचरण। अत्थु (अव्य) है, अत्थु शब्दः पादपूरणार्थः। (जयो० १९/७६) अत्यादित्य (वि०) तीव्र तेजस्वी, अधिक कान्तिवाला। णमोत्थु आमोसहिपत्ताणं।
अत्याय (वि०) अतिक्रमण, उल्लंघन। अत्य (वि०) व्यतीत करना, बिताना। दिनादि अत्येति तटस्थ। अत्यारूढः (वि०) अधिक बढ़ा हुआ। (सुद० १११)
अत्यारूढः (पुं०) अभ्युदय, उच्च। अत्यज् (सक०) अत्याग करना, ग्रहण करना। (जयो० वृ० अत्यारूढं (नपुं०) उच्च, अभ्युदय। १/२०) स्वामिनः सङ्गमत्यजन्ती।
अत्यारूढिः (स्त्री०) उच्चासीन। अत्यक्त (वि०) अपरित्यक्त, बिना छोड़े। अत्यक्तदारैक-समाश्रयैः अत्याहित (वि०) [अति+आ+घा+क्त] ०अधिक दुःखित, कृती। (वीरो० ९/६)
___०व्याकुल, अधिक पीड़ित, दुर्भाग्य, विपत्ति, भय। अत्यग्नि (वि०) पाचन शक्ति की अधिकता।
अत्युक्तिः (स्त्री०) [अति+व+क्तिन] अतिशयोक्ति, अधिक अत्यग्निष्टोमः (पुं०) यज्ञ का भाग, ज्योतिर्भाग।
बढ़ा चढ़ाकर कहना।। अत्यंकुश (वि०) निरंकुश, उच्छृखल।
अत्युदार (वि०) निर्दोष, अत्यन्त उदार। (जयो० १/१३, सुद० अत्यन्त (वि०) [अतिक्रान्तः अन्तम्सीमाम्] अत्यधिक बहुत, २/१६) तैरत्युदारैः निर्दोषैः। पारोऽतलस्पर्शितयाऽत्युदारः। नितांत, अनंत, बड़ा, तीव्र। (जयो० वृ० १/१५)
(सुद० २/१६)
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